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वो कांग्रेसी विधायक जिसे CM श्यामाचरण शुक्ल ने कहा था – “तूम्हे मीसा में बंद कर दूँगा” खुर्राट नेता जिसके ब्राम्हण डिनर ने सियासत से उसे बाहर कर दिया

वो कांग्रेसी विधायक जिसे CM श्यामाचरण शुक्ल ने कहा था – “तूम्हे मीसा में बंद कर दूँगा” खुर्राट नेता जिसके ब्राम्हण डिनर ने सियासत से उसे बाहर कर दिया
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By NPG News

बिलासपुर,27 जून 2020। सन् 1976 महिना जुलाई का कोई एक दिन, जगह थी दिल्ली.. जहाँ मध्यप्रदेश के करीब 41 विधायक दिल्ली पहुँचे थे.. बिसाहूदास महंत के साथ दिल्ली पहुँचे ये विधायकों सीधे सुप्रीम पॉवर और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मुख़ातिब थे। इस समुह में एक खुर्राट युवा विधायक था जिसने गांधी से कहा

“मैडम.. ये मीसा एक्ट क्या हम लोगो के लिए है.. मुझे मुख्यमंत्री ने कहा है मैं तुम्हे मीसा में बंद कर दूँगा..”

बेहद आत्मविश्वास के साथ सवालिया अंदाज में की गई यह बात पूरी होती उसके पहले इस विधायक दल में शामिल..रींवा-सीधी इलाक़े की महिला विधायक जगवा देवी रोने लगीं.. और रोते हुए उन्होने श्रीमती गांधी के पाँव पकड़ लिए। इस वाकये से बेहद नाराज कांग्रेस सुप्रीमो और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी बेहद नाराज हुईं और दिल्ली से भोपाल हॉटलाईन पर तत्कालीन मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ला को बेहद कड़ी ताकीद मिली। वह युवा विधायक जिसने बेहद आत्मविश्वास से बात रखी थी, वह थे तत्कालीन बलौदा विधानसभा से विधायक राधेश्याम शुक्ला।

मसला दिसंबर 1975 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने श्यामाचरण शुक्ल का था, जिनके कड़क तेवर एक जुदा पहचान रखते थे। तत्कालीन बलौदा विधानसभा से विधायक राधेश्याम शर्मा उनसे मिलने शाम आठ बजे सर्किट हाउस पहुँचे तो उन्हे संदेश दिया गया कि वे इंतजार करें। इंतजार करते हुए जब साढ़े नौ बज गया तो विधायक राधेश्याम शुक्ला उठ कर वापस चले गए। अगले दिन जबकि आमना सामना हुआ तो संवाद बेहद तीखे हो गए।CM श्यामाचरण शुक्ल ने पूछा –
“कैसे कहाँ चले गए थे.. मैं जरुरी काम निपटा रहा था.. तूम चले गए थे”

विधायक राधेश्याम शुक्ला ने जवाब दिया
“कौन सा जरुरी काम.. आप उपर जहाँ बैठे थे.. वहाँ से घंटो ठहाके की आवाजें नीचे तक आ रही थी.. मैं इंतजार करते रहा..और फिर चला गया”

पूरे तेवर से दिए गए इस जवाब ने तत्कालीन मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल को बेहद नाराज कर दिया और उन्होने कहा
“तूम्हे मीसा में बंद कर दूँगा समझे…”

इसके बाद वो हुआ जो कि आप उपर पढ़ चुके हैं।
मॉरीश कॉलेज नागपुर से एमए एलएलबी की पढ़ाई करने के बाद कटनी में एक महिना तीन दिन की तहसीलदार की नौकरी में कर के छोड़ने वाले राधेश्याम शुक्ला को कांग्रेस की सियासत में लाने वाले थे चित्रकांत जायसवाल। सरपंच और फिर बिल्हा जनपद अध्यक्ष के बाद राधेश्याम शुक्ल पर नजर पड़ी, दिग्गज नेता बिसाहू दास महंत की। यही बिसाहू दास महंत थे जिन्होंने बलौदा से विधानसभा की टिकट दिलाई, और भोपाल में विधायक राधेश्याम शुक्ल, बिसाहू दास महंत पैनल के सबसे खासमखास ताबेदार के रुप में जाने गए।

देश में आपातकाल के बाद जब सूबों की कांग्रेस सरकारें निपटीं तो मध्यप्रदेश की सरकार कैसे बचती। चुनाव हुए तो राजिम से खुद श्यामाचरण हार गए लेकिन बिलासपुर और रायपुर डिवीज़न में फिर भी बहुतायत में कांग्रेस विधायक जीते। उस दौर में जीत दर्ज करने वालों में राधेश्याम शुक्ल शामिल थे। बिसाहूदास महंत सियासत में अपने शिखर पर थे।

अर्जुन सिंह तब नेता प्रतिपक्ष बनना चाहते थे जिसके लिए बिसाहू दास महंत का समर्थन जरुरी था.. और समर्थन के लिए अहम मुलाक़ात कराने वाले का नाम था राधेश्याम शुक्ला। आख़िरकार बिसाहू दास महंत के समर्थन की वजह से अर्जुन सिंह नेता प्रतिपक्ष बने। और आगे चलकर 1980 में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री भी।

राधेश्याम शुक्ला को राज्य परिवहन निगम का उपाध्यक्ष बनाया गया। सब ठीक ही चल रहा था कि, अचानक एक के बाद एक हुई दो डिनर पार्टियों ने बहुत कुछ बदल कर रख दिया। तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने एक डिनर पार्टी रखी जिसमें केवल राजपूत विधायकों का निमंत्रण था। विधायक राधेश्याम शुक्ला तब भोपाल में सर्व ब्राम्हण समाज के अध्यक्ष थे। महोदा के मालगुज़ार परिवार के चश्मेचिराग और तब सीपत से विधायक राधेश्याम शुक्ला ने इस ठाकुर डिनर पार्टी के जवाब में एक ऐसी पार्टी दी जिसने दिल्ली तक सुर्ख़ियाँ बँटोर लीं। विधायक राधेश्याम शुक्ला ने पक्ष विपक्ष के सभी ब्राम्हण विधायकों को डिनर पार्टी दे दी।

यह मध्यप्रदेश के इतिहास में पहला ऐसा मौका था जिसने ब्राम्हण वर्ग के विधायकों को एक जगह एक साथ खड़ा कर दिया था। मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने विधायक राधेश्याम शुक्ला से पूछा –
“बड़ी चर्चा है तुम्हारी पार्टी की.. हमें भी नही बुलाया”

विधायक राधेश्याम शुक्ला ने जवाब टिकाया-
“क्यों ..! आपकी डिनर पार्टी में आप बुलाए थे क्या”

यह जवाब चाणक्य कहे जाने वाले अर्जुन सिंह को चुभा.. और नतीजा यह हुआ कि जबकि विधानसभा चुनाव की बारी आई तो राधेश्याम शुक्ला की टिकट कट गई। सियासत में पर्देदारी भी अजब गजब है।हमाम के भीतर कपड़े किसी के पास नही और हमाम के बाहर मख़मल सूत सारे कपड़े कई तहों में होते हैं। राधेश्याम शुक्ला पर्देदारी को लेकर इतने सावधान नही रहे। वे आसुदाह रहे आशुफ्ता नही। जो किया पूरे दम से किया और बगैर छूपाव के किया। तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी के ऑफ़िस में पहुंचकर दो पैग का क़िस्सा केवल इसी बूजूर्ग के पास दर्ज है।दिलचस्प यह है कि आज भी जबकि उनकी उम्र 85 के लगभग है, वे ज़िंदादिल हैं।

तिलक नगर के अपने घर में उनकी शाम गुलज़ार रहती है। सुबह योग के बाद शाम को सिगार के साथ दो पैग उनकी ज़िंदगी का हिस्सा हैं। जिस सीपत से वे विधायक रहे उस सीपत के लिए सड़क पानी बिजली स्कुल थाना जो कुछ उन्होने किया वो रिकॉर्ड में दर्ज है। कोनी स्थित विश्वविद्यालय भी राधेश्याम शुक्ला के खाते में दर्ज होता है।

टिकट कटने के बाद राधेश्याम शुक्ल कभी भी टिकट माँगने नही गए, राधेश्याम शुक्ल कहते हैं –
“मेरी तासीर है जो मिला उसे छोड़ा नही.. और जो चला गया उसके पीछे गया नही..”

राधेश्याम शुक्ल से सवाल हुआ आप क्यों नही प्रदेश कांग्रेस कार्यालय जाते हैं .. क्यों नही मिलते.. इस खुर्राट मगर बूजूर्ग नेता ने कहा
“सूनो.. कांग्रेसी था..कांग्रेसी हूँ .. और कांग्रेसी रहूँगा.. लेकिन ना ग़ुलाम था.. ना ग़ुलाम हूँ और ना ग़ुलाम रहूँगा.. बगैर बुलाए क्यों जाउंगा”

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