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राजभवन और राज्य सरकार के बीच टकराव बढ़ता ही जा रहा….सचिव नियुक्ति के बाद अब विशेष सत्र को लेकर फिर आमने-सामने के हालात

राजभवन और राज्य सरकार के बीच टकराव बढ़ता ही जा रहा….सचिव नियुक्ति के बाद अब विशेष सत्र को लेकर फिर आमने-सामने के हालात
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By NPG News

रायपुर, 20 अक्टूबर 2020। राजभवन और राज्य सरकार के बीच चल रहा टकराव थमने का नाम नहीं ले रहा है। राजभवन के सचिव की नियुक्ति प्रकरण का पटाक्षेप हुआ ही था कि विधानसभा के विशेष सत्र बुलाए जाने को लेकर राजभवन और राज्य सरकार के बीच फिर तल्खी बढ़ गई है।
खबर है केंद्र द्वारा पारित कृृषि बिल का विरोध कर रही राज्य सरकार अपना कुछ अलग करते हुए मंडी अधिनियम में संशोधन करना चाहती है। इसके लिए 27 और 28 अक्टूबर को दो दिन का विशेष सत्र बुलाने कीे तैयारी है। लेकिन, राज्यपाल अनसुईया उइके ने यह कहते हुए सरकार के पत्र को इस सवाल के साथ वापिस कर दिया है कि ऐसी क्या परिस्थिति आ गई कि विशेष सत्र आयोजित किया जाए…58 दिन पहले ही तो सत्र समाप्त हुआ है। कुछ घंटे बाद ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का भी जवाब आ गया। मीडिया के सवाल पर सीएम ने कहा कि पूर्ण बहुमत से चुनी गई सरकार को राज्यपाल सत्र बुलाने से नहीं रोक सकती हैं। इसके बाद सरकार ने राजभवन को दोबारा लेटर भेज दिया। जानकारों का कहना है, दूसरी बार अगर सरकार लेटर भेजती है तो राजभवन को इसे स्वीकार करने की बाध्यता है।
हालांकि, राजभवन और राज्य सरकार के बीच तल्खी की शुरूआत पिछले साल ही प्रारंभ हो गई थी, जब राज्यपाल अनसुईया उइके ने कहा था कि सूपेबेड़ा के किडनी प्रभावित लोगों को देखने के लिए अगर हेलीकाप्टर न मिला तो वे सड़क मार्ग से ही चली जाएंगी। इसके बाद फिर यह क्रम रुका नहीं। बल्कि, कुशाभाउ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति के बाद तो तनातनी और बढ़ गई। बताते हैं, राजभवन ने आरएसएस पृष्ठभूमि के बलदेव शर्मा को विवि का कुलपति नियुक्त कर दिया था। कांग्रेस शासन काल में संघ के व्यक्ति के कुलपति बनने पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तीखी नाराजगी जताते हुए कहा था, उन्होंने जो करना था कर दिया अब मैं करूंगा।
इसके बाद सरकार ने विधानसभा से छत्तीसगढ़ विवि संशोधन विधेयक पास कराया। इसके तहत कुलपति चुनने का अधिकार राजभवन के पास नहीं रह जाएगा। पता चला है, छत्तीसगढ़ विवि संशोधन विधेयक समेत कई विधेयक राजभवन में पेंडिंग पड़ी है। इसको लेकर सरकार के चार मंत्री राज्यपाल से मिलने राजभवन गए थे। लेकिन, अभी तक ये क्लियर नहीं हुआ है।
कोई भी नया बिल या संशोधन के मामले में नियम यह है कि विधानसभा से बिल पास होने के बाद आखिरी दस्तखत करने के लिए उसे राज्यपाल के पास भेजा जाता है। राज्यपाल अगर किसी सुझाव के साथ एक बाद विधेयक लौटा देते हैं तो कैबिनेट दोबारा बिल राजभवन भेजता है। राज्यपाल की बाध्यता होती है दूसरी बार बिल पर दस्तखत करने की। मगर विवि संशोधन विधेयक को राजभवन आवश्यक कार्रवाइयो के लिए अपने पास रख लिया है। करीब चार महीने से विधेयक राजभवन में है। चारों मंत्रियों को राज्यपाल ने बताया था कि उन्होंने यूजीसी से मार्गदर्शन मांगा है, उसके बाद विधेयक पर निर्णय लेंगी। बताते हैं, राज्यपाल विवि अधिनियमों में किए गए संशोधनों से सहमत नहीं हैं। इस विधेयक के पास हो जाने से कुलपति नियुक्ति का अधिकार राजभवन की बजाए राज्य सरकार को मिल जाएगा।
इसके बाद राज्य सरकार ने मरवाही को नगर पंचायत का दर्जा दिया तो राजभवन ने उसे पांचवी अनुसूची के तहत बिना राज्यपाल की अनुमति से ऐसा करने से रोक दिया। कांकेर के पत्रकार मारपीट मामले में भी राजभवन की सक्रियता सरकार को जाहिर है खटकी होगी।
हाल ही में, सरकार ने राजभवन के सचिव सोनमणि बोरा को हटा दिया। उनकी जगह बस्तर कमिश्नर अमृत खलको को नया सचिव बनाया गया लेकिन, अतिरिक्त प्रभार के तौर पर। सामान्य प्रशासन के आदेश के अनुसार खलको की मूल पोस्टिंग सचिव कृषि रहेगी। राजभवन सिकेट्री का अतिरिक्त प्रभार रहेगा उनके पास। आमतौर पर ऐसा होता नहीं। राजभवन की मूल पोस्टिंग होती है और दूसरे विभाग एडिशनल रहते हैं। लेकिन, खलको की मूल पोस्टिंग कृषि रहेगी। इसी तरह केडी कुंजाम के पास नियंत्रक खाद्य और औषधि के साथ ज्वाइंट सिकेट्री राजस्व, आपदा और सामान्य प्रशासन पहले से था। राजभवन के संयुक्त सचिव का चार्ज अतिरिक्त रहेगा।
हालांकि, सोनमणि को सेंट्रल डेपुटेशन पर जाना है। लेकिन, अभी तक पोस्टिंग आदेश जारी नहीं हुआ है। जब तक भारत सरकार से आदेश निकल नहीं जाता, तब तक कुछ कहा नहीं जा सकता। लिहाजा, सोनमणि की राजभवन से विदाई से लोग चैंक गए। फिर, खलको की जगह बस्तर में किसी नए कमिश्नर की नियुक्ति नहीं की गई है। ये ऐसे केस में होता है, जब सरकार कोई मैसेज देना चाहती हो। रुटीन पोस्टिंग में ऐसा नहीं होता।
बताते हैं, सोनमणि बोरा के हटाए जाने की जानकारी राजभवन को भी नहीं थी। जीएडी का आदेश जब वायरल हुआ तो पता चला कि सचिव बदल गए हैं। जानकारों का कहना है, राजभवन और राज्य सरकार के बीच केमेस्ट्री जब ठीक रहती है तो सरकार राजभवन के अधिकारियों को बदलने से पहले राजभवन की पसंद पूछ लेता है या फिर राजभवन जिस अफसर को चाहता है, उसे पोस्ट कर दिया जाता है। लेकिन, ये तभी होता है जब रिश्ते ठीक हो।
दूसरा, राज्यपाल कानून-व्यवस्था को लेकर राजभवन में बैठक करने वाली थी। इसमें गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू, डीजीपी समेत गृह और पुलिस विभाग के शीर्ष अधिकारियों को मौजूद रहना था। मगर ऐन वक्त पर जानकारी आई कि गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू क्वारंटाईन हो गए हैं, इसलिए बैठक स्थगित की जा रही है। जबकि, उसी दिन कानून-व्यस्था पर ही मुख्यमंत्री ने शीर्ष अधिकारियों की बैठक बुलाई तो उसमें गृह मंत्री मौजूद थे।
अमृत खलको की नियुक्ति के बाद राज्यपाल अनसुईया उइके ने सरकार को पत्र भेजकर पूर्णकालिक सचिव की मांग की थी। राज्यपाल ने लिखा कि सचिव का पेनल भेजा जाए, इसके बाद उनकी सहमति के अनसुार सचिव नियुक्त किया जाए। इसके बाद सरकार के दो सीनियर मंत्री रविंद्र चौबे और मोहम्मद अकबर राज्यपाल से मुलाकात की। राज्यपाल और मंत्रियों की बातें तो राजभवन की उंची दीवारों से बाहर नहीं आ पाईं लेकिन, दोनों मंत्रियों ने यह जरूर कहा कि राज्यपाल हमारी संवैधानिक प्रमुख हैं…उनसे राज्य सरकार का कोई टकराव नहीं है। इसके बाद सचिव खलको की राजभवन में ज्वाईनिंग हो गई। लेकिन, अब विधानसभा के विशेष सत्र को लेकर तनातनी कहीं फिर न बढ़ जाए।

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