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दिव्यांग बिटिया अविका के मार्मिक पत्र पर सात समंदर पार से मुख्यमंत्री ने लिया संज्ञान…..कलेक्टर को कहा- बच्ची की पढ़ाई और फीस की तुरंत करायें व्यवस्था….. फीस नहीं जमा करने स्कूल कर रहा था प्रताड़ित…

दिव्यांग बिटिया अविका के मार्मिक पत्र पर सात समंदर पार से मुख्यमंत्री ने लिया संज्ञान…..कलेक्टर को कहा- बच्ची की पढ़ाई और फीस की तुरंत करायें व्यवस्था….. फीस नहीं जमा करने स्कूल कर रहा था प्रताड़ित…
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By NPG News

दुर्ग, 13 फ़रवरी 2020। …अब दिव्यांग बेटी अविका अब ठीक से पढ़ाई कर सकेगी। बिटिया की गुहार पर सात समंदर पार से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कलेक्टर आदेश दिया है कि अविका पढ़ाई में किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं आये। मुख्यमंत्री के निर्देश पर जिला प्रशासन अब हरकत में आ गया है। दरअसल 10 वर्षीय दिव्यांग अविका ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर गुहार लगायी थी कि वो पढ़ाई करना चाहती है, लेकिन आर्थिक हालात उसके लिए रास्ता रोके खड़ी है। दुर्ग के बहुचर्चित श्री शंकाराचार्य विद्यालय हुडको भिलाई का पूरा मामला है जहा एक दस वर्षीय दिव्यांग छात्रा को पिछले तीन महीनो से मानसिक प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा था।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कलेक्टर अंकित आनंद को स्कूल प्रबंधन से चर्चा कर छात्रा की आगे की पढ़ाई के संबंध में हल निकालने निर्देश दिए थे। मुख्यमंत्री के निर्देश के पश्चात प्रशासन से हुई चर्चा में स्कूल प्रबंधन इस सत्र की फीस से छात्रा को राहत देने तैयार हो गया है। अब अविका अपनी पढ़ाई अच्छी तरह से जारी रख पाएगी।

पहले किया फीस माफ़ अब मांग रहे पुरानी फीस

छात्रा अविका पाल के मुताबिक शुरू से ही शंकाराचार्य विद्यालय में पढ़ाई कर रही है. विद्यालय दाखिला के दौरान जो भी शुल्क था घरवालों ने जमा किया था और लगातार हर महीने फीस जमा कर रहे थे. लेकिन कक्षा तीसरी में पहुंचने के बाद वर्तमान प्राचार्य राजकुमार शर्मा ने आगे की पढ़ाई के लिए पूरी फीस माफ़ कर दिये थे। छात्रा के मुताबिक उसकी बड़ी बहन भी इसी विद्यालय में पढ़ाई कर रही है जिसकी पूरी फीस घरवाले जमा कर रहे है। अब स्कूल प्रबंधन माफ़ की हुई पुरानी फीस भी मांग रहा है. लेकिन पिता हैसियत इतने पैसे एक साथ चुकाने के हैं नहीं।

फीस के लिए बच्ची को मानसिक प्रताड़ना

नये प्राचार्य ने माफ़ की हुई पुरानी फीस 40 हजार 600 रूपए जमा करने के लिए लगातार दिव्यांग छात्रा पर दवाब बनाते रहे. यहाँ तक की छात्रा को क्लास रूम की जगह लाइब्रेरी रूम में दिन भर जबरन बैठाया जाता था। खुद सोचिये 10 साल की बच्ची की मानसिक पीड़ा क्या होती होगी की वह स्कूल पढ़ने जाती होगी और उसे सहपाठियों के सामने क्लास से बहार निकलकर लाइब्रेरी में लगातार 3 महीने तक बैठा दिया जाता था, फिर भी पढ़ने और कुछ करने की लालसा में वह हर दिन स्कूल जाती रही.

मुख्यमंत्री को लिखा मार्मिक पत्र

छात्रा ने अपनी पीड़ा को प्रदेश के मुखिया भूपेश बघेल को पत्र लिख कर अवगत कराया है. साथ ही जिले के कलेक्टर अंकित आनंद जिला शिक्षा अधिकारी सयुक्त संचालक शिक्षा विभाग समाज कल्याण विभाग दुर्ग को भी लिखित पीड़ा बताई थी, लेकिन सात फरवरी को लिखा पत्र आज भी लचर सरकारी तंत्र व्यवस्था के इर्द गिर्द घूम रहा था, लेकिन अमेरिका दौरे पर मुख्यमंत्री तक जैसे ही ये खबर पहुंची, उन्होंने तुरंत इस पर संज्ञान लिया और बच्ची की पढ़ाई की व्यवस्था के साथ-साथ फीस के इंतजाम के भी निर्देश दिये।

फीस नहीं तो पुराना रिजल्ट नहीं न ही अगली परीक्षा

बहुचर्चित विद्यालय शंकराचार्य ने साफ़ साफ़ छात्रा के परिजनों को हिदायत दी थी जब तक पूरी फीस जमा नहीं करोगे तब तक ना पूर्व रिजल्ट दिया जाएगा और ना ही वर्तमान परीक्षा देने दिया जायेगा। जहां शिकायत करना हो वहां करते रहो। विद्यालय प्रबंधक ने पीड़ित छात्रा को पिछले साल के रिजल्ट की कॉपी भी नहीं दी, जिससे छात्रा को मिलने वाली स्कालरशिप 1500 रुपय से भी वंचित होना पड़ा। छात्रा के परिजनों ने आखरी उम्मीद करते हुए कार्यालय राज्य आयुक्त दिव्यांगजन दुर्ग में भी शिकायत की है जहा कार्यवाही होने की किरण दिखाई दे रही है लेकिन कब तक में छात्रा को न्याय मिलेगा ये कह पाना अभी संभव नहीं है।

और भी हैं पीड़ित…. ?

विश्वसनीय सूत्रों से जो जानकारी निकल कर सामने आई है उससे पता चला है कि श्री शंकराचार्य विद्यालय में कई छात्रों ने अपना नाम कटवा लिया है शुरुआती दौर में अधिकांश गरीब छात्रों की फीस माफ कर दी गयी थी और अचानक माफ की हुई फीस की मोटी रकम मांगने पर कई छात्रों के परिजनों ने विद्यालय से बच्चो का नाम कटवा दिया है। यहां तक कि विधालय में पढ़ाने वाले शिक्षकों के बच्ची से भी मोटी रकम वसूली जा रही है। शुरुआत में सालाना इनकम कम दिखाने के लिए ये तरीका विद्यालय ने अपनाया है जिसका खामियाजा मजबूर छात्र उठा रहे है। शिक्षा से वंचित करने का जो तरिका बहुचर्चित विद्यालय ने उठाया है वह बेहद ही शर्मनाक है और उससे भी ज्यादा संवेदनहीन बने बैठे प्रशासनिक तंत्र है। जो बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ का स्लोगन लिए घूम रहे है।

नियम को आँख दिखते स्कूल प्रबंधन

आप को बता दे सामान्य छात्रों के लिए 14 साल तक निशुल्क शिक्षा का अधिकार मिला है तो वही दिव्यांग छात्रों को 18 साल तक निशुल्क शिक्षा का अधिकार मिला हुया है लेकिन प्रदेश भर में इस नियम के तहत किसी भी निजी विद्यालय ने दिव्यांग छात्रों को दाखिला नहीं दिया जा रहा है और जिम्मेदार शिक्षा जगत के प्रशासनिक अधिकारी मौन बने बैठे।

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