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कबूतर जा… जा...जा...: जानकर चौंक जाएंगे, संचारक्रांति के इस युग में भी यहां की पुलिस करती है कबूतरों पर भरोसा

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कबूतर जा… जा...जा...: जानकर चौंक जाएंगे, संचारक्रांति के इस युग में भी यहां की पुलिस करती है कबूतरों पर भरोसा
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By Sanjeet Kumar

कटक। संचारक्रांति के इस युग में गांव- देहात तक संवाद की आधुनिक सुविधा पहुंच चुकी है। मोबाइल और इंटरनेट की वजह से चिट्ठी का चलन भी लगभग खत्‍म ही हो गया है, जब मन किया किसी से बात करने का बस नंबर डॉयल किया है, और... बात हो गई।

इस आधुनिक दौर में भी यदि कोई कहे कि उसे मोबाइल और इंटरनेट से ज्‍यादा भरोसा कबूतरों पर है तो आप क्‍या कहेंगे। वह भी जब यह कहने वाला कोई आम इंसान नहीं बल्कि पुलिस जैसा सरकारी महकमा हो। शायद आप इस बात पर यकीन नहीं करेंगे, लेकिन देश में एक ऐसा भी राज्‍य है जहां की पुलिस संदेश पहुंचाने के लिए कबूतरों पर ज्‍यादा भरोसा करती है।

यह ओडिशा की पुलिस है जिसका इस दौर में भी संदेश पहुंचाने के लिए कबूतरों पर भरोसा आज भी कायम है। यहां की पुलिस कबूतरों का संरक्षण यह सोचकर कर रही है कि किसी आपदा की स्थिति में संचार के तमाम माध्यम काम न आने पर इनका इस्तेमाल किया जा सकता है।

अंग्रेजों के जमाने से कायम है यह भरोसा

ओडिशा पुलिस के अफसरों के अनुसार अंग्रेजों के शासन के दौर में जब पुलिस स्टेशनों में कबूतरों को संवाद के लिए इस्तेमाल किया जाता था, तब से ही ओडिशा पुलिस में कबूतर हैं। आज भी ओडिशा पुलिस के कबूतरों के संदेश वाहक दस्‍ते में 100 से अधिक बेल्जियम होमर कबूतर हैं। समय- समय पर इनकी ट्रेनिंग होती और इन्‍हें आजमाया भी जाता है।

जानिए किस गति से उड़ सकते हैं कबूतर

कटक पुलिस के अफसरों के अनुसार कबूतर सामान्‍य: 55 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से उड़ सकते हैं। एक बार में उनके उड़ान की सीमा 800 किलोमीटर तक हो सकती है। यानी कबूतर एक बार में बिना रुके 800 किलोमीटर तक उड़ सकते हैं।

आपदा के समय साबित हुए मददगार

ओडिशा पुलिस के अफसरों के अनुसार आपदा के दौरान में कबूतर काफी मददगार साबित हुए हैं। अफसरों ने बताया कि 1999 में जब चक्रवात ने तटीय क्षेत्रों में तबाही मचाई थी और उससे पहले 1982 में जब राज्य के कुछ हिस्सों को विनाशकारी बाढ़ झेलनी पड़ी थी। तब कबूतर ही थे जिन्‍होंने संदेशों का आदान- प्रदान किया था।

जानिए कैसे दी जाती है कबूतरों को ट्रेनिंग

ओडिशा पुलिस में कबूतरों की देखभाल के लिए तैनात परशुराम नंदा बताते हैं कि कबूतरों की ट्रेनिंग उनके पंच से छह सप्ताह की उम्र से ही शुरू हो जाती है। जैसे-जैसे, बड़े होते जाते हैं, उन्हें कुछ दूर ले जाकर छोड़ देते हैं और वे आराम से लौट आते हैं। धीरे-धीरे दूरी बढ़ जाती है, और 10 दिनों में से लगभग 30 किलोमटीर से लौटने में सक्षम हो जाते हैं।

Sanjeet Kumar

संजीत कुमार: छत्‍तीसगढ़ में 23 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय। उत्‍कृष्‍ट संसदीय रिपोर्टिंग के लिए 2018 में छत्‍तीसगढ़ विधानसभा से पुरस्‍कृत। सांध्‍य दैनिक अग्रदूत से पत्रकारिता की शुरुआत करने के बाद हरिभूमि, पत्रिका और नईदुनिया में सिटी चीफ और स्‍टेट ब्‍यूरो चीफ के पद पर काम किया। वर्तमान में NPG.News में कार्यरत। पंड़‍ित रविशंकर विवि से लोक प्रशासन में एमए और पत्रकारिता (बीजेएमसी) की डिग्री।

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