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History of Pendrive: Pen drive का इतिहास और विकास, कैसे तीन इंजीनियरों ने बनाया USB फ्लैश ड्राइव जो आज 2TB तक स्टोर कर सकता है - जानिए पूरी कहानी और तकनीकी राज

History of Pendrive: यदि आप कंप्यूटिंग के शुरुआती युग से जुड़े हैं, तो डिस्केट और उसकी सीमित स्टोरेज ही याद होगी। इंटरनेट और क्लाउड के बाद भी USB ड्राइव यानी पेन ड्राइव ने अपना खास स्थान बनाए रखा है। छोटी सी डिवाइस में आज इतनी क्षमता समा जाती है कि पहले के सैकड़ों ऑप्टिकल डिस्क और फ्लॉपी की जगह ले लेती है, और इसने पोर्टेबल डेटा ले जाने के तरीके ही बदल दिए हैं।

History of Pendrive: Pen drive का इतिहास और विकास, कैसे तीन इंजीनियरों ने बनाया USB फ्लैश ड्राइव जो आज 2TB तक स्टोर कर सकता है - जानिए पूरी कहानी और तकनीकी राज
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History of Pendrive

By Supriya Pandey

History of Pendrive: यदि आप कंप्यूटिंग के शुरुआती युग से जुड़े हैं, तो डिस्केट और उसकी सीमित स्टोरेज ही याद होगी। इंटरनेट और क्लाउड के बाद भी USB ड्राइव यानी पेन ड्राइव ने अपना खास स्थान बनाए रखा है। छोटी सी डिवाइस में आज इतनी क्षमता समा जाती है कि पहले के सैकड़ों ऑप्टिकल डिस्क और फ्लॉपी की जगह ले लेती है, और इसने पोर्टेबल डेटा ले जाने के तरीके ही बदल दिए हैं।

आविष्कार की कथा - Birth of the Pen Drive

पेन ड्राइव का रूप और इसे बाजार तक पहुंचाने का श्रेय इजरायली फर्म M-Systems और वहां के इंजीनियरों को जाता है। कंपनी के अभियंताओं ने 1999 में इसकी अवधारणा का पेटेंट दर्ज कराया और उसके बाद इसे व्यावसायिक रूप में सन् 2000 के आसपास पेश किया गया। शुरुआती मॉडल्स ने USB पोर्ट के जरिए बिना किसी बाहरी बिजली के आसान और तेजी से डेटा ट्रांसफर संभव बनाया, जो उस समय के विकल्पों से बहुत आगे था।

कौन थे वे इंजीनियर - The Inventors

M-Systems के उन प्रमुख इंजीनियरों में अमीर बान, दोव मोरान और ओरॉन ओगांड के नाम प्रमुख हैं, जिनका काम पेन ड्राइव को व्यवहार्य व लोकप्रिय बनाना था। इनके प्रयोग और विचारों ने एक हल्की, टिकाऊ और आसानी से इस्तेमाल की जा सकने वाली स्टोरेज डिवाइस का मार्ग प्रशस्त किया।

तकनीक कैसे बदली - Evolution of Speed and Capacity

पेन ड्राइव के साथ ही USB और फ्लैश मेमोरी टेक्नॉलॉजी ने तेज प्रगति की। शुरुआती सालों में USB 1.x की सीमाओं के बाद USB 2.0 और फिर USB 3.x व Type-C ने डेटा ट्रांसफर स्पीड और विश्वसनीयता दोगुनी-तिगुनी की। समय के साथ मेमोरी चिप्स की घनत्व बढ़ती गई और 2010s के दशक में 1TB व फिर 2TB तक के पेन ड्राइव बाजार में आ गए, जिससे छोटे आकार में विशाल स्टोरेज संभव हुआ।

पेन ड्राइव का काम करने का तरीका- How It Works

आधुनिक USB ड्राइव में नॉन-वोलेटाइल फ्लैश मेमोरी चिप्स और एक controller सर्किट लगा होता है। जब आप डिवाइस को कंप्यूटर से जोड़ते हैं, तो कंट्रोलर, कंप्यूटर के साथ प्रोसेस करता है और फ्लैश मेमोरी में डेटा को पढ़ने-लिखने का काम संभालता है। Pendrive में लाखों बार Write/Rewrite की क्षमता रहती है, पर यह उपयोग और चिप टेक्नोलॉजी पर निर्भर करता है। कंट्रोलर की वजह से ही अलग-अलग फाइल सिस्टम, एरर-करेक्शन और स्पीड-ऑप्टिमाइज़ेशन संभव होते हैं।

गति और क्षमता की बढ़त - Speed and Capacity Gains

टेक्नॉलॉजी में सुधार के साथ USB इंटरफेस और फ्लैश चिप आर्किटेक्चर दोनों ने छलांग लगाई। USB के नए वर्जन और बेहतर NAND-आधारित चिप्स के कारण बड़ी फाइल ट्रांसफर और उच्च रीड/राइट स्पीड सम्भव हुई। निर्माताओं ने छोटे आकार के पैकेज में कई लेयर की मेमोरी और उन्नत कंट्रोलर लगाए, जिससे 2TB जैसे साइज़ भी रोजमर्रा के उपयोग के लिए उपलब्ध हो गए।

सुरक्षा और जोखिम - Security and Risks

आधुनिक पेन ड्राइव में हार्डवेयर-लेवल या सॉफ़्टवेयर-आधारित एन्क्रिप्शन फीचर दिए जाते हैं, ताकि संवेदनशील फाइलें चोरी या अनधिकृत एक्सेस से बच सकें। फिर भी, अनटेस्टेड डिवाइस या बिना एंटीवायरस-स्कैन के कंप्यूटरों में उपयोग करने पर वायरस फैलने का खतरा रहता है। इसलिए सुरक्षित पासवर्ड-प्रोटेक्शन, एन्क्रिप्शन और नियमित बैकअप का पालन करना ज़रूरी है।

नए USB standard और High density memory chips ने क्षमता और स्पीड दोनों बढ़ाई। कुछ प्रमुख ब्रांडों ने 1TB और उसके बाद 2TB मॉडल पेश किए और कनेक्टिविटी में Type-C जैसे पोर्ट्स ने उपयोग को और सहज बनाया। इन बदलावों ने पेन ड्राइव को सिर्फ फाइल-ट्रांसफर टूल से आगे बढ़कर एक भरोसेमंद डेटा-कम्पैनियन बना दिया है।

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