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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: श्रमिकों से नहीं लिया जाए बसों-ट्रेनों का किराया, राज्य और रेलवे करें खाने की व्यवस्था

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: श्रमिकों से नहीं लिया जाए  बसों-ट्रेनों का किराया, राज्य और रेलवे करें खाने की व्यवस्था
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By NPG News

नई दिल्ली 28 मई 2020 प्रवासी मज़दूरों के मुद्दों पर आज सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई और शीर्ष अदालत ने अंतरिम आदेश दिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मजदूरों से ट्रेन या बस का कोई किराया न लिया जाए, राज्य सरकार किराया दे। उन्हें राज्य द्वारा भोजन प्रदान किया जाना चाहिए। ट्रेनों में रेलवे द्वारा भोजन और पानी उपलब्ध कराया जाना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने अपने अंतरिम निर्देश में कहा कि ट्रेन या बसों में चढ़ने से लेकर घर पहुंचने तक इन सभी प्रवासी कामगारों को खाना संबंधित राज्य और केंद्रशासित प्रदेश सरकारें उपलब्ध करायें। न्यायालय ने राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों से कहा कि वे अपने यहां फंसे प्रवासी मजदूरों को भोजन उपलब्ध कराने के लिये स्थान और अवधि को प्रचारित करें।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा कि जिस राज्य से मजदूर चलेंगे वहां स्टेशन पर उन्हें खाना और पानी मुहैया कराने की जिम्मेदारी संबंधित प्रदेश सरकार की होगी जबकि ट्रेन में सफर के दौरान इसे रेलवे को उपलब्ध कराना होगा। पीठ ने यह भी कहा कि बसों में यात्रा के दौरान भी इन मजदूरों को भोजन और पानी उपलब्ध कराना होगा।

पीठ ने राज्यों को निर्देश दिया कि वे प्रवासी श्रमिकों के पंजीकरण को देखें और यह सुनिश्चित करें कि यथाशीघ्र ट्रेन या बसों में उन्हें उनके गृह राज्य भेजा जाए। पीठ ने कहा कि इस संबंध में सारी सूचना सभी संबंधित लोगों तक प्रचारित की जाए। न्यायालय ने कहा कि फिलहाल उसका सरोकार प्रवासी मजदूरों की परेशानियों से है, जो अपने पैतृक स्थल पर जाना चाह रहे हैं।

पीठ ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि संबंधित राज्य और केंद्रशासित प्रदेश की सरकारें कदम उठा रही हैं, लेकिन पंजीकरण, उनकी यात्रा और उन्हें भोजन-पानी उपलब्ध कराने में कई कमियां पाई गई हैं। इससे पहले न्यायालय ने इन प्रवासी श्रमिकों की दयनीय स्थिति का स्वत: संज्ञान लेकर की जा रही मामले की सुनवाई के दौरान केन्द्र से अनेक तीखे सवाल पूछे। न्यायालय ने जानना चाहा कि आखिर इन कामगारों को अपने पैतृक शहर पहुंचने में कितना समय लगेगा।

तीन सदस्यीय पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान केन्द्र की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता से जानना चाहा कि आखिर इन श्रमिकों की यात्रा के भाड़े के भुगतान को लेकर किस तरह का भ्रम है। पीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि इन कामगारों को अपनी घर वापस की यात्रा के भाड़े का भुगतान करने के लिये बाध्य नहीं किया जाए।

पीठ ने कामगारों की दुर्दशा पर चिंता वयक्त करते हुये मेहता से सवाल किया, ”सामान्य समय क्या है? यदि एक प्रवासी की पहचान होती है, तो यह तो निश्चित होना चाहिए कि उसे एक सप्ताह के भीतर या दस दिन के अंदर पहुंचा दिया जाएगा? वह समय क्या है? ऐसे भी उदाहरण हैं जब एक राज्य प्रवासियों को भेजती है, लेकिन दूसरे राज्य की सीमा पर उनसे कहा जाता है कि हम प्रवासियों को नहीं लेंगे, हमें इस बारे में एक नीति की आवश्यकता है।”

पीठ ने इन कामगारों की यात्रा के भाड़े के बारे में सवाल किये और कहा, ”हमारे देश में बिचौलिया हमेशा ही रहता है। लेकिन हम नहीं चाहते कि जब भाड़े के भुगतान का सवाल हो तो इसमें बिचौलिया हो। इस बारे में एक स्पष्ट नीति होनी चाहिए कि उनकी यात्रा का खर्च कौन वहन करेगा।”

इससे पहले, सुनवाई शुरू होते ही सॉलिसीटर जनरल ने केन्द्र की प्रारंभिक रिपोर्ट पेश की और कहा कि एक से 27 मई के दौरान इन कामगारों को ले जाने के लिए कुल 3,700 विशेष ट्रेन चलाई गई और सीमावर्ती राज्यों में अनेक कामगारों को सड़क मार्ग से पहुंचाया गया। उन्होंने कहा कि बुधवार (27 मई) तक करीब 91 लाख प्रवासी कामगारों को उनके पैतृक घरों तक पहुंचाया गया है।

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