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जिद का पक्का.. बेहद जूनूनी.. वो रोहित जिसकी एंकरिंग के सब मुरीद थे.. पर पहले टेस्ट में फेल करार दिया गया था.. हँसाता रोहित जो सबको रुला गया

जिद का पक्का.. बेहद जूनूनी.. वो रोहित जिसकी एंकरिंग के सब मुरीद थे.. पर पहले टेस्ट में फेल करार दिया गया था.. हँसाता रोहित जो सबको रुला गया
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By NPG News

नई दिल्ली,30 अप्रैल 2021। जिस रोहित सरदाना को आप टीव्ही पर धारदार तर्क और बेहद तंज तल्ख के साथ सवाल करते देखते थे, जिसके काम के प्रति समर्पण ने लाखों को उसका प्रशंसक बनाया तो कईयों के लिए रोहित के प्रति सद्भाव नहीं रहा, जिन्हें सद्भाव नहीं रहा उनमें से कई ट्वीटर और फ़ेसबुक पर अब भी ज़हर ही उगल रहे हैं, हालांकि इसके साथ यह भी जोड़िए कि ऐसे लोग दरअसल और पहचाने जा रहे हैं, और यह पढ़ते हुए मैं यह यकीनन लिख सकता हूँ कि वो मोहब्बत इन नफरतबाजों को कभी नहीं मिलेगी जो रोहित को नसीब हुई है।
यह पहला मौक़ा था जबकि देश ने लाईव चैनल पर अपने मनपसंद एंकरों को बिलख बिलख कर रोते देखा.. हंसता खिलखिलाता रोहित सबको रुला गया।अंजना चित्रा नवजोत सईद अंसारी कौन था जो रोया नही, आज तक का न्यूज़ रुम हो या इनपुट सेक्शन या कि आउटपुट, और इनसे भी बाहर वो दुनिया जो रोहित सरदाना के एंकरिंग की मुरीद थी, सामने कोई हो पर उनके तीखे सवालों का मिज़ाज थमता नहीं था उस रोहित के लिए वो दुनिया भी पलकों को भीगा महसूस कर रही थी।
रोहित दरअसल बस एंकर नहीं थे, वह खुद से खुद को बनाने का अनूठा दृष्टांत थे। खुद को तलाशते हुए रोहित NSD पहुँच गए और वर्कशॉप छोड़ वापस घर भी आ गए। रोहित फिर पहुँचे हिसार जहां उन्होंने जर्नलिज़्म की क्लास ज्वाईन की। रोहित को खुद की और अपने खुद को स्थापित करने की कैसी शिद्दत थी यह हिसार के उस पहले दिन के क्लास के क़िस्से से समझ आता है। टीचर आए और पच्चीस की स्टेंथ वाली क्लास से पूछा
“क्यों भई क्यों बनना है पत्रकार..”
रोहित को छोड़ सबने जो कहा उसका सार था –
“दुनिया बदलनी है सर”
टीचर की निगाह रोहित पर टिकी और फिर उससे पूछा –
“के भई.. तू घणां चुप हो रक्खा.. तैने ना बदलनी दुणिया”
रोहित खड़े हुए और उन्होंने कहा
“दुनिया का तो जो है जी.. जो भी हो.. मुझे दुनिया को खुद को दिखाना है.. दुनिया बदलने का उसके बाद सोच लेंगे”
हिसार में ही रोहित आकाशवाणी से जुड़े, रेडियो के ड्रामा आर्टिस्ट रहे। एफ़एम में आरजे का काम किया.. और फिर लोकल टीव्ही में भी। हिसार के लिए रोहित एक नाम हो गए थे, लेकिन ये रोहित को पता था कि जिस दुनिया को दिखाना है ये उस दुनिया का बेहद ही बहुत ही छोटा सा हिस्सा है।
फिर रोहित पहुँचे ई टीव्ही..पढ़ाई जारी रही.. वहाँ कुछ मसला ऐसा हुआ कि रोहित हैदराबाद भेज दिए गए। रोहित को यह बोल कर भेजा गया था कि एंकर बन जाओगे। वहाँ उनका एंकरिंग का टेस्ट हुआ और टेस्ट लेने वाले ने उन्हे फेल कर दिया।
पर रोहित थे वो.. थकना कहाँ जानता था.. हैदराबाद में ही कंटिन्यू किया और वीटी एडिटर का काम बेहद कुशलता से सीखा। जो टीव्ही की दुनिया या वेब मीडिया में वीडियो को जानते होंगे उन्हें मुकम्मल पता होगा कि वीटी एडिटर होना क्या होता है। रोहित की तब 32 सौ रुपए तनखा थी कट कर करीब 2900 आता था, यह अलहदा है कि हर महिने रोहित के पापा उसे पाँच साढ़े पाँच हज़ार भेजते थे।
रोहित ने तब रंग जमाया जब उसने एक खबर जो शायद गुजरात इलेक्शन की थी उसे इटीव्ही के सभी 11 चैनलों पर एक वक्त पर और हर चैनल की भाषा में ऑन एयर करा दी।
इसके ठीक कुछ दिन बाद शायद तीसरे या चौथे दिन रोहित ने रात दस बजे की पहली बुलेटिन पढी जो लाईव्ह थी, टीवी की भाषा में उसे कैप्सूल बुलेटिन कहते हैं। और इस बुलेटिन को करने के बाद वो इटीव्ही का नियमित एंकर भी हो गए। 2001-2 का सफर 2004 के शुरु होने तक चला और जबकि रोहित को उनकी आख़री तनखा मिली तो वह थी 72 हज़ार रुपए। रोहित सहारा गए फिर जी, और आख़िर तक वे आजतक पर थे।
रोहित टीव्ही पर चाहे जितने आक्रामक हों पर न्यूज़रूम के भीतर वे बेहद विनम्र और सबके प्रति सजग और स्नेहिल रहते थे।
ईटीव्ही और सहारा में काम कर चुके और फिलहाल NBT में कार्यरत नीरज बधवार ने फेसबुक पर नोट छोड़ा है, उसमें नीरज ने लिखा है –
“ये दुखद ख़बर सुनना किसी सदमे से कम नहीं है। ऐसा लग रहा है किसी ने एक अच्छी किताब के बीच से पन्ने फाड़कर उसे ख़त्म कर दिया हो और आप सोचने लगें कि इस कहानी का ऐसा अंत तो नहीं होना चाहिए था।”
वाक़ई एक किताब जो बेहद खूबसूरत थी.. जिसके कई पन्ने पढे जाने थे.. वो फट गई है..।

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