नईदिल्ली I भारतीय शटलर एच.एस प्रणॉय ने हाल ही में विश्व बैडमिंटन में अपनी सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग हासिल की, अब उनकी नजरें जल्द ही वर्ल्ड नंबर 1 बनने पर हैं। वर्ल्ड रैंकिंग में नंबर 7 पर मौजूद इस खिलाड़ी का कहना है कि इस साल के अंत तक वह अपनी परफॉर्मेंस में निरंतरता बनाकर पहला पायदान हासिल करने की पूरी कोशिश करेंगे। 30 साल के प्रणॉय के पिछले कुछ साल लाजवाब रहे हैं। थॉमस कप जीतने के साथ उन्होंने कई बड़े टूर्नामेंट में लाजवाब प्रदर्शन किया है जिस वजह से वह इस मुकाम तक पहुंचने में कामयाब रहे। प्रणॉय ने लाइव हिंदुस्तान से खास बातचीत में जल्द नंबर-1 बनने की इच्छा जताई है, इसी के साथ उन्होंने अपने करियर के कई टर्निंग प्वाइंट्स और ओलंपिक 2024 की तैयारियों पर भी बात की। उनके साक्षात्कार के कुछ अंश इस प्रकार हैं-
मैं करियर बेस्ट रैंकिंग हासिल करने के बाद काफी अच्छा महसूस कर रहा हूं। 2018 के बाद मेरी टॉप-8 में फिर से वापसी हुई है। पहले मेरा करियर हाईएस्ट रैंकिंग 8 थी। 2018 के बाद वापस टॉप-8 में आकर काफी अच्छा लग रहा है। पिछला साल काफी अच्छा बीता और इस साल उम्मीद करूंगा कि मैं और अच्छी परफॉर्मेंस दे सकूं। वर्ल्ड नंबर-1 बनने की पूरी कोशिश है, उम्मीद करता हूं कि इस साल उस मुकाम तक पहुंच पाऊं। मेरे पिछले 4-5 साल काफी चुनौतीपूर्ण थे...उस बीच में कोविड-19 भी आ गया था तो ये सफर मेरे लिए काफी मुश्किल था। 2021-22 में मेरी रैंकिंग 32-33 तक चली गई थी। वहां से टॉप-10 में आना काफी मुश्किल था। मैंने पिछले डेढ साल में काफी मेहनत की जिसका मुझे ये फल मिला।
करियर में बहुत सारे टर्निंग प्वाइंट हुए हैं...एक टर्निंग प्वाइंट से मेरा पूरा करियर नहीं बदला। अगर बात करूं तो 2010 में जो यूथ ओलंपिक हुआ था वो मेरे करियर का पहला टर्निंग प्वाइंट था। इसके बाद 2014-15 में मुझे जो इंटरनेशनल टूर्नामेंट्स में परफॉर्म करने का मौका मिला तो वो एक टर्निंग प्वाइंट कह सकते हैं। उससे मुझे सुपर सीरीज में मौका मिला। इसके अलावा 2017 मेरे लिए बहुत बड़ा साल था, उस साल मैंने काफी अच्छा परफॉर्म किया था जिस वजह से अगले साल में टॉप-10 में आया था। पिछले साल थॉमस कप भी करियर का एक बड़ा टर्निंग प्वाइंट था। टीम के लिए भी और निजी तौर पर मेरे लिए भी। थॉमस कप जीतने के बाद काफी कॉन्फिडेंस मिला था। इसके बाद बाकी जो टूर्नामेंट मिले उसमें काफी अच्छा परफॉर्म कर पाया।
मुझे लगता है कि बैडमिंडटन एक प्रतिस्पर्द्धी खेल है..मेसे सीनियर्स ने उस साल काफी अच्छा किया था। भारत में ही इस खेल में काफी कॉम्पिटीशन है तो हमेशा यह कठिन होता है। अगर आप लगातार परफॉर्म नहीं करेंगे तो टूर्नामेंट मिस होने के ज्यादा चांस रहेंगे। तो मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ...कॉमनवेल्थ गेम्स के कटऑफ से पहले मेरी रैंकिंग थोड़ी नीचे थी। खेल ऐसा ही है। हर बार आपको आपके रास्ते बंद मिलेंगे, लेकिन मैंने हार नहीं मानी और अपने खेल पर काफी मेहनत की। फिटनेस पर भी मैंने काफी ध्यान दिया जिसका असर मेरे खेल पर दिखा।
वो भी काफी बड़ा इवेंट था...मैंने इससे पहले ये टूर्नामेंट खेला नहीं था। ये मेरे लिए काफी अच्छा अनुभव था। इस टूर्नामेंट में वर्ल्ड के टॉप-8 खिलाड़ी क्वालीफाई होते हैं जिनमें मैं एक था और यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी। इससे यह पता चलता है कि पिछले साल मेरे खेल में काफी निरंतरता थी। इस टूर्नामेंट से मेरा आत्मविश्वास बढ़ा और मेहनत जारी रखने का साहस मिला।
सुदीरमन कप निश्चित रूप से हमारे लिए निराशाजनक रहा, लेकिन टीम इवेंट्स ऐसे ही होते हैं। दुर्भाग्य से इस बार हमें मोमेंटम नहीं मिला...कई करीबी मुकाबले हमारे हक में नहीं रहे। अगर एक भी क्लोज गेम हमारे हक में आ जाता तो शायद नतीजा कुछ और हो सकता था। जैसे कि चीन ताइपी के खिलाफ पहला मिक्स डबल्स में हमने मैच प्वाइंट सर्व किया था तो अगर वो मैच हम जीत जाते तो काफी कुछ बदल जाता। इसके बाद ग्रुप-स्टेज का पूरा समीकरण भी बदल सकता था। हम यहां पर काफी अच्छी टीम लेकर आए थे, हमारी टीम स्पिरीट भी काफी अच्छी थी। शायद हमारे लिए यही ज्यादा जरूरी है..रिजल्ट्स तो आगे भी आएंगे और जरूर आएंगे। पिछले साल थॉमस कप और एशियन बैडमिंटन चैंपियनशिप में हमने अच्छा परफॉर्म किया है। दोनों टूर्नामेंट में हमने मेडल जीते हैं..तो में एक टीम के रूप में बना रहना है और टीम स्पिरीट बनाए रखनी है। बस ये हमारे लिए एक ऑफ टूर्नामेंट था। मैं वादा करता हूं कि हम अगले टूर्नामेंट में जोरदार वापसी करेंगे।
मुझे लगता है कि आज कल के खिलाफ काफी परिपक्व है और जिस लेवल पर हम खेलते हैं उस पर इस तरह की मेचयोरिटी होनी चाहिए। हम टीम इवेंट में हाल-फिलहाल में काफी अच्छा परफॉर्म कर रहे हैं क्योंकि हमारा कम्युनिकेशन काफी बेहतर हुआ है। थॉमस कप में भी हमें इसी वजह से सफलता मिली। हम अब खुलकर एक दूसरे से कुछ भी कह सकते हैं। हमें बहुत बार आपस में खेलना होता है जैसे लक्ष्य सेन और किदांबी श्रीकांत। हम तीनों बहुत सारे इंटरनेशनल टूर्नामेंट में एक साथ खेलते हैं। बस यह बात होती है कि हम एक दूसरे को प्रोफेशनली कैसे लेते हैं। आपको समझने की जरूरत होती है कि वर्ल्ड बैडमिंटन कैसे काम करता है। बहुत बार ऐसा हो सकता है कि आपको आपने देश के खिलाड़ी के खिलाफ ही खेलना पड़े। तो मुझे लगता है कि हमारे खिलाड़ियों के बीच वो समझ है। जब टीम के लिए खेल रहे होते हैं तो हम साथ होते हैं और जब अकेले खेल रहे होते हैं तो हम सब अपनी जीत के बारे में ही सोचते हैं।
निश्चित ओलंपिक के लिए तैयार कर रहा हूं...मगर अभी इसमें थोड़ा समय है। अभी मई में क्वालीफिकेशन पीरियड शुरू हुआ है। मुझे पूरा भरोसा है कि इस बार मैं ओलंपिक खेलूंगा। मैं अपने प्रदर्शन को जारी रखूंगा..नहीं तो इस लेवल पर टिके रहना मुश्किल है। कोशिश करूंगा अगला एक साल मैं बिना किसी इंजरी के खेलूं और अगर मैं ऐसा कर पाया तो निश्चित रूप से मैं आपको ओलंपिक में खेलता दिखाई दूंगा। ओलंपिक क्वालीफिकेशन के समय काफी टूर्नामेंट रहेंगे जिसमें से जरूरी एशियन गेम्स और वर्ल्ड चैंपियनशिप ही रहेंगे जो सितंबर-अक्टूबर में हैं। इसके अलावा भी कई इंपोर्टेंस टूर्नामेंट है जो ओलंपिक क्वालीफिकेशन में रहेंगे।
निश्चित रूप से..हम दोनों इस खेल में काफी साल से हैं और एक दूसरे के साथ भी खेलते हुए लंबा समय हो गया है। हम काफी टूर्नामेंट खेलने के लिए एक साथ जाते हैं। बड़े इवेंट्स में वो काफी अच्छी तैयारी करके आती है। कोई भी उनसे सीख सकता है कि बड़े इवेंट से पहले किस तरह की तैयारी करनी होती है। मैंने भी उसकी तैयारियों से काफी कुछ सीखा है और इन तैयारियों की वजह से ही वो इतनी बड़ी खिलाड़ी बनी है। मुझे लगता है कि पिछले 6 से 10 सालों में बैडमिंटन काफी पॉपुलर हो गया है। मुझे लगता है कि क्रिकेट के बाद अगला स्पोर्ट बैडमिंटन ही होगा मेरे हिसाब से। काफी सारे युवा खिलाड़ी इसे खेलना शुरू कर रहे हैं। पीवी सिंधु-सायना नेहवाल जैसे बड़े नाम देखकर कई बच्चों ने इस खेल को अपनाया है। उनके लिए मेरा बस यही मैसेज रहेगा कि बैडमिंटन काफी जिज्ञासु खेल है तो काफी मेहनत करना पड़ेगा वर्ल्ड टॉप-10 में खेलने के लिए। तो मेहनत करते रहो अवसर आपके पास आते रहें।