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स्पेशल स्टोरीः राम वन पथ गमन मार्ग के 9 महत्वपूर्ण स्थलों को विकसित करने 137 करोड़ रुपए का कांसेप्ट प्लान तैयार, कोरिया से बस्तर तक भगवान राम से जुड़े धार्मिक स्थलों को किया जाएगा डेवलप

स्पेशल स्टोरीः राम वन पथ गमन मार्ग के 9 महत्वपूर्ण स्थलों को विकसित करने 137 करोड़ रुपए का कांसेप्ट प्लान तैयार, कोरिया से बस्तर तक भगवान राम से जुड़े धार्मिक स्थलों को किया जाएगा डेवलप
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By NPG News

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रायपुर, 27 अगस्त 2020। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण हो रहा है। मगर भगवान राम की ननिहाल कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ में सरकार ने उनसे जुड़े धार्मिक स्थलों को पहले ही विकसित करने की योजना बना ली थी। सीएम भूपेश बघेल के निर्देश पर मुख्य सचिव आरपी मंडल खुद इसका योजना की मानिटरिंग कर रहे हैं। मंडल ने अधिकारियों के साथ सरगुजा से लेकर बस्तर संभाग में जाकर उन स्थलों का मुआयना कर चुके हैं, जिन्हें ऐतिहासिक और धार्मिक स्थलों के रूप में विकसित करना है।
प्रथम चरण में इन नौ महत्वपूर्ण स्थलों को विकसित करने के लिए राज्य सरकार ने 137 करोड़ रूपए का ‘कान्सेप्ट-प्लान‘ तैयार किया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की मंशा के अनुरूप माता कौशल्या मंदिर के मूलस्वरूप को यथावत रखते हुए इस माह के तीसरे सप्ताह से भव्य और और आर्कषक मंदिर के निर्माण का काम शुरू होने जा रहा है। वहीं इस क्षेत्र में सौन्दर्यीकरण का काम बीते साल के दिसम्बर माह से ही शुरू कर दिया गया है। राम वन गमन पर्यटन परिपथ के लिए राज्य शासन द्वारा गत वर्ष पांच करोड़ रूप्ए और इस वर्ष 10 करोड़ रूपए का बजट प्रावधान किया है। सुप्रीम कोर्ट से राम मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त होने और भव्य राम मंदिर निर्माण शिलान्यास के साथ ही अब छत्तीसगढ़ में राम वनगमन पर्यटन परिपथ के निर्माण से छत्तीसगढ़ की देश भर में खास पहचान बनेगी। भगवान श्रीराम की माता कौशल्या मंदिर के साथ ही छत्तीसगढ़ में कोरिया से बस्तर के अंतिम छोर तक राम वन गमन पथ का विकास होगा। इससे प्रदेश के पर्यटन का भी तेजी से विकास होगा।
राम मंदिर के शिलान्यास से पहले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल परिवार के साथ रायपुर से लगे चंदखुरी में स्थित मां कौशल्या मंदिर पहंुचे थे। उन्होंने वहां होने वाले निर्माण कार्यों का निरीक्षण किया और अधिकारियों को निर्देश दिया कि लोगो की आस्था के अनुरूप इस मंदिर स्थल को विकसित करना है।
राम-वन-गमन-पथ के निर्माण से निश्चित ही राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिलेगी। वहीं राम वन गमन परिपथ को एक पर्यटन सर्किट के तौर पर विकसित किए जाने का निर्णय रोजगार मुहैया कराने की दिशा में भी एक कारगर प्रयास होगा। विभिन्न शोध प्रकाशनों के अनुसार प्रभु श्रीराम ने छत्तीसगढ़ में वनगमन के दौरान लगभग 75 स्थलों का भ्रमण किया। जिसमें से 51 स्थल ऐसे हैं, जहां श्री राम ने भ्रमण के दौरान रूककर कुछ समय बिताया था। राम वन गमन पथ में आने वाले छत्तीसगढ़ के नौ महत्वपूर्ण स्थलों सीतामढ़ी-हरचैका (कोरिया), रामगढ़ (अम्बिकापुर) , शिवरीनारायण (जांजगीर-चांपा), तुरतुरिया (बलौदाबाजार), चंदखुरी (रायपुर), राजिम (गरियाबंद), सिहावा-सप्त ऋषि आश्रम (धमतरी) और जगदलपुर(बस्तर) और रामाराम (सुकमा) सहित उन इक्यांवन स्थलों को चिन्हाकिंत कर विकसित करने की योजना पर काम चल रहा है।
अयोेध्या की रानी एवं छत्तीसगढ़ की अस्मिता के प्रतीक माता कौशल्या के पुत्र भगवान श्री राम का भांजा के स्वरूप में गहरा नाता हैै। इसका जीता-जागता उदाहरण है, छत्तीसगढ़ में सभी जाति समुदाय के लोग बहन के पुत्र को भगवान के प्रतिरूप अर्थात भांजा मानकर उनका चरण पखारते हैं। मोक्ष की प्राप्ति के लिए प्रभु श्रीराम से कामना करते हैं। यह और भी प्रबल तब होता है, जब गांव-शहर-कस्बा कहीं भी हो कोई भी जाति अथवा समुदाय के हो मांमा-भांजा के बीच के रिश्ते को पूरी आत्मीयता के साथ निभाया जाता है। मांमा के साथ किसी भांजे का यह रिश्ता कई बार माता-पिता के लिए पुत्र से भी ज्यादा घनिष्ठ स्वरूप में दिखाई पड़ता है।
त्रेतायुग में जब छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम कोसल व दण्डकारण्य के नाम से विख्यात था, तब कोसल नरेश भानुमंत थे। वाल्मिकी रामायण के अनुसार अयोध्यापति युवराज दशरथ के राज्याभिषेक के अवसर पर कोसल नरेश भानुमंत को भी अयोध्या आमंत्रित किया गया था। इस अवसर पर कोसल नरेश की पुत्री एवं राजकन्या भानुमति भी अयोघ्या गई हुई थी। युवराज दशरथ कोसल राजकन्या भानुमति के सुंदर और सौम्य रूप को देखकर मोहित हो गए और कोसल नरेश महाराज भानुमंत से विवाह का प्रस्वाव रखा। युवराज दशरथ और कोसल की राजकन्या भानुमति का वैवाहिक संबंध हुआ। शादी के बाद कोसल क्षेत्र की राजकुमारी होने की वजह से भानुमति को कौशल्या कहा जाने लगा। अयोध्या की रानी इसी कौशल्या की कोख से मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम का जन्म हुआ। तभी ममतामयी माता कौशल्या को तत्कालीन कोसल राज्य के लोग बहन मानकर अपने बहन के पुत्र भगवान श्री राम को प्रतीक मानकर भांजा मानते है और उनका पैर छूकर आशीर्वाद लेते है।
कालांतर छत्तीसगढ में स्मृतिशेष आठवी-नौंवी सदी में निर्मित माता कौशल्या का भव्य मंदिर राजधानी रायपुर से 27 किलोमीटर दूर आरंग विेकासखण्ड के ग्राम चन्दखुरी में स्थित है। चंदखुरी भी रामायण से छत्तीसगढ़ को सीधे जोड़ता है। रामायण के बालकांड के सर्ग 13 श्लोक 26 में आरंग विकासखंड के तहत आने वाले गांव चंदखुरी का जिक्र मिलता है। माना जाता है कि चन्दखुरी सैकड़ों साल पहले चन्द्रपुरी अर्थात् देवताओं की नगरी के नाम से जानी जाती थी। समय के साथ चन्द्रपुरी, चन्द्रखुरी हो गया जो चन्द्रपुरी का अपभ्रंश है। पौराणिक दृष्टि से इस मंदिर का अवशेष सोमवंशी कालीन आठवी-नौंवी शताब्दी के माने जाते है। इसके अलावा छत्तीसगढी संस्कृति में राम का नाम रचे-बसे है। तभी तो जब एक दूसरे से मिलते समय चाहे रिश्ते-नाते हो अथवा अपरिचित राम-राम कका, राम-राम काकी, राम-राम भैइया जैसे उच्चारण से अभिवादन आम तौर पर देखने सुनने को मिल ही जाता है।
छत्तीसगढ़ के ग्राम चन्दखुरी की पावन भूमि में प्रभु श्रीराम की जननी माता कौशल्या का दुर्लभ मंदिर देश और दुनिया में एक मात्र मंदिर है। यह छत्तीसगढ़ की गौरवपूर्ण अस्मिता का प्रतीक है। प्रकृति की अनुपम छटा बिखेरते इस मंदिर के गर्भ गृह में माता कौशल्या की गोद में बालरूप में प्रभु श्रीराम जी की वात्सल्य प्रतिमा श्रद्धालुओं एवं भक्तों के मन को सहज ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती है। वहीं पूर्वी छत्तीसगढ़ के महानदी, जोंक नदी और शिवनाथ नदी के संगम स्थ्ल शिवरीनारायण क्षेत्र में रामनामी समुदाय में भगवान श्री राम के प्रति अकूत प्रेम एवं अराधना को परिलक्षित करता है।
स्मरणीय तथ्य है कि छत्तीसगढ़ का प्राचीनतम नाम दक्षिण कोसल था। रामायण काल में छत्तीसगढ़ का अधिकांश भाग दण्डकारण्य क्षेत्र के अंतर्गत आता था। यह क्षेत्र उन दिनों दक्षिणापथ कहलाता था। शोधकर्ताओं द्वारा वनवास काल में राम चन्द्र जी के यहां आने का प्रमाण मिलता है। शोधकर्ताओं के शोध किताबों से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रभु श्रीराम ने अपने वनवास काल के 14 वर्षों में से लगभग 10 वर्ष से अधिक समय छत्तीसगढ़ में व्यतीत किया था। छत्तीसगढ़ के लोकगीतों में देवी सीता की व्यथा, दण्डकारण्य की भौगोलिकता और वनस्पतियों के वर्णन भी मिलते हैं। माना जाता है कि भगवान श्रीराम ने उत्तर भारत से छत्तीसगढ़ में प्रवेश करने और यहां के विभिन्न स्थानों पर चैमासा व्यतीत करने के बाद दक्षिण भारत में प्रवेश किया था। इसलिए छत्तीसगढ़ को दक्षिणापथ भी कहा जाता है।

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