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भिखारी देख DSP ने रोकी गाड़ी तो निकला उन्हीं के बैच का ऑफिसर…..10 साल से भीख मांग रहा था अफसर, अपने जमाने का नेशनल शूटर रहा है….पिता-चाचा दोनों रहे हैं IPS अफसर

भिखारी देख DSP ने रोकी गाड़ी तो निकला उन्हीं के बैच का ऑफिसर…..10 साल से भीख मांग रहा था अफसर, अपने जमाने का नेशनल शूटर रहा है….पिता-चाचा दोनों रहे हैं IPS अफसर
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By NPG News

वो देखा है ना कभी-कभी भगवान भीखमंगे का वेष बदलकर आ जाते हैं….और फिर भक्त उन्हें पहचानकर कभी पैर में लिपट जाता है तो कभी सीने से लग जाता है…। टीवी में दिखे ऐसे कई सीन लोगों को भावुक भी करते हैं और आस्था भी बढ़ाते हैं…ग्वालियर में ऐसा ही एक वाकया हुआ..जिसमें भीखमंगा भगवान तो नहीं, बल्कि एक पुलिस अफसर था, जिसे उसके दो दोस्तों ने जब पहचानकर सीने से लगाया तो मौजूद लोगों की आंखें डबडबा गयी।

ग्वालियर 13 नवंबर 2020। मध्यप्रदेश के ग्वालियर से एक अनूठी खबर आयी है। जहां डीएसपी सड़क किनारे ठंड में ठिठुरते और खाने की तलाश में भटकते एक भीखमंगे के पास पहुंचे तो दंग रह गए. वो भिखारी उनके ही बैच का ऑफिसर निकला।

दरअसल, ग्वालियर में उपचुनाव की मतगणना के बाद डीएसपी रत्नेश सिंह तोमर और विजय सिह भदौरिया झांसी रोड से निकल रहे थे। जैसे ही दोनों बंधन वाटिका के फुटपाथ से होकर गुजरे तो उन्हें वहां एक अधेड़ उम्र का भिखारी ठंड से ठिठुरता दिखाई पड़ा। उसे देखकर अफसरों ने गाड़ी रोकी और उससे बात करने पहुंच गए। रत्नेश ने अपने जूते और डीएसपी विजय सिंह भदौरिया ने अपनी जैकेट दे दी. इसके बाद जब दोनों ने बातचीत शुरू की तो हतप्रभ रह गए. वह भिखारी डीएसपी के बैच का ही ऑफिसर निकला।

वह भिखारी के रूप में पिछले 10 सालों से लावारिस हालात में घूम रहा है. वह पुलिस अफसर रहा है. उसका नाम मनीष मिश्रा है. इतना ही नहीं 1999 बैच का वह पुलिस अधिकारी अचूक निशानेबाज था. जानकारी के मुताबिक मनीष मिश्रा एमपी के विभिन्न थानों में थानेदार के रूप में पदस्थ रहे हैं.

मनीष मिश्रा ने 2005 तक पुलिस की नौकरी की और वह अंतिम समय में दतिया में पोस्टेड थे. धीरे-धीरे अचानक उनकी मानसिक स्थिति खराब हो गई. घर वाले भी परेशान होने लगे. इलाज के लिए उनको जहां-जहां ले जाया गया वो वहां से भाग गए.

कुछ दिन बाद परिवार को भी नहीं पता चल पाया कि मनीष कहां चले गए. उनकी पत्नी भी उन्हें छोड़कर चली गई. बाद में उनकी पत्नी ने तलाक ले लिया. धीरे-धीरे वह भीख मांगने लगे. और भीख मांगते-मांगते करीब दस साल गुजर गए.मनीष के इन दोनों साथियों ने सोचा नहीं था कि ऐसा भी हो सकता है. मनीष दोनों अफसरों के साथ सन 1999 में पुलिस सब इंस्पेक्टर की पोस्ट पर भर्ती हुए थे. इसके बाद दोनों ने काफी देर तक मनीष मिश्रा से पुराने दिनों की बात करने की कोशिश की और अपने साथ ले जाने की जिद भी की. लेकिन वह साथ जाने को राजी नहीं हुए

इसके बाद दोनों अधिकारियों ने मनीष को एक समाजसेवी संस्था में भिजवाया. वहां मनीष की देखभाल शुरू हो गई है. इतना ही नहीं मनीष के भाई भी थानेदार हैं और पिता और चाचा एसएसपी के पद से रिटायर हुए हैं.जानकारी में पता चला कि उनकी एक बहन किसी दूतावास में अच्छे पद पर हैं. मनीष की पत्नी, जिसका उनसे तलाक हो गया, वह भी न्यायिक विभाग में पदस्थ हैं. फिलहाल मनीष के इन दोनों दोस्तों ने उसका इलाज फिर से शुरू करा दिया है. मनीष की यह दर्दभरी कहानी जो भी सुनता है वह हैरान रह जाता है.

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