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शहादत को सलाम : अगले महीने थी शहीद देवकरण की शादी, कार्ड भी बंट गये थे……शहीद सेवकराम की बिटिया का था अगले महीने बर्थडे….जिस पिता का हाथ थाम बिटिया को केक काटनी थी, उन्हीं हाथों से देनी पड़ी मुखाग्नि

शहादत को सलाम : अगले महीने थी शहीद देवकरण की शादी, कार्ड भी बंट गये थे……शहीद सेवकराम की बिटिया का था अगले महीने बर्थडे….जिस पिता का हाथ थाम बिटिया को केक काटनी थी, उन्हीं हाथों से देनी पड़ी मुखाग्नि
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By NPG News

रायपुर 25 मार्च 2021। नारायणपुर में हुए नक्सली हमले में शहीद 5 जवान अपने पीछे गमों का सैलाब छोड़ गये। किसी की अगले महीने शादी थी…तो किसी की बेटी का पहला जन्मदिन…कोई होली की छुट्टी पर घर आने वाला था…तो कोई हाल में ही घर से लौटकर मोर्चे पर तैनात हुआ था।

शहीद देवकरण की अगले महीने थी शादी

23 मार्च की शाम विस्फोट में देवकरण भी शहीद हुआ । देवकरण देहारी, उसी बस को चला था, जो नक्सलियों ने विस्फोट से उड़ा थी, हमले में मौके पर ही उसकी मौत हो गयी। तिरंगे में लिपटा शव जैसे ही घर की दहलीज पर आया, मां भानो देहारी रोते-रोते बार-बार बेसुध होने लगी। , जब भी होश में आती…कहती- मेरे बेटे को लाओ, उसकी शादी है, तैयारी करनी है मुझे। 70 साल के बुजुर्ग पिता विजय देहारी की हालत ऐसी हो गयी है कि चार लोग भी पकड़कर ठीक से खड़ा नहीं रख पा रहे। विजय शांत रहते-रहते बिलख पड़ते हैं, कहते हैं- उनका सहारा चला गया। देवकरण जिला पुलिस में चालक आरक्षक के तौर पर बहाल हुआ था। 5 साल से वो प्रदेश की सेवा कर रहा था, लेकिन 23 मार्च की शाम एक विस्फोट ने सब कुछ तबाह कर दिया। परिवार का लाडला देवकरण की शादी अगले माह होनी थी, शादी के कार्ड बंट चुके थे, खरीददारी हो चुकी थी, लेकिन सब कुछ धरा का धरा रह गया। बुधवार को अंतागढ़ अपने घर आने वाला भी था।

शहीद सेवकराम की बेटी का अगले महीने पहला बर्थडे था

नक्सली हमले में नारायणपुर के चवाड़ गांव का लाल सेवकराम सलाम भी शहीद हुआ। सेवकराम की 11 महीने की बिटिया है, अगले महीने पहला बर्थडे मनाने की जबरदस्त प्लानिंग थी उसकी, लेकिन एक धमाके ने सबकुछ तबाह कर दिया। 2007 से पुलिस सेवा में शामिल सेवकराम का छोटा भाई भी जवान है, जो जगदलपुर में पोस्टेड है। सेवकराम नारायणपुर के चवाड़ गांव का रहने वाला है। शहादत की खबर से पूरा गांव आंसुओं में डूबा है। पिछले सप्ताह ही सेवकराम अपनी पत्नी और बच्चे को चवाड़ गांव छोड़कर गया और होली मनाने के लिए घर आने वाला था, लेकिन इससे पहले ही नक्सली वारदात हो गयी। 11 माह की बिटिया ने शहीद पिता को मुखाग्नि दी। जिस बेटी के हाथों को पकड़कर पिता अगले महीने “केक” काटने वाला था, उसी हाथों को लेकर मुखाग्नि देते देख लोगों का कलेजा फट गया। नन्ही सी बच्ची का आरक्षक पिता अब तक नामांकरण भी नहीं करा पाया था, अगले महीने बर्थडे के साथ नामांकरण संस्कार भी होना था, लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।

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