Joint Family vs Single Family : पहले ज्यादा सदस्य तो भी टिकता था परिवार ...अब दो-तीन फिर भी बिखर रहा, आखिर क्यों ?
पहले के जमाने में 20 से 25 लोग एक साथ रहते हुए भी प्यार और बिना किसी समस्या के रह लेते थे. आज जहां हमारा परिवार 2-4 लोगों का है और हम उसे भी नहीं संभाल पा रहे हैं।
पहले के जमाने में 20 से 25 या इससे भी ज्यादा लोग एक साथ रहते हुए भी प्यार और बिना किसी समस्या के कैसे रह लेते थे?
आज जहां हमारा परिवार 2-4 लोगों का है और हम उसे भी नहीं संभाल पा रहे हैं। ऐसे में हम घर का काम करने के लिए मेड, बच्चों को संभालने के लिए बेबी सिटर और घर के बाकी कामों के लिए नौकर भी रख रहे हैं।
इतना सब कुछ होने के बाद भी घर में दिक्कतें और कलह होता रहता है। साथ ही आजकल रिश्तो के जल्दी खत्म होने की संख्या भी बढ़ गई है। आइए आपको बताते हैं इतने बड़े बदलावों के कारण।
संयुक्त परिवार से होता था फायदा
आज ज्यादातर लड़के और लड़कियां शादी के बाद परिवार से अलग रहने लगे हैं। इसका एक कारण प्राइवेसी, जॉब या और जिम्मेदारियों से बचना हो सकता है, लेकिन पहले ऐसा नहीं था। परिवार में चाहे कितने बेटे हों या बहुएं आ जाएं, घर से अलग होने की बात कोई नहीं करता था। इसका मुख्य कारण ये है कि जब हम बड़े परिवार में रहते हैं तो जिम्मेदारियां अपने आप ही बट जाती हैं और अगर आपको कहीं जाना है तो बच्चों को चाचा-चाची, दादा-दादी या ताऊ-ताई के साथ बेफिक्र छोड़ा जा सकता है।
कोई समझाने वाला नहीं होता है
पहले के जमाने में परिवार में इतने सदस्य होते थे कि घर किसी एक शादीशुदा जोड़े में लड़ाई हो जाती थी या भाई-भाई आपस में लड़ जाते थे तो घर के बड़े इसे सुलझाकर आपसी मतभेदों को दूर कर देते थे। लेकिन आज ये स्थिति हो गई है कि पहले अकेले रहने की चाह में बच्चे परिवार से अलग हो जाते हैं। उसके बाद अगर परिवार के बड़े कुछ समझाना भी चाहें तो उन्हें अनसुना कर दिया जाता है। अपने बड़ो की बातों को न सुनना भी एक कारण है आजकल रिश्तों के कम चलने का।
तलाक हो गया है आम बात
अगर आपने मां-दादी या ताई से उनके जमाने की बातों को सुना होगा तो ये जिक्र कभी न कभी जरूर आया होगा उनके समय में तो तलाक जैसी चीज ही नहीं हुआ करती थी, एक बार शादी हो गई तो फिर उसे निभाना पड़ता था। चाहे पति-पत्नी के बीच कितनी भी लड़ाई हो जाए, एक-दूसरे को तलाक नहीं दिया जाता था। लेकिन आज स्थिति ऐसी हो गई है कि छोटी-छोटी लड़ाई होने पर उसे सुलझाने की जगह बहस की चिंगारी को हवा दी जाती है और फिर बात रिश्ता खत्म करने तक आ जाती है। घरेलू हिंसा, मानसिक उत्पीड़न और जबरदस्ती करने पर आवाज उठाना और तलाक देना सही है लेकिन बे बुनियाद बातों के लिए रिश्ता खत्म करना गलत है।
पेशेंस और प्यार
आज जहां मन का खाना न खिलाने, घूमने न ले जाने और शॉपिंग न करवाने जैसी छोटी-छोटी बातों पर लड़ाइयां शुरू हो जाती हैं, वहीं पहले के जमाने में ऐसा नहीं हुआ करता था। पुरुष और महिलाओं, दोनों में धैर्य और एक-दूसरे के लिए प्यार हुआ करता था। पहले लोग किसी भी छोटी बात पर नाराज होकर और मुंह फुलाकर नहीं बैठा करते थे, बल्कि ऐसी बातों को भूल रिश्ते को मजबूत बनाने का प्रयास करते थे लेकिन आज के लोगों में पेशेंस की बहुत कमी है।
कम में खुश
हर कोई चाहता है कि मेरे पास बड़ा घर हो, एक गाड़ी हो, बच्चे प्राइवेट स्कूल में पढ़ें और हम देश-विदेश में घूमने जाएं। इतनी चाहतों और अरमानों के साथ कोई रिश्ता तभी चल सकता है जब उससे जुड़े लोगों की इनकम ज्यादा हो या उनकी सेविंग ज्यादा हो। इसमें एक हिस्सा दिखावे का भी होता है। जैसे मन में ये आना की पड़ोसियों के पास तो कार है तो हम भी ले लेते हैं या फिर वो लोग तो पूरे परिवार के साथ शिमला घूमने जा रहे हैं तो हम भी चलते हैं आदि। लेकिन पहले ऐसा नहीं था, उस जमाने में जो हमारे पास है या जो हमें मिल गया है, लोग उसी में खुश रहा करते थे और दिल खोलकर प्यार देते थे।