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Raksha bandhan kab manaya jata hai: रक्षा बंधन की तारीख को लेकर असमंजस करें दूर, जानिए सबसे पहले किसने किस को पहली बार बांधी थी राख

Raksha bandhan kab manaya jata hai सावन पूर्णिमा के दिन राखी क्यों मनाया जाता है। जानते हैं इस साल कब पड़ रहा है राखी का त्योहार

Raksha bandhan kab manaya jata hai: रक्षा बंधन की तारीख को लेकर असमंजस करें दूर, जानिए सबसे पहले किसने किस को पहली बार बांधी थी राख
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By Shanti Suman

Rakshabandhan kab manaya jata hai: इस साल (2023) राखी का त्योहार 31 अगस्त को मनाया जाएगा। राखी आने से पहले बहनें अपने भाई के लिए राखी की खरीदारी शुरू कर देती हैं। रक्षाबंधन के दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं और भाई की लंबी उम्र की कामना करती हैं।

राखी का त्योहार सावन पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। सावन का महीना भगवान भोलेनाथ, मां गौरी और भगवान भोलेनाथ के परिवार से जुड़ा होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सावन पूर्णिमा के दिन ही राखी क्यों मनाई जाती है। दरअसल इसके पीछे कई प्रचलित कथाएं हैं, जिसमें यह बताया गया है कि सावन पूर्णिमा के दिन राखी क्यों मनाया जाता है। जानते हैं विस्तार से कि सावन पूर्णिमा के दिन ही क्यों मनाया जाता है राखी

2023 में रक्षा बंधन कब है 30 या 31 अगस्त

हर साल रक्षाबंधन पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. हर बार रक्षाबंधन की डेट को लेकर लोगों में असमंजस की स्थिति रहती है।इस साल भद्रा काल का साया होने के कारण लोग असमंजय की स्थिति में है कि राखी 30 को बाधें या 31 अगस्त को, साल 2023 में सावन मास के आखिरी दिन यानि पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधान का पर्व मानाया जाता है. इस साल पूर्णिमा तिथि 30 अगस्त को सुबह 10:58 मिनट से शुरु होगी जो 31 अगस्त 2023 को सुबह 07:05 तक चलेगी। लेकिन पूर्णिमा के साथ ही भद्राकाल भी शुरु हो जाएगा. भद्राकाल में राखी बांधना शुभ नहीं माना गया है। भद्राकाल रात को 9:02 से लग जाएगा। ऐसे में भद्राकाल समाप्त होने पर ही राखी बांधी जाएगी।

श्रीकृष्ण को द्रौपदी ने बांधी थी राखी

महाभारत काल में भगवान श्रीकृष्ण और द्रौपदी से जुड़ी एक कथा है। दरअसल इंद्रप्रस्थ में शिशुपाल को वध करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र चलाया। चक्र से भगवान की उंगली थोड़ी कट गई और खून आने लगा। तब द्रौपदी ने तुरंत अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर भगवान की उंगली पर लपेट दिया। कहते हैं कि जिस दिन यह घटना हुई थी उस दिन श्रावण पूर्णिमा थी। भगवान श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को वचन दिया कि वह समय आने पर साड़ी के एक एक धागे का मोल चुकाएंगे। भगवान श्रीकृष्ण ने चीर हरण के समय द्रौपदी की लाज बचाई थी और उन्होंने अपना वचन निभाया था। इसके अलावा महाभारत में रक्षाबंधन को लेकर एक और कहानी प्रसिद्ध है। कथा के अनुसार जब युधिष्ठिर कौरवों से युद्ध के लिए जा रहे थे तो उन्‍होंने श्रीकृष्‍ण से युद्ध में विजयी होने के लिए प्रश्‍न किया कि आखिर वह इस युद्ध में विजय कैसे प्राप्‍त करें। तब श्री कृष्‍ण ने उन्‍हें सभी सैनिकों को रक्षासूत्र बांधने की बात कही। उन्‍होंने कहा कि इस रक्षासूत्र से व्‍यक्ति हर परेशानी से मुक्ति पा सकता है। इसके बाद श्रावण पूर्णिमा के दिन ही धर्मराज युधिष्ठिर ने श्रीकृष्‍ण के बताए मुताबिक ही सैनिकों को रक्षासूत्र बांधा और उन्‍हें सफलता भी मिली।

मां लक्ष्मी ने बांधी थी राजा बलि को राखी

राजा बलि बहुत ही दानी राजा थे और भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे। एक बार राजा बलि ने यज्ञ का आयोजन किया। इसी दौरान भगवान विष्णु ने राजा बलि की परीक्षा लेने के लिए वामन का अवतार लेकर राजा बलि के यज्ञ में पहुंचे। जहां भगवान विष्णु से राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी। जिसके बाद भगवान विष्णु ने दो पग में ही पूरी पृथ्वी और आकाश नाप दी। यह देखकर राजा बलि को समझ आ गया था कि यह कोई आम वामन नहीं हैं । भगवान उनकी परीक्षा ले रहे हैं। तीसरे पग के लिए राजा बलि ने भगवान विष्णु का पग अपने सिर पर रखवा लिया। फिर राजा बलि ने भगवान विष्णु से प्रार्थना करते हुए कहा कि अब तो मेरा सबकुछ चला ही गया है, प्रभु आप मेरी विनती स्वीकारें और मेरे साथ पाताल में चलकर रहें। जिसके बाद भगवान विष्णु ने राजा बलि की बात मान ली और बैकुंठ छोड़कर पाताल चले गए। जिसके बाद उधर मां लक्ष्मी परेशान हो गईं। फिर मां लक्ष्मी ने लीला रची और गरीब महिला बनकर राजा बलि के सामने पहुंची और राजा बलि को राखी बांधी। राजा बलि ने मां लक्ष्मी को कहा कि मेरे पास तो आपको देने के लिए कुछ भी नहीं हैं। जिसके बाद मां लक्ष्मी अपने अवतार में आ गई। मां लक्ष्मी ने राजा बलि से कहा कि आपके पास तो साक्षात भगवान विष्णु हैं, मुझे वही चाहिए मैं उन्हें ही लेने आई हूं। मां लक्ष्मी की बात सुनने के बाद राजा बलि ने रक्षासूत्र का धर्म निभाते हुए मां लक्ष्मी को भगवान विष्णु सौंप दिया गया। दरअसल मां लक्ष्मी ने मुंहबोले भाई राजा बलि को राखी बांधकर भगवान विष्णु को मुक्त कराया था। तब से इस दिन राखी का त्योहार मनाया जाने लगा।

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