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Neem Karoli Baba Koun The महान संत नीम करोली बाबा कौन थे?: जानते उनके जीवन के प्रेरक और रोचक पहलु

Neem Karoli Baba Koun The नीम करोली बाबा कौन थे?: महान संत नीम करोली बाबा का आश्रम कैंची धाम में है। उन्होंने अपने जीवन में अने हनुमान लीलाए की । उनके चमत्कारों की लिस्ट लंबीहै।, जानते हैं बाबा नीम करौली थे...

Neem Karoli  Baba  Koun The  महान संत नीम करोली बाबा कौन थे?: जानते उनके जीवन के प्रेरक और रोचक पहलु
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By Shanti Suman

Neem Karoli Baba Koun The नीम करोली बाबा कौन थे?
नीम करोली बाबा आजीवन भक्ति योग के अनुयायी थे, और उन्होंने दूसरों की सेवा (सेवा) को भगवान की बिना शर्त भक्ति के उच्चतम रूप के रूप में प्रोत्साहित किया। नीम करौली बाबा या नीम करौरी बाबा या महाराजजी की गणना बीसवीं शताब्दी के सबसे महान संतों में होती है। इनका जन्म स्थान ग्राम अकबरपुर जिला फ़िरोज़ाबाद उत्तर प्रदेश है जो कि हिरनगाँव से 500 मीटर दूरी पर है। कैंची, नैनीताल, भुवाली से 7 कि॰मी॰ की दूरी पर भुवालीगाड के बायीं ओर स्थित है। आज यानि 15 जून को कैंची धाम के स्थापना दिवस पर मेले का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें करीब 1 से 2 लाख श्रद्धालु बाबा के दर्शन को मंदिर में आने की संभावना है। इनमें विदेशी श्रद्धालु कनाडा, यूएस, जर्मनी और फ्रांस से भी आते हैं। हर साल की तरह इस साल भी कैंची धाम में 15 जून 2023 को प्रसिद्ध भंडारे का आयोजन किया जाएगा।


नीम करौली कैसे पड़ा नाम

बीसवीं शताब्दी के महान संत श्री बाबा नीम करौली जी का जन्म ग्राम अकबरपुर जिला आगरा में ब्राह्मण परिवार में हुआ था उनका आरंभिक नाम लक्ष्मीनारायण पड़ा। कम उम्र में ही ग्यारह वर्ष से पूर्व ही उन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा और वह निकलकर गुजरात पहुँचे इस बीच बाबा (नीब करौरी) की शिक्षा भी नहीं हो पायी थी। गुजरात में बाबा किसी वैष्णव संत के आश्रम में रहे जिन्होंने उन्हें लछमन दास नाम दिया और वैरागी वेश धारण करवाया। गुजरात में वह सात वर्ष रहे एक बार बाबा ट्रेन में सफर कर रहे थे लेकिन घटना होने के कारण टीटी ऑफिसर ने उन्हें पकड़ लिया। ऑफिसर ने उन्हें अगले स्टेशन नीब करौरी पर उतार दिया । स्टेशन के पास के गांव को नीब करौरी के नाम से जाना जाता था। बाबा गाड़ी से उतार दिए गए और ऑफिसर ने चालक को गाड़ी चलाने का आदेश दे दिया। बाबा वहां से गए नहीं बल्कि वही ट्रेन के पास अपना चिमटा धरती में लगा कर बैठ गए। चालक ने बहुत प्रयास किया ट्रेन को आगे बढ़ाने का, लेकिन उसकी एक न चली।

ट्रेन आगे बढ़ने का नाम ही नहीं ले रही थी। अंत में बड़े ऑफिसर जोकि बाबा से परिचित थे वे खुद आए और उन्होंने चालक और टिकट चेकर दोनों से बाबा से माफी मांगने को कहा। सबने मिलकर बाबा को मनाया और उनसे माफी मांगी, माफ़ी मांगने के पश्चात बाबा को सम्मान पूर्वक ट्रेन में बिठाया गया। बाबा ट्रेन में बैठी ट्रेन चल पड़ी। यहीं से बाबा की चमत्कारी कहानी प्रसिद्ध हो गई और एक स्थान पूरी दुनिया में नीब करौरी के नाम से जाना जाता है, यही से बाबा को नीम करौली नाम मिला।उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में बाबा नीम करोली का सुंदर स्वर्ग आश्रम स्थित है।बाबा नीम करोली महाराज जी को समर्पित यह आश्रम धर्मावलंबियों के बीच कैंची धाम के नाम से प्रसिद्ध हैं। यह आश्रम समुद्र तल से 1400 मीटर की ऊंचाई पर स्थित नैनीताल-अल्मोड़ा मार्ग पर बनाया गया हैं।

ये सब रहै है बाबा नीम करौली के भक्त

इस प्रकार सन् 1935 के पश्चात किलाघाट, फतेहगढ़ में गंगा के किनारे बाबा ने वास किया। वहाँ गायें भी पाली। किलाघाट से बाबा का सम्पर्क नागरिकों से बढ़ता ही गया। इसके बाद वे एक स्थान पर बहुत दिनों तक नहीं रहे। चौथे दशक में नैनीताल आने से पूर्व वे कहाँ-कहाँ गये,क्या-क्या लीला की इस सम्बन्ध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जाता पर यह अवश्य देखने व सुनने में आया कि धीरे-धीरे उनकी मान्यता बरेली, हल्द्वानी, अल्मोड़ा, नैनीताल, लखनऊ, कानपुर, वृन्दावन, इलाहाबाद, दिल्ली, शिमला और सुदूर दक्षिण में मद्रास आदि बड़े शहरों में हो गयी। ग्रामीण एवं मध्यवर्ग के लोगों के अतिरिक्त मान्य एवं प्रतिष्ठित वर्ग के लोग भी अत्यधिक संख्या में इनके भक्त हो गये। राष्ट्रपति वी.वी. गिरि, उपराष्ट्रपति गोपाल स्वरूप पाठक, राज्यपाल कन्हैयालाल माणिकलाल मुन्शी, उपराज्यपाल भगवान सहाय, राजा भद्री, न्यायमूर्ति वासुदेव मुखर्जी, जुगल किशोर बिड़ला, डॉ. रिचार्ड एल्बर्ट (अमेरिका) आदि इनके भक्त हो गये।

बाबा नीम करौली को हनुमान जी का अवतार क्यों मानते है

बाबा हनुमान के भक्त नहीं अवतार थे। उनकी लीलायें हनुमान जी की लीलाओं से अधिक मेल खाती हैं। वे सदा हनुमान के रूप में ही पूजे गये। बाबा में भेद दृष्टि नहीं थी। वे स्वयं लोगों के घरों में जाकर अपनी अलौकिक शक्ति से उनका उद्धार करते। उन्होंने असंख्य लोगों की परवरिश की कितनों को शिक्षा दिलवाई और कितनों के विवाह रचाये। वे सन्तान हिनों को आशीर्वाद दे सन्तति सुख प्रदान करते और अवसर पड़ने पर मृत में भी प्राणों का संचार कर दिया करते। रोगों से छुटकारा दिलाने, दारिद्रय से उबारने और संकटों से बचाने में बाबा सिद्धहस्त थे। इस प्रकार बाबा अपने व्यापक कार्यों में सदा लगे रहते असम्भव उनके लिए कुछ भी न था। एक बार दर्शन हो जाने पर सपरिवार उनका भक्त बन जाना स्वाभाविक था, पर वर्षों साथ रह कर भी उन्हें जान सकना सम्भव न था। श्री शिवानन्द आश्रम (ऋषिकेश) के अध्यक्ष श्री चिदानन्द स्वामी बाबा को "लाइट ऑफ लाइट्स" और "पावर ऑफपावर्स" कहते।


बाबा नीम करौली के चमत्कार

  • बाबा को कैंची धाम से बेहद लगाव था, एक बार जून में भंडारे के दौरान वहां तेल और घी की कमी पड़ गई। तब बाबा जी ने आदेश दिया कि नदी बह रही है कनस्तर वहां ले जाओ और जल भर कर लाओ । लोग जल भर कर लाए और प्रसाद बनाने का काम शुरू कर दिया। वह जल घी में बदल गया।
  • ऐसे ही एक बार बाबा नीम करोली ने अपने एक भक्त को गर्मी की तपती धूप में बचाने के लिए उसे बादल की छतरी प्रदान की और उसे उसकी मंजिल तक पहुंचाया।
  • कहा जाता हैं की एक बार बाबा जी से मिलने आए और उनका पूजन करने लगी। लेकिन महिलाओं के पास दियासलाई नहीं थी, इससे वे बेहद निराश हो गई, तभी बाबा जी ने उनके मन के भाव पढ़ लिए और मात्र उनके स्पर्श से ही दिए जल उठे।
  • एक बार की बात हैं हनुमानगढ़ी मन्दिर में निर्माण कार्य चल रहा था, उस दौरान भारी बारिश होने लगी और कार्य में बाधा उत्पन्न हो गई। बारिश इतनी तेज थी कि जो काम पूरा हो चुका था वह भी खराब हो जाता, करोली बाबा ने है स्थिति देखी और बादलों के बीच में आकाश की ओर देखते हुए बोले “बड़ी उग्र है”, इतना कहकर उन्होंने अपने वक्ष से कंबल हटाया और चिल्लाते हुए बोले “पवन तनय बल पवन समाना”. बस इतना कहते ही तेज हवाएं
  • बहने लगी जिससे बादल कहीं दूर चले गए, बारिश बिल्कुल बंद हो गई,बाबा के इस चमत्कार से आसमान भी साफ हो गया और हनुमानगढ़ी मंदिर का निर्माण कार्य सही ढंग से संपन्न हुआ।

नीम करोली बाबा की मृत्यु कैसे हुई?

11 सितंबर 1973 की एक रात बाबा जी अपने वृंदावन स्थित आश्रम में थे। अचानक उनकी तबीयत खराब होने लगी जिसके बाद भक्तों ने आनन-फानन में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया। जहां पर डॉक्टर द्वारा ऑक्सीजन मास्क लगाने के तुरंत बाद निकालकर बाबाजी ने फेंक दिया और वहां उपस्थित भक्तों से कहा कि अब मेरे जाने का समय आ गया है। तुलसी और गंगाजल लाने का आदेश बाबा ने अपने भक्तों को दिया। इसके बाद उन्होंने तुलसी और गंगाजल को ग्रहण कर रात के करीब 1:15 पर अपने शरीर को त्याग दिया। कहते है कि बाबा अलौकिक रूप से अपने भक्तों के साथ हमेशा विराजमान रहते हैं।

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