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Kundli Ke Bhav Aur Unke Arth: कुंडली के 12 भाव बताते है आपका भविष्य, जानिए कैसे जुड़ा है इनसे आपका जीवन और इन भावों के स्वामी...

Kundli Ke Bhav Aur Unke Arth: कुंडली में पहला भाव लग्न भाव होता है उसके बाद शेष 11 भावों का अनुक्रम आता है। एक भाव संधि से दूसरी भाव संधि तक एक भाव होता है। अर्थात लग्न या प्रथम भाव जन्म के समय उदित राशि को माना जाता है

Kundli Me Dhan Ka Yoga Kaise Banta hai
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By NPG News


Kundli Ke Bhav Aur Unke Arth: किसी भी व्यक्ति के जीवन में कुंडली और उसके भाव को बहुत महत्व होता है। कुंडली में 12 भाव होते हैं। ज्योतिष के अनुसार 360 अंश का राशि-चक्र है जो 12 भावों में बंटा है। कुंडली में पहला भाव लग्न भाव होता है उसके बाद शेष 11 भावों का अनुक्रम आता है। एक भाव संधि से दूसरी भाव संधि तक एक भाव होता है। अर्थात लग्न या प्रथम भाव जन्म के समय उदित राशि को माना जाता है।

कुंडली के 12 भाव

प्रथम भाव इसे लग्न कहते हैं। इस भाव से मुख्यत: जातक का शरीर, मुख, मस्तक, केश, आयु, योग्यता, तेज, आरोग्य आदि विषयों का पता चलता है।

द्वितीय भाव यह धन भाव कहलाता है। इससे कुटुंब-परिवार, दायीं आंख, वाणी, विद्या, बहुमूल्य सामग्री का संग्रह, सोना-चांदी, चल-सम्पत्ति, नम्रता, भोजन, वाकपटुता आदि विषयों का पता चलता है।

तृतीय भाव यह पराक्रम भाव के नाम से जाना जाता है। इसे भातृ भाव भी कहते हैं। इस भाव से भाई-बहन, साहस, सामर्थ्य अर्थात् पराक्रम, पडौसी, लेखन-प्रकाशन आदि विषयों का पता चलता है।

चतुर्थ भाव यह सुख भाव कहलाता है। इस भाव से माता, जन्म समय की परिस्थिति, दत्तक पुत्र, हृदय, छाती, पति-पत्नी की विधि यानी कानूनी मामले, चल सम्पति, गृह-निर्माण, वाहन सुख आदि विषयों का पता चलता है।

पंचम भाव यह सुत अथवा संतान भाव भी कहलाता है। इस भाव से संतान अर्थात् पुत्र। पुत्रियां, मानसिकता, मंत्र-ज्ञान, विवेक, स्मरण शक्ति, विद्या, प्रतिष्ठा आदि विषयों का पता चलता है।

षष्ट भाव इसे शत्रु या रिपुभाव कहते हैं। इस भाव से मुख्यत: शत्रु, रोग, मामा, जय-पराजय, भूत, बंधन, विष प्रयोग, क्रूर कर्म आदि विषयों का पता चलता है।

सप्तम भाव यह पत्नी भाव अथवा जाया भाव कहलाता है। इस भाव से पति अथवा पत्नी, विवाह संबंध, विषय-वासना, आमोद-प्रमोद, व्यभिचार, आंतों, साझेदारी के व्यापार आदि विषयों का पता चलता है।

अष्टम भाव इसे मृत्यु भाव भी कहते हैं। आठवें भाव से आयु, मृत्यु का कारण, दु:ख-संकट, मानसिक पीड़ा, आर्थिक क्षति, भाग्य हानि, गुप्तांग के रोगों, आकस्मिक धन लाभ आदि विषयों का पता चलता है।

नवम भाव इसे भाग्य भाव कहलाता हैं। भाग्य, धर्म पर आस्था, गुरू, पिता, पूर्व जन्म के पुण्य-पाप, शुद्धाचरण, यश, ऐश्वर्य, वैराग्य आदि विषयों का पता चलता है।

दशम भाव यह कर्म भाव कहलाता है। दशम भाव से कर्म, नौकरी, व्यापार-व्यवसाय, आजीविका, यश, सम्मान, राज-सम्मान, राजनीतिक विषय, पदाधिकार, पितृ धन, दीर्घ यात्राएं, सुख आदि विषयों का पता चलता है।

एकादश भाव यह भाव आय भाव भी कहलाता है। इस भाव से प्रत्येक प्रकार के लाभ, मित्र, पुत्र वधू, पूर्व संपन्न कर्मों से भाग्योदय, सिद्धि, आशा, माता की मृत्यु आदि विषयों का पता चलता है।

द्वादश भाव यह व्यय भाव कहलाता है। इस भाव से धन व्यय, बायीं आंख, शैया सुख, मानसिक क्लेश, दैवी आपत्तियां, दुर्घटना, मृत्यु के उपरान्त की स्थिति, पत्नी के रोग, माता का भाग्य, राजकीय संकट, राजकीय दंड, आत्म-हत्या, एवं मोक्ष आदि विषयों का पता चलता है।


कुंडली में कौन सा ग्रह किस भाव का स्वामी होता है?

किसी व्यक्ति का भाग्य कैसा होगा, यह उसकी कुंडली के नवम भाव से देखकर पता लगाया जा सकता है। इस भाव में जो राशि होती है, उसके अनुसार तय किया जाता है कि व्यक्ति का भाग्योदय उसकी आयु के किस वर्ष में होगा। - यदि नवम भाव में सूर्य की राशि सिंह है तो भाग्योदय 22वें वर्ष में होगा। इस भाव में जो भी राशि हो, उसके स्वामी ग्रह को धनेश या धन का मालिक कहा जाता है। उदाहरण के लिए यदि वहां 1 लिखा हो तो मंगल, 2 लिखा हो तो शुक्र, 3 हो तो बुध, 4 हो तो चंद्रमा, 5 सूर्य, 6 बुध, 7 शुक्र, 8 मंगल, 9 बृहस्पति, 10 शनि, 11 शनि और यदि वहां 12 लिखा हो तो बृहस्पति धन भाव के स्वामी यानि धनेश कहलायेंगे।

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