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Guru and Shani | जानिए शनि और बृहस्पति के बारे में सब कुछ, 10 बड़ी बातें

Guru Shani Yuti | Jupiter-Saturn Conjunction in Different Houses | Guru Shani Yuti Ka Phal & Upay
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By Acharya Soni

आज जानिए शनि और बृहस्पति के बारे में सब कुछ

शनि और बृहस्पति दोनों ही बहुत ही महत्वपूर्ण ग्रह हैं दोनों ग्रहों का प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर बहुत गहरा होता है, शनि एक राशी में २.५ वर्ष और ब्रस्पति १ वर्ष तक रहते हैं l आईए जानते हैं उनके बारे में , पहले हम बात करते हैं शनि की ----


शनि के नाम से अधिकतर लोगों को डराया जाता है,जबकि शनि न्याय का देवता है l शनि की दो राशियां होती हैं मकर और कुंभ l मकर पृथ्वी तत्व राशी है और कुम्भ वायु तत्व राशी है l शनि की महादशा 1९ वर्ष की होती है और शनि की महादशा में बहुत ही परिवर्तन और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है शनि कड़ी मेहनत और श्रम करवाता है यह ग्रह अनुशासन का भी प्रतीक है अगर शनि कुंडली में शुभ ना हो तो जीवन में बहुत कठिनाइयों भी आती हैं शनी तुला लग्न और वृष लग्न के लिए योगकारक ग्रह होता है l तो इन दोनों लग्नो के लिय अमूमन बुरा फल नहीं देता l शनी यदि शुभ प्रभाव में बैठा हो तो शुभ फल देने में सक्षम होता है l शनि की तीन दृष्टियां होती हैं तीसरी दृष्टि ,सातवीं,और दसवीं दृष्टि l शनि जिन घरों को देखता है उन घरों को अपने कारकत्व से प्रभावित करता है जिसके फलस्वरूप उन घरों से सम्बंधित जीवन में संघर्ष, कार्य के होने में देरी और बाधाएँ भी उत्पन्न हो सकती हैं l यदि यही शनि शुभ प्रभाव में तो व्यक्ति को भरपूर आत्मविश्वास भी देता है, कड़ी मेहनत से उसे फल मिलते हैं ,उसके लिय उसे कड़ी मेहनत करनी पड़ती है l शनि ग्रह अगर हम रोगों में बात करें तो हड्डियों का भी कारक होता है l शनि यदि अष्टम भाव में अस्त ना हो , वक्री ना हो गृह युद्ध में हारा हुआ ना हो, नीच का न हो तो लंबी आयु देता है पर साथ ही साथ यह न ठीक होने वाली बीमारियाँ भी देता है ,पैरों से संबंधित रोग भी दे सकता है l शनी का धातु लोहा है और इसकी शांति के लिए हनुमान जी की उपासना की जाती है ,दशरत जी द्वारा रचित शनी नील स्तोत्र का पाठ भी किया जाता है

अब हम बृहस्पति की बात करते हैं,बृहस्पति को गुरु भी कहा जाता है , यह देवताओ के गुरु हेई और यह एक नैसर्गिक शुभ ग्रह है l बृहस्पति की दो राशियां होती हैं ,धनु राशि और मीन राशि l धनु राशि को कोदंड राशि भी कहते हैं धनु राशि अग्नि तत्व राशि होती है और मीन राशि जल तत्व राशि होती है बृहस्पति की महादशा 6 वर्ष की होती है ,काल पुरुष कुंडली में ब्रहस्पति नवम भाव एंव द्वादश भाव का स्वामी होता है, नवम भाव धर्म और द्वादश भाव मोक्ष का होता है l बृहस्पति ,भाग्य ,वित्त और प्रबंधन का भी कारक है l यह एक अच्छा एडवाइजर भी होता है l बृहस्पति यदि कुंडली में शुभ हो तो व्यक्ति को समृद्ध और बुद्धिमान बनाता है जिस घर को बृहस्पति देख रहा होता है वहां से संबंधित शुभ फल देता है l ऐसा माना जाता है कि बृहस्पति जिस घर में बैठता है उस घर से संबंधित बहुत अच्छे फल नहीं देता पर जिन घरों को देखा है उन घरों से संबंधित अच्छे फल देता है l बृहस्पति ग्रह की बात करते हैं अब थोड़ा यदि बृहस्पति कुंडली में अशुभ हो तो पढ़ाई में व्यवधान आता है ,आर्थिक समस्याएं आती हैं और कहीं ना कहीं मानसिक तौर पर अवहेलना झेलनी पड़ती है

बृहस्पति का धातु सोना होता है l

अब हम जानते हैं गुरु और शनी की युति से कौन सा योग बनता हैl

गुरु , शनि युति से कोई भी योग नहीं बनता, जबकि जन्म कुंडली में १/७ axix में ये जिन घरों को भी पकड़ते हैं तो इसके बारे में गुरुदेव K N RAO सर कहते हैं की वहां से सम्बंधित त्राहि – त्राहि करके परिवर्तन आते हैं l परिवर्तन शुभ होंगे या अशुभ यह गुरु – शनी की प्लेसमेंट पर निर्भर करता है l और इसी प्रकार शनि जिस घर में बैठता है वहां से संबंधित बहुत बुरे प्रभाव नहीं देता बल्कि जिन घरों को देखता है उन भावों से संबंधित अशुभ प्रभाव देता है और ब्रहस्पति जहाँ बैठता है वहां भुत शुभ फल नहीं देता परन्तु उसकी दृष्टि का शुभ प्रभाव होता है l पहले हम बात करते हैं बृहस्पति की जो की ज्ञान और विस्तार का प्रतीक है जबकि शनि अनुशासन और कठोरता का प्रतीक है इनकी युति से व्यक्ति में गहरी समझ ,विवेक और ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता आती है l यह युति व्यक्ति को सावधानी पूर्वक और सोच समझकर निर्णय लेने की प्रवृत्ति देती है शनि और गुरु का प्रभाव से इस युति में धर्म और संयम को बढ़ावा मिलता है व्यक्ति में लंबे समय तक स्थिरता बनाए रखने की क्षमता होती है और वह अपने लक्ष को प्राप्त करने के लिए लगातार मेहनत करता रहता है l इन दोनों की युति सामाजिक और प्रोफेशनल लाइफ में भी एक मजबूत स्थिति प्रदान कर सकती है लेकिन उन दोनों की युति का कहीं ना कहीं दशम भाव से संबंध होना चाहिए l वह अपनी मेहनत और प्रयास में समाज और कारोबार के क्षेत्र में सम्मान प्राप्त करते हैं l बृहस्पति जब शनि के साथ युति करता है तो आत्म ज्ञान की ओर भी एक इशारा करता है l गुरु ग्रह शिक्षा, ज्ञान और आध्यात्मिकता का भी प्रतिनिधित्व करता है ,तो शनि की दृष्टि से इसके क्षेत्र में बाधाएं आ सकती हैं इस से व्यक्ति को पढ़ाई में और ज्ञान अर्जन करने में भी कठिनाइयां होती हैं बृहस्पति धर्म और धार्मिक गतिविधियों को भी एक तरह से हमारी कुंडली में दिखाता है ,शनि की दृष्टि के कारण धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में भी अड़चन आ सकती है और व्यक्ति को इन क्षेत्रों में संघर्ष का सामना करना पड़ सकता है l यदि शनि अशुभ हो तो आर्थिक समस्याएं आती हैं l यदी कुंडली में गुरु औए शनि दोनों अशुभ हों तो इनकी युति या एक दूसरे की परस्पर दृष्टि से परिवार में और समाज के रिश्तों में भी असर पड़ता है l यदि यह दोनों शुभ होंगे तो परिवार में और समाज में एक प्रतिष्ठा देंगें पर अशुभ होने पर वही इसके विपरीत फल देते हैं जैसा कि बताया शनि हड्डियों का कारक भी होता है और बृहस्पति फैलाव का कारक होता है तो जब शनि और बृहस्पति एक दूसरे को बीमारि के घर में बैठक कर देखते हैं तो कहीं ना कहीं हड्डियों से संबंधित रोग भी देते हैं l शनि और बृहस्पति की युति को समझने के लिए इसके फलों को समझने के लिए हमें कुंडली का पूरा विश्लेषण करना होता है ,कुंडली में किन घरों में बैठे हैं ,किन घरों से किन ग्रहों से इनका संबंध बन रहा है l इन्हें शुभ ग्रह देख रहे हैं या अशुभ ग्रह देख रहे हैं और वह किस घर में बैठकर देख रहे हैं l

पर फिर भी अगर हम कुछ देखना चाहे कि गुरु शनि की युति के फल कैसे होंगे तो हम देखते हैं कि—

यदि यह युति लगन में बन रही है तो व्यक्ति के व्यक्तित् पर एक बहुत ही महत्वपूर्ण असर पड़ता है, वह बहुत गंभीर और जिम्मेदार व्यक्ति होता है,

कुछ समय के लिए आत्मसंयम और सामाजिक स्थिरता में वृद्धि हो सकती है लेकिन ऐसा भी हो सकता है कि व्यक्ति अपने आप में अधिक संवेदनशील महसूस करे

२ द्वतीय भाव जैसा कि हम जानते हैं द्वितीय भाव धन स्थान भी होता है और कुटुंब का स्थान भी है और गुरु धन का कारक भी होता है यो यदि यह युति दूसरे भाव में होती है तो आर्थिक स्थिति को प्रभावित कर सकती है l आर्थिक मांगों में व्यक्ति को अधिकतर

योजना बद तरीके से ही उसे काम करना होता है l हालांकि यह धन संबंधी विषयों में देरी और अड़चन भी लाता है और परिवार में या कुटुंब में एक तनाव भी उत्पन्न हो सकता है l

३.तीसरा भाव यह भाव छोटे भाई बहनों को छोटी यात्राओं को और व्यक्त के साहस को दर्शाता है यदि यह युति तीसरे भाव में होती है तो व्यक्ति के उत्साह और साहस में वृद्धि होती है ,भाई बहनों के संबंधों में सुधार होता है लेकिन यदि शनि शुभ ना हो तो कभी-कभी मतभेद या आपस में संघर्ष या टकराव का कारण भी बन जाता है

४.चतुरथ भाव चौथा घर हमारे जन्म कुंडली में संपत्ति घर और माता का होता है l यदि यह युति चौथे भाव में हो तो माता के स्वास्थ्य और पारिवारिक संबंधों में कुछ चुनौतियां आ सकती हैं संपत्ति या अपनी पुश्तैनी जमीन जायदाद के मामलों में बहुत ही सतर्क रहना चाहिए अन्यथा यह बहुत ही मुश्किलें पैदा कर देता है l

५ यदि यह युति पंचम भाव में हो तो पंचम भाव हमारा हमारा शिक्षा का संतान का और मंत्र साधना का भी होता है वहां पर अगर यह युति हो तो बच्चों के पढ़ाई में व्यवधान आने के भी संकेत मिलता है l शनि यदि शुभ ना हो तो अब क्योंकि बृहस्पति आध्यात्मिकता का कारण है और शनि रहस्यमय विद्या से भी जुड़ा होता है तो समय आने पर यह हो सकता है कि यह मंत्र साधना भी करवाएगा l

६. छठा भाव जो की रोग रिपु और ऋण के नाम से जाना जाता है तो यहां पर रोग के संबंध में यह अकसर आए दिन बीमारियां देता है ,तो अपने स्वास्थ्य के लिए अपनी हेल्थके लिए बहुत ही सतर्क रहना चाहिए l प्रतिकूल स्थितियों में निपटाने की भी शक्ति भी यह योग आदमी को देता है l विपक्ष से अक्सर आए दिन टकराव भी होता है l

७. सप्तम भाव ,सप्तम भाव कारोबार में या व्यापार में साझेदारी का होता है ,और दांपत्य जीवन का भी होता है दांपत्य जीवन और साझेदारी के मामले में आपसी समझ और आपस में कोऑर्डिनेशन बनाने में यह बहुतही कठिनाई का कारण बनता है ,कानूनी और व्यावसायिक साझेदारों में भी चुनौतियां आ सकती हैं क्योंकि शनि न्याय का कारक है और बृहस्पति हमारी कुंडली में एक तरह से धार्मिक और आध्यात्मिकता का कारक होता है l

८.अष्टम भाव जब हम अष्टम भाव की बात करते हैं तो यह ना ठीक होने वाली या लंबी बीमारियों का भी घर होता है ,यहां से हम अपनी कुछ रहस्यमय विद्या को भी देखते हैं ,यह घर हमारा आयु का भी होता है तो अष्टम भाव में यदि यह बन रहा है ,तो एक अपमान जनक स्थिति कभी-कभी पैदा करता है और इसी वजह से शायद व्यक्ति आध्यात्मिकता की गहराई में भी चला जाता है , इस घर में इस युति के होने से एक तनाव की स्तिथि भी बनती है l

९ नवम भाव पिता का होता है ,धर्म का होता है और लंबी यात्राओं का भी होता है नवम भाव हमारे गुरु का स्थान भी होता है जब यह युति नवम भाव में होती है तो जीवन में यदि हमारा बृहस्पति शुभ प्रभाव में बैठा है और यदि नवम भाव में शनि और बृहस्पति की युति होती है तो व्यक्ति न्याय प्रिय होता है क्योंकि दोनों ही न्याय और धर्म को दर्शाते हैं l

१०. दशम भाव हमारे सामाजिक स्थिति कारोबार का भी होता है ,व्यक्ति की नौकरी से संबंध भी यहीं से आता है या कारोबार से तो जब दशम भाव में इसकी युति होती है तो सामाजिक स्थिति में महत्वपूर्ण बदलाव आते रहते हैं अपने पेशेवर जीवन में अधिक जिम्मेदार और संगठित होता है और कभी-कभी अत्यधिक काम का दबाव भी महसूस करता है जिससे कुछ मानसिक परेशानियां भी खड़ी हो जाती हैं क्योंकि शनि श्रम का कारक है मेहनत का कारक है और व्यक्ति शायद इतनी मेहनत नहीं कर पाता l

११.एकादश भाव एक आदर्श भाव मित्रता, दोस्ती लाभ का घर भी होता है इसे हम उपचय स्थान भी कहते हैं यदि यह युति यहां होती है तो उसके मित्र बहुत अधिक होते हैं और मित्रता से उसे लाभ भी मिलता है आय में वृद्धि होती है लेकिन कुछ खर्च भी यहां से बढ़ते हैं अब क्योंकि यह अष्टम से चतुर्थ स्थान है तो इसकी वजह से कुछ दोस्तों से कभी-कभी एक वैचारिक मतभेद भी देखने को मिलता है और आपकी उम्मीदें और इच्छाओं को पूरा करने में बाधा आ सकती है l

१२. द्वादश भाव ,द्वादश भाव बहुत सी चीजों को जीवन में दिखाता है जैसे मानसिक स्थिति हमारी नींद भी हम द्वादश भाव से देखते हैं ,विदेश यात्राएं ,हॉस्पिटल,जेल यात्रा वगैरह भी द्वादश भाव से देखी जाती है यदि दोनों शुभ होते हैं तो विदेश में भाग्योदय होता है l ध्यान और योग को करने में सहायता मिलती है व्यक्ति को नींद बहुत अच्छी आती है और यही अगर यह युति अशुभ प्रभाव में हो तो इन सबके विपरीत फल मिलते हैं l

अब हम बात करते हैं गुरु पर शनि की दृष्टि का फल गुरु पर शनि की दृष्टि तीन तरह से हो सकती है l तीसरी दृष्टि ,सातवीं दृष्टि जैसे कि बाकी सभी ग्रहों की होती है और दशम दृष्टि l तो जब शनि गुरु को तृतीय दृष्टि से देखाता है तो यदि शनि शुभ है तो साहस को बढ़ाएगा ,भाई बहनों से सहयोग कराएगा ,छोटी यात्राएं कराएगा और क्विकराइटिंग में व्यक्ति थोड़ा अच्छा होता है ,पर यही शनि यदि अशुभ हो तो यहां से संबंधित बिल्कुल उनके फल विपरीत हो जाते हैं ,

शनि और गुरु जब एक दूसरे को समसप्तक हो कर देखते हैं तो जिस भी घर को यह एक्सेस पकड़ता है ,गुरुदेव श्री कके एन राव सर बताते हैं कि उस घर से संबंधित त्राहि –त्राहि कर कर परिवर्तन हो कर रहते हैं

जब यह शनि दशम दृष्टि से गुरु को देखता है तो गुरु हमारे धन का कारक भी होता है ,तो यदि यह शनि शुभ है तो धन संबंधित और कारोबार में वृद्धि करता है पर यह शनि अगर अशुभ हो तो इन सब चीजों का नाश करता है l

यह इसकी अलग-अलग दृष्टि का फल होता है

अब हम बात करते हैं की यदि किसि कुंडली में यह युति है तो लोग आपसे इसका उपाय पूछेगे , जैसा मैंने अपने पहले विडिओ में भी बताया थे की जो आदिशंकराचार्य जी ने उपाय बताएं हैं वही करो l परम श्रधेय गुरुदेव श्री के एन राव जी बताया करते हैं की नारायण कवच किया करो ,विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करो l पर शनि के लिए यह हनुमान चालीसा का नित्य पाठ करो , दशरत कृत शनि नील स्त्रोत का पाठ करो ,शनिवार को सरसों का तेल दान करो, शनिवार को शाम को पीपल के वृक्ष के नीचे सरसों के तेल का दिया जलाया जाए l

बृहस्पति के लिए ऐसा कहा जाता है की सभी ग्रहों की शांति का कोई ना कोई उपाय है परन्तु यदि गुरु पीड़ित हो तो उसके लिए दत्तात्रेय स्तोत्र करना चाहिए l दत्तात्रेय भगवान का पाठ करना इसके लिए शुभ माना जाता है l

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