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Ganga Dussehara Upay: मां गंगा की महिमा है अपार, गंगा दशहरा पर इन उपायों से करें अपना बेड़ा पार

Ganga Dussehara Upay: हर पाप का का नाश करती है मां गंगा। गंगा दशहरा पर जानिए इनकी महिमा और उपाय

Ganga Dussehara Upay:  मां गंगा की महिमा है अपार, गंगा दशहरा पर इन उपायों से करें अपना बेड़ा पार
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By Shanti Suman

Ganga Dussehara Upay:

गंगा दशहरा उपाय

ज्येष्ठ शुक्ला दशमी के दिन यदि मंगलवार हो व हस्त नक्षत्र युता तिथि हो यह सब पापों को हरने वाली होती है। वराह पुराण में लिखा हुआ है कि, ज्येष्ठ शुक्ला दशमी बुधवार को हस्त नक्षत्र में श्रेष्ठ नदी गंगा स्वर्ग से अवतीर्ण हुई थी वह दस पापों को नष्ट करती है। इस कारण उस तिथि को दशहरा कहते हैं। ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, बुधवार, हस्त नक्षत्र, गर, आनंद, व्यतिपात, कन्या का चंद्र, वृषभ के सूर्य इन दस योगों में मनुष्य स्नान करके सब पापों से छूट जाता है।भविष्य पुराण में लिखा हुआ है कि, जो मनुष्य गंगा दशहरा के दिन गंगा के पानी में खड़ा होकर दस बार इस स्तोत्र को पढ़ता है चाहे वो दरिद्र हो, चाहे असमर्थ हो प्रयत्नपूर्वक गंगा की पूजा कर उस फल को पा जाता है।

सब अवयवों से सुंदर तीन नेत्रों वाली चतुर्भुजी जिसके कि, चारों भुज, रत्नकुंभ, श्वेतकमल, वरद और अभय से सुशोभित हैं, सफेद वस्त्र पहने हुई है।

गंगा दशहरा पर गंगा स्तोत्र और मंत्र का दस बार पाठ

मुक्ता मणियों से विभूषित है, सौम्य है, अयुत चंद्रमाओं की प्रभा के सम सुख वाली है जिस पर चामर डुलाए जा रहे हैं, वाल श्वेत छत्र से भलीभाँति शोभित है, अच्छी तरह प्रसन्न है, वर के देने वाली है, निरंतर करुणार्द्रचित्त है, भूपृष्ठ को अमृत से प्लावित कर रही है, दिव्य गंध लगाए हुए है, त्रिलोकी से पूजित है, सब देवों से अधिष्ठित है, दिव्य रत्नों से विभूषित है, दिव्य ही माल्य और अनुलेपन है, ऐसी गंगा के पानी में ध्यान करके भक्तिपूर्व मंत्र से अर्चना करें। 'ॐ नमो भगवति हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे माँ पावय पावय स्वाहा' यह गंगाजी का मंत्र है।

इसका अर्थ है कि, हे भगवति गंगे! मुझे बार-बार मिल, पवित्र कर, पवित्र कर, इससे गंगाजी के लिए पंचोपचार और पुष्पांजलि समर्पण करें। इस प्रकार गंगा का ध्यान और पूजन करके गंगा के पानी में खड़े होकर ॐ अद्य इत्यादि से संकल्प करें कि, ऐसे-ऐसे समय ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से लेकर दशमी तक रोज-रोज एक बढ़ाते हुए सब पापों को नष्ट करने के लिए गंगा स्तोत्र का जप करूँगा। पीछे स्तोत्र पढ़ना चाहिए। ईश्वर बोले कि, आनंदरूपिणी आनंद के देने वाली गंगा के लिए बारंबार नमस्कार है।

विष्णुरूपिणी के लिए और तुझ ब्रह्म मूर्ति के लिए बारंबार नमस्कार है।। 1।।

तुझ रुद्ररूपिणी के लिए और शांकरी के लिए बारंबार नमस्कार है, भेषज मूर्ति सब देव स्वरूपिणी तेरे लिए नमस्कार है।। 2।।

सब व्याधियों की सब श्रेष्ठ वैद्या तेरे लिए नमस्कार, स्थावर जंगमों के विषयों को हरण करने वाली आपको नमस्कार।। 3।।

संसाररूपी विष के नाश करने वाली एवं संतप्तों को जिलाने वाली तुझ गंगा के लिए नमस्कार ; तीनों तापों को मिटाने वाली प्राणेशी तुझ गंगा को नमस्कार।। 4।।

मूर्ति तुझ गंगा के लिए नमस्कार, सबकी संशुद्धि करने वाली पापों को बैरी के समान नष्ट करने वाली तुझ...।। 5।।

भुक्ति, मुक्ति, भद्र, भोग और उपभोगों को देने वाली भोगवती तुझ गंगा को।। 6।।

तुझ मंदाकिनी के लिए देने वाली के लिए बारंबार नमस्कार, तीनों लोकों की भूषण स्वरूपा तेरे लिए एवं तीन पंथों से जाने वाली के लिए बार-बार नमस्कार। कोई इस श्लोक में 'त्रिपथायै' इसके स्थान में 'जगद्धात्रैय' ऐसा पाठ करते हैं। इसका अर्थ होता है कि, जगत् की धात्री के लिए नमस्कार।। 7।। तीन शुक्ल संस्थावाली को और क्षमावती को बारंबार नमस्कार तीन अग्नि की संस्थावाली तेजोवती के लिए नमस्कार है, लिंग धारणी नंदा के लिए नमस्कार तथा अमृत की धारारूपी आत्मा वाली के लिए नमस्कार कोई 'नारायण्यै नमोनम:' नारायणी के लिए नमस्कार है ऐसा पाठ करते हैं।। 8।। संसार में आप मुख्य हैं आपके लिए ‍नमस्कार, रेवती रूप आपके लिए नमस्कार, तुझ बृहती के लिए नमस्कार एवं तुझ लोकधात्री के लिए नम: है।। 9।।

संसार की मित्ररूपा तेरे लिए नमस्कार, तुझ नंदिनी के‍ लिए नमस्कार, पृथ्वी शिवामृता और सुवृषा के लिए नमस्कार।। 10।। पर और अपर शतों से आढया तुझ तारा को बार-बार नमस्कार है। फंदों के जालों को काटने वाली अभित्रा तुझको नमस्कार है।। 11।। शान्ता, वरिष्ठा और वरदा जो आप हैं आपके लिए नमस्कार, उत्रा, सुखजग्धी और संजीवनी आपके लिए नमस्कार।। 12।। ब्रहिष्ठा, ब्रह्मदा और दुरितों को जानने वाली तुझको बार-बार नमस्कार।। 13।। सब आपत्तियों को नाश करने वाली तुझ मंगला को नमस्कार।। 14।। सबकी आर्तिको हरने वाली तुझ नारायणी देवी के लिए नमस्कार है। सबसे निर्लेप रहने वाली दुर्गों को मिटाने वाली तुझ दक्षा के लिए नमस्कार है।। 15।। पर और अपर से भी जो पर है उस निर्वाण के लिए देने वाली गंगा के लिए प्रणाम है। हे गंगे! आप मेरे अगाडी हों आप ही मेरे पीछे हों।। 16।।

मेरे अगल-बगल हे गंगे! तू ही रह हे गंगे! मेरी तेरे में ही स्थिति हो। हे गंगे! तू आदि मध्य और अंत सब में है। सर्वगत है तू ही आनंददायिनी है।। 17।। तू ही मूल प्रकृति है, तू ही पर पुरुष है, हे गंगे ! तू परमात्मा शिवरूप है, हे शिवे! तेरे लिए नमस्कार है।। 18।। जो कोई इस स्तोत्र को श्रद्धा के साथ पढ़ता या सुनता है वो वाणी शरीर और चित्त से होने वाले पापों से दस तरह से मुक्त होता है।। 19।। रोगी, रोग से विपत्ति वाला विपत्तियों से, बंधन से और डर से डरा हुआ पुरुष छूट जाता है।। 20।। सब कामों को पाता है मरकर ब्रह्म में लय होता है। वो स्वर्ग में दिव्य विमान में बैठकर जाता है।। 21।।

इस स्तोत्र को लिखकर घर में रख छोड़ता है उसके घर में अग्नि और चोर से भय नहीं होता एवं पापी ही वहाँ सताते हैं।। 22।। ज्येष्ठ शुक्ला हस्तसहित बुधवारी दशमी तीनों तरह के पापों को हरती है।। 23।। उस दशमी के दिन जो कोई गंगाजल में खड़ा होकर इस स्तोत्र को दस बार पढ़ता है जो दरिद्र हो या असमर्थ हो।। 24।। वो गंगाजी को प्रयत्नपूर्वक पूजता है तो उसे भी वही फल मिल जाता है जो कि पहले विधान से फल कहा है।। 25।। जैसी गौरी है वैसी ही गंगाजी है इस कारण गौरी के पूजन में जो विधि कही है वही विधि गंगा के पूजन में भी होती है।। 26।। जैसे शिव वैसे ही विष्णु और शिव में तथा श्री और गौरी में तथा गंगा और गौरी में जो भेद बताता है वो निरा मूर्ख है।। 28।। वो रौरवादिक घोर नरकों में पड़ता है। अदत्त का उपादान, अविधान की हिंसा।। 29।। दूसरे की स्त्री के साथ रमण, ये तीन (कायिक) शारीरिक पाप। पारुष्य, अनृत और चारों ओर की पिशुनता।। 30।। असंबद्ध प्रलाप ये चार तरह की वाणी। पाप; दूसरे के धन की चाह, मन से किसी का बुरा चीतना।। 31।।

मिथ्‍या का अभिनिवेश ये तीन तरह का मन का पाप, इन दसों तरह के पापों को हे गंगे आप दूर कर दें। 32।। ये दस पापों को हरती है, इस कारण इसे दशहरा भी कहते हैं, कोटि जन्म के होने वाले इन दस तरह के पापों से।। 33।। छूट जाता है इसमें संदेह नहीं है। हे गदाधर! यह सत्य है, सत्य है, इसमें संशय नहीं है ! यदि इस मंत्र से गंगा का पूजन करा दिया तो तीनों के दस, तीस और सौ पितरों को संसार से उबारती है।। 34।। कि, 'भगवती नारायणी दस पापों को हरने वाली शिवा गंगा विष्णु मुख्या पापनाशिनी रेवती भागीरथी के लिए नमस्कार है'। ज्येष्ठमास, शुक्ल पक्ष, दशमी तिथि, बुधवार हस्त नक्षत्र गर, आनंद व्यतिपात, कन्या के चंद्र, वृष के रवि इन दशों के योग में जो मनुष्य गंगा स्नान करता है वो सब पापों से छूट जाता है।। 35।।

मैं उस गंगादेवी को प्रणाम करता हूँ जो सफेद मगर पर बैठी हुई श्वेतवर्ण की है तीनों नेत्रों वाली है, अपनी सुंदर चारों भुजाओं में कलश, खिला कमल, अभय और अभीष्ट लिए हुए हैं जो ब्रह्मा, विष्णु शिवरूप है चांदसमेद अग्र भाग से जुष्ट सफेद दुकूल पहने हुई जाह्नवी माता को मैं नमस्कार करता हूँ।। 36।। जो सबसे पहले तो ब्रह्माजी के कमण्डल में विराजती थी पीछे भगवान के चरणों का धोवन बनकर शिवजी की जटाओं में रह जटाओं का भूषण बनी पीछे जन्हु महर्षि की कन्या बनी, यही पापों को नष्ट करने वाली भगवती भागीरथी दिखती है।। 38।।

हर प्रकार की मुसीबतों से अपने आपको बाहर निकालने के लिए गंगा दशहरा के दिन आप इन पंक्तियों का जाप करें और मन ही मन गंगा मैय्या का ध्यान करें। पंक्तियां है-शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे। सर्वस्यार्ति हरे देवि! नारायणि ! नमोऽस्तु ते॥

गंगा दशहरा पर करें ये उपाय

अगर आपको अपने करीयर संबंधी किसी प्रकार की परेशानी का सामना करना पड़ रहा है और आप उस परेशानी से बाहर निकलना चाहते हैं, तो गंगा दशहरा पर स्नान आदि के बाद भगवान शिव की उचित विधि से पूजा करें। साथ ही भगवान को जलाभिषेक करें और चंदन अर्पित करें। फिर हाथ जोड़कर भगवान से अपने करीयर संबंधी परेशानी से छुटकारा पाने के लिए प्रार्थना करें।

अपने हर कार्य की सफलता सुनिश्चित करने के लिए गंगा दशहरा के मौके पर आप पद्म पुराण में गंगा के विषय में दिये इस मूलमंत्र का 108 बार जप करें। मूलमंत्र इस प्रकार है- ओं नमो गंगायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नमः।

अगर अनजाने में हुए किसी गलती का आपको मन ही मन गलानी होती हो तो उससे बचने के लिए गंगा दशहरा पर आपको इस पंक्ति का 51 बार जप करना चाहिए । पंक्ति इस प्रकार है- नमस्त्रि शुक्ल संस्थायै क्षमा वत्यै नमो नमः।

अगर आपकी कोई विशेष इच्छा है, जो आप जल्द ही पूरी करना चाहते हैं, तो गंगा दशहरा के दिन गंगा मईया का ध्यान करते हुए इस पंक्ति का 21 बार जप करें। पंक्ति है- शान्तायै च वरिष्ठायै वरदायै नमो नमः।

लोगों से अपनी मित्रता कायम रखने के लिए और जीवन में समृद्धि पाने के लिए गंगा दशहरा के दिन आपको इस पंक्ति का 51 बार जप करना चाहिए । पंक्ति है- नमस्ते विश्वमित्रायै नन्दिन्यै ते नमो नमः।

अपने अंदर समस्त शक्तियों का संचार करने के लिए गंगा दशहरा के दिन आपको 'गंगा दशहरा स्तोत्र' में दी इन पंक्तियों का 5 बार जप करना चाहिए। पंक्तियां इस प्रकार हैं- ॐ नमः शिवायै गङ्गायै शिवदायै नमो नमः। नमस्ते विष्णुरुपिण्यै, ब्रह्ममूर्त्यै नमोऽस्तु ते॥

अगर आपको लम्बे समय से कोई स्वास्थ्य संबंधी परेशानी बनी हुई है और आप उससे छुटकारा पाना चाहते हो और लंबी आयु की प्राप्ति के लिए गंगा दशहरा के दिन आपको इन पंक्तियों का जाप करना चाहिए । पंक्तियां कुछ इस प्रकार हैं- संसार विष नाशिन्यै, जीवनायै नमोऽस्तु ते। ताप त्रय संहन्त्र्यै, प्राणेश्यै ते नमो नमः॥

अगर आपके मन में हर समय कोई न कोई उलझन बनी रहती है, जिसके चलते आप कुछ नया नहीं कर पा रहे हैं, तो अपने मन की शांति के लिए गंगा दशहरा के दिन इन पंक्तियों का जप करें । वो पंक्तियां हैं- शांति संतान कारिण्यै नमस्ते शुद्ध मूर्त्तये। सर्व संशुद्धि कारिण्यै नमः पापारि मूर्त्तये॥

अगर आप किसी को अपने वश में करना चाहते हैं, तो गंगा दशहरा के दिन आपको कनेर लाल फूलों से बटुक भैरव के निमित्त हवन करना चाहिए।

अगर आप घी, शहद और शक्कर से हवन करते हैं, तो आप किसी को अपने वश में करने की ताकत के साथ ही अभीष्ट लक्ष्मी की प्राप्ति भी कर सकते हैं। वहीं जो लोग केवल लक्ष्मी की प्राप्ति करना चाहते हैं, अपने धन में बढ़ोतरी करना चाहते हैं, तो उन लोगों को गंगा दशहरा के दिन कमल के फूलों से हवन करना चाहिए।

अगर आप ज्ञान की प्राप्ति करना चाहते हैं, अपनी कविता करने की क्षमता को और बेहतर बनाना चाहते हैं, तो गंगा दशहरा के दिन आपको कपूर और गुग्गुल से हवन करना चाहिए।


गंगा दशहरा का शुभ मुहूर्त

मां का गंगा का अवतरण ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को हस्त नक्षत्र में हुआ था। हस्त नक्षत्र का आरंभ 29 मई 11:49 AM – 30 मई 01:08 PM होगा।

दशमी तिथि आरंभ: 29मई 11:49 AM

दशमी तिथि समापन: 30 मई 01:08 PM तक रहेगा

भिजीत मुहूर्त -11:57 AM से 12:50 PM

अमृत काल – 11:37 PM से 01:19 AM

ब्रह्म मुहूर्त –04:08 AM से 04:56 AM

विजय मुहूर्त- 02.14 PM से 03.08 PM

गोधूलि बेला- 06.37 PM से 07.01 PM

निशिता काल- 11.39 PM से 12. 20 AM तक 31 मई

सर्वार्थ सिद्धि योग- 05:45 AM से 06:00 AM

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