Char Dham Yatra: 12 सौ साल पहले शुरू हुई थी चार धाम यात्रा, आखिर अक्षय तृतीया पर ही क्यों खुलते हैं कपाट
Char Dham Yatra: हिंदू धर्म में चार धाम यात्रा को पुण्यप्रद माना गया है।इस यात्रा के माध्यम मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।जन्म-मृत्यु के चक्कर से मुक्ति मिलती है। जीवन के यर्थात का परिचय होता है
Char Dham Yatra चार धाम की यात्रा
चार धाम की यात्रा इस साल 22 अप्रैल से शुरू हो रही है।उत्तराखंड के गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ की यात्रा को चार धाम, कहते हैं कि जो श्रद्धालु इन चारों धामों का दर्शन करने में सफल हो जाते हैं वे जन्म-मरण चक्कर से मुक्त हो जाते हैं। यमुनोत्री मंदिर के पास गर्म पानी के कई स्रोत हैं। इनमें सूर्य कुंड के बारे में कहा जाता है कि अपनी बेटी को आशीर्वाद देने के लिए भगवान सूर्य ने गर्म जलधारा का रूप धारण किया था। गंगोत्री मंदिर के पास भागीरथ शिला है। कहा जाता है कि राजा भागीरथ ने इसी शिला पर बैठकर गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए कठोर तपस्या की थी।चारधाम यात्रा हरिद्वार से शुरू होकर करीब 10 दिन में पूरी होती है
चार धाम यात्रा तृतीया पर ही क्यों हुई शुरू
बता दें, प्रसिद्ध श्री आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित, चार धाम की स्थापना लगभग 1200 साल पहले हुई थी। चार धाम यात्रा विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा करने के लिए की जाने वाली तीर्थयात्रा है। यात्रा में यमुनोत्री, गंगोत्री, बद्रीनाथ और केदारनाथ शामिल हैं। इस यात्रा की शुरूआत अक्षय तृतीया के दिन से होती है। इसी दिन त्रेतायुग की शुरूआत माना जाता है और इसी दिन भगवान परशुराम की जयंती मनाई जाती है। इस तिथि से खास कोई तिथि नहीं हो सकती है। शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन जो भी काम औप पुण्य किया जाता है वह युग-युगांतर तक क्षय नहीं होता है। इसलिए धार्मिक यात्रा जो मोक्ष दायिनी और अक्षय पुण्य देने वाली है उसकी शुरूआत भी इसी दिन से हुई है।
4 धाम यात्रा कैसे शुरू करें
इस यात्रा में शामिल चार मंदिर यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ हैं। इसे छोटा चार धाम यात्रा के नाम से भी जाना जाता है । इनके इलावा एक और चार धाम है जो आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित किये गए था।चारधाम यात्रा की शुरुआत हरिद्वार में गंगा स्नान के साथ शुरू होती है। यहां से सबसे पहले मां यमुना के धाम को कूच किया जाता है. उसके बाद मां गंगा के दर्शन करते हुए बाबा केदार के द्वार पहुंचा जाता है और बद्री विशाल यात्रा का अंतिम सोपान होता है। यदि आप उत्तराखंड के बाहर से हैं, तो यहां से वापस हरिद्वार होकर लौटना ही मुफीद रहता है। इस पूरी यात्रा में 8 से 10 दिन का समय लगता है,
चार धाम यात्रा का समय
छह महीने के कपाट बंद के बाद अब 22 अप्रैल से चार धाम यात्रा शुरू होगी। अप्रैल से उत्तराखंड के चार धाम केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री जनता के लिए खुल जाएंगे। वार्षिक चार धाम यात्रा आधिकारिक तौर पर अक्षय तृतीया (22 अप्रैल) से शुरू होगी। इस दिन गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट खुलेंगे। केदारनाथ धाम 25 अप्रैल सुबह 6 बजकर 20 मिनट पर जनता के लिए खुल जाएगा। बद्रीनाथ धाम के कपाट हालांकि 27 अप्रैल को खुलेंगे।
उत्तराखंड में चार पवित्र स्थलों पर होने वाली वार्षिक चार धाम यात्रा अक्षय तृतीया (22 अप्रैल) से शुरू होती है। इस दिन गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट खुलेंगे, जबकि केदारनाथ धाम के कपाट 25 अप्रैल सुबह 6 बजकर 20 मिनट पर जनता के लिए खुलेंगे। बद्रीनाथ धाम के कपाट हालांकि 27 अप्रैल को खुलेंगे।
चार धाम यात्रा, भारत में हिंदुओं के सबसे प्रमुख तीर्थों में से एक, उत्तराखंड के पहाड़ों में चार पवित्र स्थलों पर होती है। पवित्र यात्रा उत्तरकाशी में यमुनोत्री से शुरू होती है और उसी जिले में गंगोत्री तक जाती है। यात्रा का तीसरा गंतव्य रुद्रप्रयाग जिले में केदारनाथ मंदिर है। अंतिम गंतव्य चमोली जिले में बद्रीनाथ है। चार धाम कुल 1,607 किलोमीटर की दूरी तय करता है।
इस साल का चार धाम अपने साथ कई चुनौतियां लेकर आया है। बद्रीनाथ धाम के प्रवेश द्वार जोशीमठ में भू-स्खलन का मुद्दा सबसे ज्वलंत मुद्दा है। हाल ही में, जोशीमठ ने शहर और उसके आसपास कई खतरनाक दरारें देखीं। खंडित सड़कों, घरों और कृषि क्षेत्रों के साथ, यह स्पष्ट है कि यह क्षेत्र अभी बहुत नाजुक स्थिति में है
चार धाम यात्रा के लिए अधिकारियों ने जोशीमठ मार्ग का उपयोग करने का निर्णय लिया है। उत्तराखंड राज्य सरकार तीर्थयात्रियों को आश्वस्त करती है कि वर्तमान भूवैज्ञानिक समस्या चार धाम यात्रा में बाधा नहीं बनेगी।
केदारनाथ -बद्रीनाथ के कपाट इस दिन खुलेंगे
इस साल केदारनाथ मंदिर के कपाट 25 अप्रैल को मेघ लग्न में सुबह 6 बजकर 20 मिनट पर खुलेंगे। कपाट के खुलने के साथ ही यहां पर तीर्थयात्रियों के आने का सिलसिला शुरू हो जाएगा। बता दें कि केदारनाथ मंदिर के कपाट शीतकाल के लिए पिछले साल 27 अक्टूबर को भैयादूज के दिन बंद हुए थे। मंदिर के कपाट बंद होने के बाद बाबा केदार की डोली ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर के लिए रवाना हुई थी। 29 अक्टूबर को डोली को ओंकारेश्वर मंदिर के शीतकालीन गद्दी स्थल पर विराजमान किया गया था।
केदारनाथ के कपाट को खोलने से चार दिन पहले ही अनुष्ठान शुरू हो जाता है। इस बार ये अनुष्ठान 21 अप्रैल से शुरू हो जाएंगे। इस दिन डोली ऊखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर से केदारनाथ के लिए रवाना होगी। बाबा केदार की पैदल डोली यात्रा 24 अप्रैल को केदारनाथ पहुंचेगी। पहुंचने के अगले दिन धार्मिक अनुष्ठान शुरू होगा। धार्मिक अनुष्ठान के बाद सुबह 6 बजकर 20 मिनट पर केदारनाथ मंदिर के कपाट खोले जाएंगे। इस साल 27 अप्रैल को सुबह 7 बजकर 10 मिनट पर बदरीनाथ धाम के कपाट खुलेंगे।
ऐसे किया था भगवान शिव ने पाप मुक्त
बद्रीनाथ धाम अलकनंदा नदी के किनारे हैं। भगवान विष्णु पृथ्वी पर निवास करने आए तो उन्होंने बद्रीनाथ में अपना पहला कदम रखा। इस जगह पर पहले भगवान शिव का वास था, लेकिन उन्होंने नारायण के लिए इस स्थान का त्याग कर दिया और केदारनाथ में निवास करने लगे। भगवान विष्णु इस स्थान पर ध्यानमग्न रहते हैं।
केदारनाथ धाम में स्वयंभू शिवलिंग अति प्राचीन है। केदारनाथ मंदिर की आयु के बारे में कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। महाभारत युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति के लिए भगवान शिव का आशीर्वाद पाना चाहते थे। भगवान शिव पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, लेकिन पांडव उन्हें खोजते हुए केदार तक आ पहुंचे। भगवान शिव ने बैल का रूप धारण कर लिया और अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया तो भीम ने विशाल रूप धारण कर दो पहाड़ों पर पैर फैला दिए। गाय-बैल तो निकल गए पर भगवान शिव पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम ने बैल की पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शिव, पांडवों की भक्ति देख प्रसन्न हो गए। उन्होंने दर्शन देकर पांडवों को पाप से मुक्त कर दिया।