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अध्यक्ष के सलेक्शन में रमन और सौदान की जोड़ी भारी पड़ी, जिस नेता को लोकसभा की टिकिट नहीं दी गई, उसे प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया

अध्यक्ष के सलेक्शन में रमन और सौदान की जोड़ी भारी पड़ी, जिस नेता को लोकसभा की टिकिट नहीं दी गई, उसे प्रदेश अध्यक्ष बना दिया गया
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By NPG News

रायपुर, 2 जून 2020। भारतीय जनता पार्टी ने आखिरकार आज पूर्व केंद्रीय मंत्री विष्णु देव साय को प्रदेश संगठन की कमान सौंप दी। साय तीसरी बार पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए हैं। हालांकि, यह फैसला आसानी से नहीं हुआ। साय के नाम पर मुहर लगाने में पूरे पांच महीने लग गए।
सनद रहे, इस साल फरवरी में अध्यक्ष के अपाइंटमेंट की चर्चा सुर्खियो में रही थी। दुर्ग से सांसद विजय बघेल को सोशल मीडिया में बधाइयां मिलनी शुरू हो गई थी। लेकिन, बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने पार्टी नेताओं की जोर-आजमाइश को देखते ऐलान के कुछ देर पहले कदम पीछे खींच लिया। जाहिर है, दुर्ग से लोकसभा चुनाव मेें करीब पौने चार लाख वोट से चुनाव जीतने वाले विजय बघेल प्रारंभ में प्रदेश अध्यक्ष की रेस में सबसे आगे थे। लेकिन, कुछ ऐसी चकरी चली कि उनका नाम दौड़ से सिरे से गायब हो गया।
प्रदेश अध्यक्ष के लिए पूर्व मुख्यमंत्री डा0 रमन सिंह और उनके विरोधी खेमे के बीच शह-मात का खेल चलता रहा। रमन सिंह के साथ बीजेपी के क्षत्रप सौदान सिंह थेे। रमन और सौदान ओबीसी की बजाए किसी आदिवासी नेता को संगठन की कमान सौंपने के पक्ष में थे। इसके लिए रमन सिंह खेमे ने दो नाम आगे बढ़ाए थे। पहला विष्णु देव साय तो दूसरा महेश गागड़ा। हालांकि, आदिवासी नेता रामविचार नेताम ने भी कम प्रयास नहीं किया। लेकिन, वे अध्यक्ष की मुहिम में अकेले थे। किसी खेमा का उन्हें समर्थन नहीं मिला। इसलिए, उनका नाम चर्चा में रहा। मगर ये सर्वविदित था कि उन्हें मौका मिलना मुश्किल है।
सियासी प्रेक्षक भी मानते हैं कि रमन सिंह 15 साल मुख्यमंत्री रहे हैं। उनका अपना प्रभाव है। दिल्ली के नेताओं से उनका संपर्क अभी भी बना हुआ है। उपर से पूर्व की तरह सौदान सिंह उनके साथ खड़े थे। ऐेसे में, जाहिर है, पलड़ा रमन खेमा का ही भारी होना था। सो, विरोधियों की तमाम विरोधों को कुंद करते हुए यह जोड़ी विष्णुदेव साय के नाम पर मुहर लगाने में सफल रही। साय के अध्यक्ष बनने से निश्चित तौर पर भाजपा की राजनीति में रमन सिंह का वजन बढ़ा है।
ज्ञातव्य है, भूपेश बघेल जैसे मुख्यमंत्री के खिलाफ किसी तेज-तर्रार नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के लिए कुछ नेता दिल्ली तक फरियाद की थी। पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर और शिवरतन शर्मा के नेतृत्व में कुछ नेताओं ने दिल्ली जाकर तगड़ी मोर्चेबंदी की। पार्टी नेताओं को बताया गया कि भाजपा 15 सीटों पर सिमट गई है। अगर पार्टी को फिर से खड़ा करना है तो किसी मुखर नेता को पार्टी की कमान सौंपी जाए। इसके बाद ही शीर्ष नेतृत्व ने अध्यक्ष नियुक्ति को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। इन नेताओं ने शीर्ष नेताओं के समक्ष दलील रखी थी कि आदिवासी नेताओं को बीजेपी ने हमेशा हद से अधिक अवसर दिया है। एनडीए-वन सरकार में विष्णुदेव साय केंद्रीय मंत्री रहे तो एनडीए-2 में आदिवासी नेत्री रेणुका सिंह मंत्री हैं। नंदकुमार साय भी राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के मुखिया रहे। संगठन में भी स्व0 लखीराम अग्रवाल और धरमलाल कौशिक को छोड़ दिया जाए, तो राज्य बनने के बाद हमेशा आदिवासी नेता को अध्यक्ष बनाया गया। राज्य संगठन में संगठन मंत्री पवन साय भी आदिवासी हैं। पहले रामप्रताप सिंह भी आदिवासी रहे हैं। रामविचार नेताम को राज्य सभा सदस्य बनाया गया। उन्हें अनुसूचित जाति मोर्चा का प्रमुख की जिम्मेदारी सौंपी गई है। ओबीसी नेताओं की नाराजगी इस बात पर है कि आदिवासी नेताओं को इतना सब कुछ देने के बाद भी विधानसभा चुनाव में बस्तर, सरगुजा में दो सीट नहीं मिल पाई और अब फिर अध्यक्ष नियुक्ति में वही बात।
विष्णुदेव साय हालांकि, साफ-सुथरी और सौम्य छबि के नेता हैं। केंद्रीय मंत्री रहने के दौरान उन पर कोई छींटे नहीं पड़े। मगर यह भी सही है कि पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हें रायगढ़ सीट से टिकिट नहीं दी गई। पार्टी ने सीटिंग एमपी को टिकिट न देने का मापदंड बनाया, उसमें वे भी टिकिट से वंचित हो गए। उन्हीं को अगर पार्टी का मुखिया बनाया गया तो सवाल तो उठेंगे ही।

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