Begin typing your search above and press return to search.

तरकश के तीर: एसपी सीनियर और कलेक्टर…

तरकश के तीर: एसपी सीनियर और कलेक्टर…
X
By NPG News

संजय के दीक्षित

खासकर जिन राज्यों में कलेक्टर पुलिस अधीक्षकों के सीआर लिखते हैं, उन राज्यों में यह ध्यान रखा जाता है कि कलेक्टर और एसपी में बैच का ज्यादा अंतर न हो। मगर छत्तीसगढ़ में ये फर्क कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है। यहाँ कई जिलों में एसपी कलेक्टर से चार-चार, पांच-पांच साल सीनियर हो गए हैं। रायपुर, बिलासपुर, जगदलपुर, बालोद समेत दर्जन भर जिले ऐसे हैं, जहां कलेक्टर, एसपी के बैच में बड़ा फासला है। हालांकि, आईएएस का ये तर्क हो सकता है कि उनकी सर्विस सबसे बड़ी है। मगर ज्यादा सीनियर एसपी होने पर व्यवहारिक दिक्कतें आती हैं। जगदलपुर को ही लें, 2012 बैच के कलेक्टर और 2007 बैच के एसपी। ऐसा ही कुछ दुर्ग में हुआ था, जब 2011 बैच के आईएएस सर्वेश भूरे को कलेक्टर बनाया गया था। तब 2004 बैच के आईपीएस अजय यादव वहां के एसएसपी थे। सरकार ने हालांकि कुछ दिन बाद ही अजय यादव को रायपुर शिफ़्ट कर दिया था। बालोद की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है, बालोद में 2012 बैच के आईएएस जनमेजय मोहबे कलेक्टर हैं और 2007 बैच के रेगुलर रिक्रूटड आईपीएस जितेंद्र मीणा एसपी। हो सकता है कलेक्टर, एसपी के ट्रांसफर में बैच का ये गैप दूर हो जाये।

कमिश्नर प्रणाली

सूचना आयोग में दो मीडियाकर्मियों के आयुक्त बनने से इस बात पर मुहर लग गई है कि ब्यूरोक्रेसी के दिन बदले नहीं… उनकी स्थिति यथावत है। वरना, एक सीट तो वे ले ही जाते। बहरहाल, ब्यूरोक्रेसी के डिफेंसिव होने से छत्तीसगढ़ में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने की संभावना बढ़ गई है। देश में रायपुर से भी कम आबादी वाले शहरों में कमिश्नर प्रणाली लागू हो गई है। पिछली सरकार में रायपुर में इसे शुरू करने की बात चली थी। लेकिन, आईएएस लॉबी विरोध में खड़ी हो गई थी। अभी आईपीएस लॉबी आशान्वित इसलिए है कि फैसले एक जगह से हो रहे। मुख्यमंत्री को अगर बात जम गई तो घोषणा कभी भी हो जाएगी।

कलेक्टरों की लिस्ट

विधानसभा का बजट सत्र समाप्त हो जाने के बाद कलेक्टरों के बहुप्रतीक्षित ट्रांसफर की अटकलें फिर तेज हो गई है। याद होगा, पिछले साल 27 मई को कलेक्टरों का सबसे बड़ा ट्रांसफर सरकार ने किया था। उस समय 28 में से 22 कलेक्टर बदल दिए गए थे। पता चला है, इनमें से कुछ कलेक्टरों के कामकाज से सरकार खुश नहीं है। लिहाजा, उन्हें चेन्ज किया जाएगा। लेकिन कब? पहले अंदेशा था, विधानसभा के बाद सरकार कभी भी लिस्ट निकाल देगी। लेकिन, अब पांच राज्यों का चुनाव आ गया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल असम के पर्यवेक्षक होने के साथ ही पार्टी के स्टार प्रचारक भी हैं। जाहिर है उनकी व्यस्तता काफी होगी। ऐसे में देखना है, कलेक्टरों की लिस्ट अभी निकलती है या असम चुनाव के बाद।

एसपी की धड़कनें

पिछले स्तंभ में हमने जिक्र किया था कि एसपी बनने की खुशी में एक आईपीएस ने मिठाई भी मंगा लिया था, लेकिन लिस्ट अटक गई। इससे अंदाज़ लगाया जा सकता है कि विधानसभा सत्र खत्म होने से उनकी उम्मीदें कितनी बढ़ गई होगी। दरअसल, एसपी लेवल पर बड़ी उलटफेर होगी। कई पुलिस अधीक्षकों की छुट्टी होगी तो कुछ के जिले बदलेंगे। ऐसे में, एसपी की बेचैनी समझी जा सकती है।

दुखद अध्याय

विधानसभा में आसंदी यानी स्पीकर के साथ जो हुआ, उससे छत्तीसगढ़ के प्रथम विधानसभा अध्यक्ष पण्डित राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल की आत्मा भी कलप रही होगी। 20 साल में पहली बार ऐसा हुआ, जब विपक्ष ने आसंदी की ऐसी बेपरवाही की। वो भी चरणदास महंत जैसे स्पीकर, जो सबको साथ लेकर चलने वाले नेता माने जाते हैं। जो काम कांग्रेस ने कभी 40 से अधिक सदस्य होने के बाद नहीं किया, वो 15 सदस्य वाली भाजपा ने किया। अजय चंद्राकर, शिवरतन शर्मा जैसे तेज तर्रार विधायक सरकार पर भारी पड़ रहे थे, लेकिन, बहिर्गमन और बगावत की सियासत ने सब पर पानी फेर दिया।

सदन में खेमेबाजी

15 साल सत्ता में रही भाजपा 15 सीटों पर भले ही सिमट गई मगर गुटबाजी ऐसी कि, उसका नजारा लोगों ने विधानसभा में भी देखा। बहिर्गमन और बगावत पर नेता प्रतिपक्ष का बॉडी लैंग्वेज कुछ और था तो बाकी का कुछ और। सत्ता पक्ष मंद मुस्कुराहटों के साथ इसका मजा लेता रहा। कई बार ऐसा लग कि वॉक आउट के फैसले से नेता प्रतिपक्ष सहमत नहीं हैं।

अंत में दो सवाल आपसे

1. कोंडागांव में आदिवासियों और क्रिश्चियन कम्युनिटी के बीच विवाद चल रहा है, उसे प्रशासन अंडर स्टीमेट क्यों कर रहा है?

2. क्या लाल बत्ती की दूसरी सूची क्या असम चुनाव के बाद निकलेगी?

Next Story