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तरकश: एक गांव, 2 लाल बत्ती

तरकश: एक गांव, 2 लाल बत्ती
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By NPG News

संजय के. दीक्षित
तरकश, 18 जुलाई 2021

एक गांव, 2 लाल बत्ती

रिटायर आईएएस सर्जियस मिंज को राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ वित्त आयोग का प्रमुख अपॉइंट किया है। सर्जियस 2018 के विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पहले कांग्रेस जॉइन किये थे। उन्हें कुनकुरी से विस् टिकिट मिलने की भी चर्चा थी। लेकिन, ऐसा हो नहीं पाया। सर्जियस कुनकुरी से 8 किलोमीटर दूर घुईटाँगड गांव के निवासी हैं। उनके घर के बगल में यूडी मिंज का घर है। सरकार ने कुछ महीने पहिले उन्हें संसदीय सचिव बनाया था। यानी एक गांव में दो-दो लालबत्ती। घुईटाँगड के लिए इससे अच्छी बात क्या होगी।

आईएएस की छोटी लिस्ट

रेवन्यू बोर्ड चेयरमैन सीके खेतान इस महीने 31 को रिटायर हो जाएंगे। 31 शनिवार पड़ रहा है। इसलिए, समझा जाता है 31 को ही सरकार नए चेयरमैन का आदेश निकाल देगी। नए चेयरमैन की नियुक्ति के साथ ही आईएएस की एक छोटी लिस्ट निकल सकती है। क्योंकि, सरकार जिसे चेयरमैन बनाएगी, उसे मंत्रायल से शिफ्थ करना होगा। जाहिर है, एक चेन बनेगा, जिसमें कुछ और आईएएस प्रभावित हो सकते हैं।

आईएएस एसोसियेशन

31 जुलाई को रिटायर होने जा रहे सीके खेतान आईएएस एसोसियेशन के प्रेसिडेंट भी हैं। जाहिर है, खेतान के सेवानिवृत्त होने के बाद आईएएस एसोसियेशन को भी अपना नया अध्यक्ष चुनना होगा। लेकिन, जिस तरह सरकार को सीनियर अफसरों की कमी का सामना करना पड़ रहा है, कुछ वैसी स्थिति आईएएस बिरादरी के सामने होगी। आईएएस एसोसियेशन प्रेसिडेंट चीफ सिकरेट्री लेवल का यानी एडिशनल चीफ सिकरेट्री होना चाहिए। छत्तीसगढ़ में एसीएस लेवल पर कुल जमा दो अफसर हैं। रेणु पिल्ले और सुब्रत साहू। प्रेसिडेंट बनने की संभावना सुब्रत का ज्यादा लग रहा है। क्योंकि, इससे पहले महिला आईएएस कभी प्रेसिडेंट नहीं रही। हालांकि, दीगर राज्यों में सीएम सचिवालय के अधिकारियों को इस पोस्ट पर नहीं बिठाया जाता। इसकी वजह यह है कि सीएम सचिवालय में पोस्टेड आईएएस को आईएएस से ज्यादा सरकार का हिस्सा माना जाता है। अलबत्ता, छत्तीसगढ़ में सिकरेट्री टू सीएम एन बैजेंद्र कुमार लंबे समय तक एसोसियेशन के प्रेसिडेंट रह चुके हैं। इसलिए खेतान के बाद सुब्रत के नाम पर मुहर लग सकता है। सुब्रत का प्रेसिडेंट बनना सरकार को भी भाएगा।

चीफ सिकरेट्री नहीं

छत्तीसगढ़ में आईएएस एसोसियेशन के साथ यह मिथक जुड़ा हुआ है कि जो प्रेसिडेंट बनता है, वह चीफ सिकरेट्री की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाता। एन बैजेंद्र कुमार और सीके खेतान तेज अधिकारी होने के बाद भी सीएस नहीं बन पाए। उनसे पहिले बीकेएस रे लंबे समय तक एसोसियेशन के प्रमुख रहे। लेकिन, जब चीफ सिकरेट्री बनाने का मौका आया तो उनसे चार बैच जूनियर शिवराज सिंह सीएस बन गए थे। अपने पूर्वजों का हश्र देखकर, हो सकता है कि सुब्रत साहू प्रेसिडेंट बनने में हिचकिचाए। सुब्रत ही क्यों, अब कोई भी अफसर एसोसियेशन का प्रेसिडेंट बनने से बचना चाहेगा। लेकिन, ऐसा नहीं है…मिथक टूटता भी है। हो सकता है वे एसोसियेशन का प्रेसिडेंट भी बन जाएं और चीफ सिकरेट्री भी। सुब्रत के रिटायरमेंट में अभी काफी टाईम बाकी है। 2028 में सेवानिव्त्त होंगे।

पिच पर उतरते ही बैटिंग

कामकाज में कसावट लाने मुख्यमंत्री ने पिछले महीने कई मंत्रियों का प्रभार जिला बदल दिया। लेकिन, मंत्रियों का एक सूत्रीय एजेंडा इससे नहीं बदला। नई पिच पर उतरते ही कई मंत्रियों ने धुंआधार बैटिंग शुरू कर दी है। जिस जिले में डीएमएफ का भारी-भरकम फंड नहीं है, वहां मंत्रियों ने पूरा ध्यान वर्क्स डिपार्टमेंट पर केंद्रित कर दिया है। ऐसे ही एक मंत्रीजी की यहां बात कर रहे हैं। नए फेरबदल में मंत्रीजी को डीएमएफ विहीन जिला मिला। इससे उन्हें धक्का तो लगा मगर मंत्रीजी के डिप्टी कलेक्टर पीएस ने इसके लिए तरीका निकाल डाला। उन्होंने पीडब्लूडी, इरीगेशन, पीएचई और आरईएस के कार्यपालन अभियंताओं को लिखित पैगाम भेजा…फलां तारीख को मीटिंग है, विभागीय जानकारी लेकर मंत्री जी के रायपुर निवास पहुंचे और अधोहस्ताक्षरी से मिलें। अधोहस्ताक्षरी मतलब पीएस। अब ये समझने की बात है कि मंत्री का पीएस अधिकारियों को बुलाकार काम का टारगेट तो देगा नहीं…तीनों विभाग के ईई अब टारगेट पूरा करने की कोशिश में जुट गए हैं।

मंत्री पूत

डीएमएफ में शिकायतों के बाद सरकार ने कुछ मंत्रियों का प्रभार जिला तो बदल दिया मगर सरकार को अपने मंत्रियों के परिजनों की सरकारी कामकाज में बढ़ती दखलंदाजी पर भी ध्यान देनी चाहिए। खासकर मंत्री के बेटों पर। जिस तरह पिता के प्रभार वाले जिलों में मंत्री पूत सीधे डीएमएफ में रुचि ले रहे हैं, वो सरकार के लिए आगे चलकर मुसीबत का सबब बन सकता है। कई मंत्री के बेटे इन दिनों कलेक्टर को सीधे फोन लगा रहे और हैरत की बात….कलेक्टर उन्हें मंत्री सरीखा रिस्पांस भी कर रहे। कई मंत्रियों के बेटे, भतीजे, भांजे तो पूरा विभाग चला रहे हैं। विभागीय परचेज से लेकर ट्रांसफर-पोस्टिंग में उनका सीधा हस्तक्षेप होता है। सरकार की सेहत के लिए ये ठीक नहीं।

आदिवासी मंत्री और माफिया

ये शीर्षक आपको चौंकाएगा….आदिवासी मंत्री का माफिया से भला क्या वास्ता? मगर यह बिल्कुल सही है। छत्तीसगढ़ के एक आदिवासी मंत्री का आप नाम बता दीजिए, जिसके सराउंडिंग कोई आदिवासी नेता हो…या किसी आदिवासी को मंत्री ने अपना सलाहकार बनाया हो। सालों से ये बदस्तूर चला आ रहा है….ट्राईबल मंत्री जिस दिन शपथ लेते हैं, उसी दिन से ठेकेदारों, सप्लयारों का एक खास काकस मंत्री को अपने घेरे में ले लेता है। मंत्री का जन्मदिन हो या उनके विभाग से संबंधित उपलब्धि…राजधानी में जो होर्डिग्स लगते है, उनमें कोई अ-सरदार होता है या फिर लक्ष्मी पुत्र। दरअसल, इन लोगों के पास ट्राईबल मंत्रियों पर डोरे डालने के लिए भांति-भांति के तरीके होते हैं। जाहिर है, पिछली सरकार के एक आदिवासी मंत्री को इन लोगों ने मुंबई जाने की ऐसी आदत लगाई कि वे बेचारे आज भी इस लत से उबर नहीं पा रहे। एक वर्तमान आदिवासी मंत्री पर बिलासपुर के एक अ-सरदार इतना हॉवी हो गए कि पूछिए मत! विभाग में मैसेज है…जिन अधिकारियों, कर्मचारियों को कोई काम हो, अ-सरदार से मिल लें। अधिकांश ट्राईबल मिनिस्टर इसी तरह छत्तीसगढ़ में लक्ष्मीपुत्रों द्वारा हाईजैक कर लिए जा रहे।

उपाध्यक्ष को वेटेज

आमतौर पर राजनीतिक पार्टियों के उपाध्यक्षों की कोई खास अहमियत नहीं होती। इसे सीनियर नेताओं की तुष्टिकरण वाली पोस्टिंग मानी जाती है। लेकिन, भाजपा ने अब अपने उपाध्यक्षों को भी वेटेज देना शुरू किया है। प्रधानंमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार सिर्फ उपाध्यक्षों की बैठक बुलाई थी। छत्तीसग़ढ़ से इसमें शिरकत करने पूर्व मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह भी पहुंचे। इससे पहिले पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के अलावा उपाध्यक्षों की कोई पूछपरख नहीं होती थी। मगर अब स्थिति बदली है।

बर्फ पिघली?

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राजभवन जाकर राज्यपाल अनसुईया उइके से मुलाकात की। इस मौके की फोटो और बयान सामने आए, उससे लगा दोनों की मुलाकात बड़ी आत्मीय रही। मुख्यमंत्री ने राज्यपाल को साड़ी भेंट की। और, राज्यपाल ने कोरोना बचाव कार्य में भूपेश बघेल के काम की जमकर तारीफ की। विवि संशोधन अनिनियम समेत कई विधेयकों को लेकर राजभवन और सरकार के बीच गहरे मतभेद रहे हैं। तो क्या समझा जाए कि रिश्तों पर जमी बर्फ अब पिघल गई है….जो भी हो, मगर यह जरूर है कि बीजेपी को ये सियासी रवायत नहीं भायी होगी।

जिला वीवीआईपी और…

बाकी जिलों में हो तो समझ में आता है मगर यह दुर्ग में…तो फिर हैरान करता है। बीएसपी के बाद दुर्ग इलाके का सबसे बड़ा उद्योग माना जाने वाला टॉपवर्थ स्टील लिमिटेड के 700 से अधिक मजदूरों के सामने फांके की स्थिति निर्मित हो गई है। कोरोना पीरियड में प्रबंधन ने कई महीने की सेलरी नहीं दी। और अब महामारी की आड़ में कारखाना बंद कर दिया है। पता चला है, मुंबई के कारोबारी अभय लोढ़ा ने करोड़ों रुपए बैंक से लोन लिया और घाटा बताकर प्लांट बंद कर दिया। लोन, घाटा और दिवालिया का खेल औद्योगिक घरानों में खूब होता है। यही गेम इसमें भी हो रहा है। मामले को एनसीएलटी में ले जाया गया। एनसीएलटी कोर्ट ने रिजोलुशन प्रोफेशनल अपाइंट कर दिया। ताकि, फिर से कारखाना चालू किया जा सकें। फैक्ट्री फिर से चालू भी हुई लेकिन, रणनीति के तहत बंद कर दिया गया। और अब बंद हालात में बेचने की कोशिश हो रही। इससे फैक्ट्री मालिक को पैसा अच्छा मिल जाएगा। लेकिन, सैकड़ों श्रमिकों को क्या…? सरकार को इसे देखना चाहिए।

अंत में दो सवाल आपसे

1. लेमरू सेंचुरी का दायरा घटाने के इश्यू पर अमित जोगी ने प्रेस कांफ्रेंस की मगर मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा क्यों खामोश है?

2. क्या आईपीएस ओपी पाल सरगुजा के नए पुलिस महानिरीक्षक होंगे?

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