Begin typing your search above and press return to search.

ग्रह-नक्षत्र के शिकार

ग्रह-नक्षत्र के शिकार
X
By NPG News

संजय के दीक्षित
तरकश, 18 अक्टूबर 2020
ग्रह-नक्षत्र के चक्कर में राजभवन के सचिव सोनमणि बोरा भले ही पिस गए हों मगर इसमें एक वजह और भी बताई जा रही है। खबर है, स्टेट गवर्नमेंट की अहम योजना मोहल्ला क्लीनिक के लिए सरकार ने बोरा से कहा था कि लेबर विभाग के मद से कुछ पैसे नगरीय प्रशासन विभाग को ट्रांसफर कर दें। बोरा ने नियमों का हवाला देकर ऐसा करने से मना कर दिया। सरकार को यह नागवार गुजरा। सरकार ने पिछले हफ्ते बोरा से लेबर विभाग लेकर अंबलगन पी को सौंप दिया। लेबर विभाग से 55 करोड़ रुपए नगरीय प्रशासन को ट्रांसफर कर दिया। कुल मिलाकर बोरा के लिए हार्ड लक वाला मामला रहा। पिछली सरकार में भी वे हांसिये पर रहे। खासकर तीसरी पारी में उन्हें अच्छी पोस्टिंग नहीं मिल पाई। यहां तक कि हायर स्टडी के लिए यूएस जाने के लिए उन्हें कितने पापड़ बेलने पड़े थे। पिछले साल वहां से लौटकर आए तो पोस्टिंग के लिए महीना भर वेट करना पड़ा। फिर हायर एजुकेशन विभाग मिला भी तो 21 दिन में खिसक गया। इसके बाद ऐन आदिवासी नृत्य महोत्सव के पहले संस्कृति विभाग हाथ से निकल गया। और, अब राजभवन। ग्रह-नक्षत्र का कुछ चक्कर तो है बोरा के साथ, वरना वे कमजोर अफसर तो नहीं हैं।

कलेक्टरों पर भरोसा

एक नवंबर से प्रारंभ होने जा रही सरकार की अब तक की सबसे महत्वपूर्ण योजना-मोहल्ला क्लीनिक-की तैयारी युद्ध स्तर पर शुरू हो गई है। मोहल्ला क्लीनिक सिर्फ सीएम का ड्रीम प्रोजेक्ट ही नहीं है बल्कि दिल्ली की तरह अगले विधानसभा चुनाव में इसका काफी इम्पैक्ट रहेगा। इसलिए, इस योजना को सियासत से दूर रखा जा रहा है। हालांकि, प्रारंभ में हेल्थ विभाग को इसका कंसेप्ट बनाने कहा गया था। लेकिन, हेल्थ वाले कुछ नहीं कर पाए। तो सरकार ने इसका जिम्मा नगरीय प्रशासन को सौंप दिया। बाद में, सरकार के रणनीतिकारों को लगा कि नगरीय प्रशासन विभाग के चक्कर में मामला गड़बड़ा न जाए…महापौर, पार्षद आखिर राजनीति करने से मानेंगे कहां। इस वजह से सरकार ने मोहल्ला क्लीनिक को कलेक्टरों के हवाले कर दिया है। इसके आॅपरेशन के लिए अरबन पब्लिक सर्विस सोसाईटी बनाई गई है। कलेक्टर इसके चेयरमैन और नगर निगम कमिश्नर सिकरेट्री होंगे। अब, कलेक्टर मंत्रियों, महापौरों की सुनते नहीं, इसलिए समझा जाता है मोहल्ला क्लीनिक में बेजा दखलांदाजी कम होगी।

गुरू को नमन!

नारी सशक्तिकरण की आईकाॅन पद्यश्री फूलबासन बाई को छत्तीसगढ़ में भला कौन नहीं जानता। फूलबासन बाई 23 अक्टूबर को अमिताभ बच्चन के केबीसी शो में हिस्सा लेंगी। इसकी रिकार्डिंग हो चुकी है। फूलबासन बाई ने इस शो में अपनी कामयाबी के लिए राजनांदगांव के तत्कालीन कलेक्टर दिनेश श्रीवास्तव को भी याद किया है। शायद नए लोगों को मालूम नहीं होगा कि छत्तीसगढ़ में सबसे पहले स्व सहायता समूह गठित कर महिलाओं को प्रोत्साहित करने का काम दिनेश श्रीवास्तव ने ही राजनांदगांव में शुरू किया था। 2001 में बकरी चराने वाली पांचवी पास फूलबासन बाई उनके संपर्क में आई। श्रीवास्तव ने फूलबासन की प्रतिभा को देखकर मां बम्लेश्वरी स्व सहायता समूह गठित कराया। फूलबासन इसकी अध्यक्ष हैं। और दिनेश श्रीवास्तव आज भी उसके मुख्य संरक्षक। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस ग्रुप में लगभग दो लाख से अधिक महिलाएं जुड़ी हुई हैं और 20 करोड़ रुपए से अधिक बैंक बैलेंस है। इसी काम के जरिये फूलबासन देश-दुनिया के लिए जानी-पहिचानी शस्खियत बन गई। तभी तो फूलबासन ने केबीसी में दिनेश श्रीवास्तव को याद किया।

हार के बाद जीत

मरवाही उपचुनाव से छत्तीसगढ़ की सियासत गरमाई हुई है। ऐसे में, कोटा उपचुनाव की याद ताजा हो जा रही। 2007 में हुए कोटा उपचुनाव में सत्ताधारी बीजेपी इस सीट को लेकर इतना संजीदा थी कि सभी 13 मंत्रियों और 30 से अधिक विधायकों को कोटा भेज दिया था। आलम यह था कि कमजोर इलाके में दो-दो, तीन-तीन गांव पर एक मंत्री तैनात कर दिए गए थे। इसके बाद भी भाजपा कोटा सीट कांग्रेस से छीन नहीं पाई। कांग्रेस के दिग्गज नेता राजेंद्र प्रसाद शुक्ल के देहावसान की वजह से यह सीट खाली हुई थी। तब राजेंद्र प्रसाद शुक्ल के परिजनों को इस सीट पर टिकिट क्यों नहीं मिली और रेणु जोगी कैसे पार्टी प्रत्याशी बन गईं…इसकी अलग कहानी है। बहरहाल, कोटा की यही हार भाजपा की 2008 में जीत की वजह बनी। इस हार के बाद सरकार को फीडबैक मिला था कि पीडीएस की खामियां सरकार को भारी पड़ी। वहीं से एक रुपए किलो चावल योजना की नींव पड़ी। यही नहीं, तत्कालीन फूड सिकरेट्री डाॅ0 आलोक शुक्ला को पीडीएस ठीक करने का जिम्मा दिया गया और शुक्ला ने छत्तीसगढ़ के पीडीएस को देश का माॅॅडल बना दिया।

राजभवन का रिवार्ड

राजभवन के नए सिकरेट्री अमृत खलको यह सोचकर जगदलपुर से रायपुर रवाना हुए कि राजभवन में एक पोस्टिंग कर लेने के बाद उसके बाद का मामला ठीक-ठाक हो जाएगा। लेकिन, ऐसा हुआ नहीं। खलको अभी तक ज्वाईन नहीं कर पाए हैं। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि राजभवन में पोस्टेड अधिकारियों को वहां से हटने पर बढ़ियां पोस्टिंग मिलती है। वो चाहे सिकरेट्री हो या एडीसी। एडीसी में दिपांशु काबरा से लेकर विवेकानंद, राहुल शर्मा, डाॅ0 आनंद छाबड़ा, भोजराम पटेल…सभी को अच्छे जिलों की कप्तानी मिली। इसी तरह शुरू से लेकर अभी तक…राजभवन के फस्र्ट सिकरेट्री सुशील त्रिवेदी भारी-भरकम दो विभाग के सिकरेट्री बनाए गए थे। उनके बाद आईसीपी केसरी पीडब्लूडी के सिकरेट्री बनें। अमिताभ जैन को भी पीडब्लूडी और जनसंपर्क मिला। पीसी दलेई राज्य निर्वाचन आयुक्त बनाए गए। जवाहर श्रीवास्तव और अशोक अग्रवाल सूचना आयुक्त बनें। सुरेंद्र जायसवाल को तो रिटायरमेंट की शाम ही संसदीय सचिव पर संविदा नियुक्ति मिल गई। लेकिन, खलको का पता नहीं अब क्या होगा।

पहली बार दो आईएएस

राज्य बनने के बाद कभी ऐसा नहीं हुआ कि राजभवन में दो आईएएस पोस्ट किए गए हों। एक आईएएस सिकरेट्री रहता है। और, राप्रसे का अफसर डिप्टी या ज्वाइंट सिकरेट्री। इस बार राजभवन को इम्पाॅर्टेंस देते हुए सरकार ने अमृत खलको को सचिव और केडी कुंजाम को ज्वाइंट सिकरेट्री गनाया है। ये अलग बात है कि दोनों अभी ज्वाईन करने में कामयाब नहीं हो पाए हैं।

तरकश की खबर

तरकश स्तंभ के पिछले एपीसोड में अमित के नाम पर संशय और डाॅक्टर के खिलाफ डाॅक्टर…दो खबरें थीं और दोनों सही निकली है। हमने बता दिया था कि मरवाही में अमित का चुनाव लड़ना मुश्किल है। उस समय कांग्रेस और बीजेपी के कंडिडेट घोषित नहीं हुए थे। बावजूद इसके…हुआ वहीं। डाॅक्टर के खिलाफ डाॅक्टर।

फिफ्टी-फिफ्टी

मरवाही बाइ इलेक्शन में कांग्रेस को सत्ता होने का स्वाभाविक लाभ तो मिलेगा ही, कुछ और बातें हैं जो उसके पक्ष में जा रहे हैं। पहला, कांग्रेस कंडिडेट डाॅ केके ध्रुव का मरवाही में अच्छी पकड़ है। पेंड्रा और गौरेला कांग्रेस के लिए जरूर बड़ा गड्ढा रहा है। पिछले चुनाव में इन दोनों इलाकों में जोगी के पक्ष में एकतरफा वोट पड़े थे। इस बार जोगी का कोई कंडिडेट है नहीं। और, उनके 90 परसेंट करीबी लोग पार्टी छोड़ कांग्रेस ज्वाईन कर लिए हैं। कांग्रेस के लिए यह उत्साह की वजह है। किन्तु, सवाल यह है कि अब जोगी के वोट किस पार्टी को मिलेंगे। पिछले चुनाव में अजीत जोगी को 74 हजार वोट मिले थे। सियासी पंडितों का कहना है कि जोगी के फिफ्टी-फिफ्टी वोट कांग्रेस-भाजपा में बंट जाएंगे। लेकिन, कांग्रेस जी तोड़ कोशिश में है कि जोगी के प्रभाव वाले वोट किसी भी सूरत में बीजेपी की ओर टर्न न करें।

अंत में दो सवाल आपसे

1. इस शिगूफे में कितनी सच्चाई है कि मरवाही उपचुनाव कानूनी दांव-पेंच में फंसकर अधर में लटक सकता है?
2. किस जिले के एसपी आईपीएस की मान-मर्यादा को ताक पर रख एक सूत्रीय वसूली अभियान मे जुटे हुए हैं?

Next Story