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शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष के नाम से बदलेगा बिलासपुर का समीकरण

दीपावली के ठीक बाद छत्तीसगढ़ के ज्यादातर जिलों के जिला अध्यक्षों का फैसला कांग्रेस कर लेगी। इनमें से बिलासपुर शहर जिला अध्यक्ष का नाम इस मायने में महत्वपूर्ण रहेगा कि इससे बिलासपुर में कांग्रेस की राजनीति के समीकरण बदल जाएंगे। पर्यवेक्षक ने अपनी रिपोर्ट हाईकमान को सौंप दी है।

शहर जिला कांग्रेस अध्यक्ष के नाम से बदलेगा बिलासपुर का समीकरण
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By Radhakishan Sharma

बिलासपुर। बिलासपुर शहर की कांग्रेस की राजनीति से बिलासपुर संभाग की राजनीति भी प्रभावित होती है। इस कारण अभी बिलासपुर शहर और ग्रामीण जिला अध्यक्षों के चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता भी जोर लगा रहे हैं। पर्यवेक्षक की रिपोर्ट पर चर्चा के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज, नेता प्रतिपक्ष चरणदास महंत, पूर्व सीएम भूपेश बघेल और पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव को दिल्ली बुलाया गया है। इससे साफ है कि हाईकमान दिग्गज नेताओं की पसंद भी जानना चाहेगा।

सभी दिग्गजों की चाहत है कि उनके समर्थक को शहर जिला अध्यक्ष के पद पर मौका मिले। वर्तमान पदाधिकारियों के नामों के हिसाब से अभी महंत गुट बिलासपुर में ज्यादा ताकतवर है। नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत खुद भी बिलासपुर से जांजगीर तक व्यक्तिगत रूप से सक्रिय रहते हैं। इनके बाद बिलासपुर में पूर्व उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव भी अपनी राजनीतिक ताकत बढ़ाने की इच्छा रखते हैं। सरगुजा के बाद वे बिलासपुर तक संगठन में पकड़ रखना चाहते हैं। इसके पीछे भविष्य की राजनीति को माना जा रहा है। अभी भी श्री सिंहदेव के समर्थकों की संख्या बिलासपुर संभाग में कम नहीं है।

महंत गुट जिला अध्यक्ष के लिए अपने नामों पर जोर लगा रहा है तो श्री सिंहदेव की ओर से एकमात्र नाम पूर्व विधायक शैलेश पांडेय का नाम चर्चा में है। जबकि पर्यवेक्षक उमंग सिंघार के दौरे के वक्त पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के समर्थक भी सक्रिय रहे। उनके खास समर्थक माने जाने वाले कोटा विधायक अटल श्रीवास्तव ने भी पर्यवेक्षक से मुलाकात की थी। दूसरी ओर मस्तूरी के विधायक दिलीप लहरिया ने भी ग्रामीण अध्यक्ष के लिए दावेदारी कर दी है, इससे मुकाबला रोचक हो गया है।

सामने आ रहे नामों से संकेत मिल रहे हैं कि शहर अध्यक्ष का पद सामान्य वर्ग के हवाले किया जा सकता है। बाकी दो पदों पर ओबीसी या एससी की दावेदारी प्रबल मानी जा रही है। यह देखना भी दिलचस्प रहेगा कि महंत या सिंहदेव गुट में से किसका कब्जा अधिक पदों पर होता है। पार्टी सूत्रों का मानना है कि दोनों ही नेता दिग्गज और सुलझे हुए हैं, इस कारण यह भी संभव है कि सरगुजा और बिलासपुर संभाग में बनने वाले जिला अध्यक्षों को लेकर दोनों नेताओं के बीच समन्वय नजर आए।

वैसे तो अध्यक्षों का फैसला पर्यवेक्षक की रिपोर्ट के आधार पर दिल्ली में होगा, मगर दीपावली के बीच भी दावेदार बिलासपुर से रायपुर और दिल्ली तक लगातार सक्रिय हैं। सबसे ज्यादा नजर बिलासपुर शहर अध्यक्ष को लेकर है। पर्यवेक्षक उमंग सिंघार कांग्रेस भवन में सबसे मुलाकात कर रहे थे, तब पूर्व विधायक शैलेश पांडेय नजर नहीं आए। उनकी जगह उनके समर्थक उनका नाम लेकर कांग्रेस भवन पहुंचे हुए थे। जबकि पूर्व महापौर रामशरण यादव खुद मिलने पहुंचे और पर्यवेक्षक को निर्धारित फार्मेट में अपना आवेदन भी सौंप दिया है। लगातार विधानसभा के टिकट के लिए प्रयास कर रहे रामशरण को उम्मीद है कि इस बार संगठन में महत्व मिलेगा।

इनके साथ ही शहर जिला अध्यक्ष विजय पांडेय ने फिर से दावेदारी ठोकी है। हालांकि माना जा रहा है कि पार्टी ने नए चेहरे को मौका देने का फैसला ले लिया है। इनके अलावा राजकुमार तिवारी, सीमा पांडेय, शिवा मिश्रा, सुधांशु मिश्रा, महेश दुबे, नरेंद्र बोलर, अमृतांश शुक्ला, शिल्पी तिवारी, शैलेंद्र जायसवाल सहित कई लोगों ने आपना नाम आगे बढ़ाया है। इनमें से सीमा पांडेय का निष्कासन संगठन की चुनाव प्रक्रिया शुरू होने और पर्यवेक्षक के आने के ठीक पहले निरस्त किया गया था।

दीपावली के ठीक बाद होगा फैसला

उम्मीद की जा रही है कि दीपावली के ठीक बाद पर्यवेक्षक की रिपोर्ट पर राष्ट्रीय मंत्री के.वेणुगोपाल और राहुल गांधी की बैठक में जिला अध्यक्षों का फैसला हो जाएगा। बिलासपुर शहर जिला अध्यक्ष, बिलासपुर जिला ग्रामीण अध्यक्ष और मुंगेली जिला अध्यक्ष का फैसला होना है। ग्रामीण में इस बार दो जिला अध्यक्ष दिए जा सकते हैं। बिलासपुर ग्रामीण जिला अध्यक्ष का समीकरण मुंगेली और जांजगीर में तय होने वाले नामों से प्रभावित रहेगा।

यदि मुंगेली को ओबीसी जिला अध्यक्ष दिया जाता है तो बिलासपुर ग्रामीण जिला अध्यक्ष में एक नाम एससी यानी अनुसूचित जाति का बनना लगभग तय हो जाएगा। इससे साथ ही जांजगीर में जिला अध्यक्ष सामान्य या ओबीसी से चुना जा सकता है। पार्टी का एक खेमा चाहता है कि बिलासपुर ग्रामीण जिला अध्यक्ष का पद ओबीसी को ही दिया जाना चाहिए, क्योंकि ओबीसी वोटरों की बहुतायत है।

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