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Political news: लोकसभा चुनाव का नैरेटिव संविधान बदलने पर था, महाराष्ट्र व झारखंड चुनाव में यह सब नहीं आया नजर

Political news: करीब सात महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव का नैरेटिव संविधान बदलने पर था। इसका देशव्यापी असर भी हुआ। राष्ट्रीय राजनीति में पांच साल पहले भाजपा ने जो प्रदर्शन किया था वह दोहरा नहीं पाई। निराशाजनक प्रदर्शन के बीच सात आठ महीने में ऐसे क्या हुआ कि राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने वाले महाराष्ट्र में भाजपा ने अब तक राजनीतक इतिहास में दमदार प्रदर्शन किया है। जाहिर सी बात है विधानसभा चुनाव में नैरेटिव बदल गया। संविधान बदलने का नैरेटिव नजर नहीं आया। राजनीतिक माहौल उस नैरेटिव से हटकर लाड़की बहिन योजना, मुंबई में टोल फ्री एंट्री, आवास जैसी योजनाओं पर आ गया। जो कुछ हुआ सबके सामने है। एक और महत्वपूर्ण बात ये कि महाराष्ट्र और झारखंड में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव और परिणाम पर नजर डालें तो मौजूदा चुनाव में महिला मतदाताओं ने सुझबुझ के साथ समझदारी का परिचय दिया है। ठीक वैसे ही जैसे एक साल पहले मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनाव में।

Political news: लोकसभा चुनाव का नैरेटिव संविधान बदलने पर था, महाराष्ट्र व झारखंड चुनाव में यह सब नहीं आया नजर
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By Radhakishan Sharma

Political news: बिलासपुर। करीबन सात महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव का नैरेटिव संविधान बदलने पर था। इसका देशव्यापी असर भी हुआ। राष्ट्रीय राजनीति में पांच साल पहले भाजपा ने जो प्रदर्शन किया था वह दोहरा नहीं पाई। निराशाजनक प्रदर्शन के बीच सात आठ महीने में ऐसे क्या हुआ कि राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करने वाले महाराष्ट्र में भाजपा ने अब तक राजनीतक इतिहास में दमदार प्रदर्शन किया है। जाहिर सी बात है विधानसभा चुनाव में नैरेटिव बदल गया। संविधान बदलने का नैरेटिव नजर नहीं आया। राजनीतिक माहौल उस नैरेटिव से हटकर लाड़की बहिन योजना, मुंबई में टोल फ्री एंट्री, आवास जैसी योजनाओं पर आ गया। जो कुछ हुआ सबके सामने है।

एक और महत्वपूर्ण बात ये कि महाराष्ट्र और झारखंड में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव और परिणाम पर नजर डालें तो मौजूदा चुनाव में महिला मतदाताओं ने सुझबुझ के साथ समझदारी का परिचय दिया है। ठीक वैसे ही जैसे एक साल पहले मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनाव में।

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और अब महाराष्ट्र और झारखंड के विधानसभा में एक बात गौर करने वाली है। वह है चुनावी रेवड़ी। एक साल पहले मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनाव में लाड़ली बहना और महतारी वंदन की चुनावी धमक से हम सब परिचित हैं और यह देख भी लिया है कि महिलाओं पर भाजपा के रणनीतिकारों ने जैसा भरोसा किया था उससे कहीं बढ़कर महिला वोटरों ने सत्ता की चाबी भाजपा को सौंपने में दिलचस्पी दिखाई थी। छत्तीसगढ़ की महिला वोटरों को महतारी वंदन और मध्य प्रदेश की महिला मतदाताओं को लाड़ली बहन योजना की बेसब्री से इंतजार और दरकार थी।

लाड़ली बहन और महतारी वंदन योजना के क्रियान्वयन को लेकर जिस तरह मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकार ने गंभीरता दिखाई है उसका इम्पैक्ट महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा देखने को मिला। महाराष्ट्र की महिला मतदाताओं को भरोसा हो गया था कि भाजपा गठबंधन को दोबारा रिपीट करने पर योजना का लाभ मिलेगा। हुआ भी यही। इम्पैक्ट ऐसा कि भाजपा अकेले के दम पर सरकार बनाने लेगी। यह भी तय है कि महाराष्ट्र में पूरे पांच साल राजनीतिक रूप से स्थिर और विधायकों की संख्या के लिहाज से बेहद मजबूत सरकार चलेगी। मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ की तर्ज पर डबल इंजन की सरकार। महिला मतदाताओं ने जिस तरह झारखंड व महाराष्ट्र में सत्ताधारी दल का वंदन किया है वह भी अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण है। लोकसभा और विधानसभा चुनाव के मतदान प्रतिशत पर नजर डालते हैं। लोकसभा चुनाव में 59 प्रतिशत महिला और 63 प्रतिशत पुरुष मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था। विधानसभा चुनाव में आंकड़ा बदल गया है। महिलाओं की भागीदारी तकरीबन 65.5 प्रतिशत रही। झारखंड में इंडिया गठबंधन और महाराष्ट्र में भाजपा गठबंधन को सत्तासीन करने में आधी आबादी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

लहर पैदा करने वाले नारे की हुई वापसी

महाराष्ट्र में राजनीतिक रूप से इतिहास रचने के बाद भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने एक्स पर कुछ इस तरह पोस्ट किया। एक हैं तो सेफ हैं। एक और चर्चित नारे को उन्होंने लिखा मोदी है तो मुमकिन है। यह नारा वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में लोगों की जुबान पर जमकर चढ़ा था। इसका असर भी दिखाई दिया था। फडणवीस के एक्स पर पोस्ट के इस चर्चित नारे की इस बार फिर वापसी हो गई है।

यूपी में योगी हुए मजबूत

महाराष्ट्र की तरह उत्तर प्रदेश में भाजपा की पैठ और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का राजनीतक महत्व और भी बढ़ गया है। उप चुनाव में भाजपा ने दमदार तरीके से वापसी की है। इस जीत ने लोकसभा चुनाव के परिणाम की कड़वाहट को काफी हद तक दूर करने की कोशिश भी की है।

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