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Narayan Chandel in Chhatisgarh Assembly: पुत्र के चक्कर में नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल का बजट सत्र में प्रदर्शन विपक्ष के नेता जैसा नहीं रहा? चंद्राकर और शिवरतन की जोड़ी रही आक्रमक

Narayan Chandel in Chhatisgarh Assembly: पुत्र के चक्कर में नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल का बजट सत्र में प्रदर्शन विपक्ष के नेता जैसा नहीं रहा? चंद्राकर और शिवरतन की जोड़ी रही आक्रमक
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By NPG News

Narayan Chandel in Chhatisgarh Assembly: रायपुर। विधानसभा का महत्वपूर्ण बजट सत्र नियत तिथि से एक दिन पहले समाप्त हो गया। राज्य बनने के बाद यह सबसे छोटा बजट सत्र रहा, जिसके लिए सिर्फ 13 दिन निर्धारित किया गया था। उसमें से भी एक दिन की कटौती हो गई। याने 12 दिन का बजट सत्र।

विधानसभा चुनाव के छह महीने पहले हुए इस सत्र में मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी से जिस तरह अपेक्षा थी, वैसा सरकार को घेरने में वो विफल रही। आमतौर पर चुनावी साल में विपक्ष बेहद आक्रमक तेवर दिखाता है। मगर सदन में आलम यह था कि बीजेपी से कहीं ज्यादा सत्ताधारी पार्टी के विधायक हमलावर नजर आ रहे थे। पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम ने अपनी ही सरकार पर हमला बोल सियासी पंडितों को सकते में डाल दिया, तो सत्ताधारी दल के कई विधायक अपने ही मंत्रियों के खिलाफ गजब के तेवर दिखलाए।

सदन में सरकार को घेरने के मामले में बीजेपी का परफारमेंस इस बार अपेक्षित नहीं रहा। न कोई रणनीति दिखाई पड़ी और न कोई होम वर्क नजर आया। अजय चंद्राकर और शिवरतन शर्मा की जोड़ी ही पिच पर शुरू से लेकर अंत तक डटी रही। दोनों का प्रदर्शन आउटस्टैंडिंग रहा। चाहे प्रश्नकाल हो या फिर ध्यानाकर्षण या और कोई मामला, चंद्राकर और शिवरतन हावी रहे। पूर्व नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक और सौरभ सिंह जरूर पीछे से दोनों को कवर देते रहे। सबसे आश्चर्यजनक रहा नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल का ढीला प्रदर्शन।

भाजपा ने पिछले साल अगस्त में धरमलाल कौशिक को हटाकर नारायण चंदेल को नेता प्रतिपक्ष बनाया था। उसके बाद दिसंबर में पांच दिन का शीतकालीन सत्र हुआ। चंदेल के नेता प्रतिपक्ष बनने के बाद बजट सत्र उनके लिए काफी अहम रहा। लेकिन, इससे पहले उनका बेटा दुष्कर्म केस में फंस गया। उनके बेटे की तलाश में पुलिस चांपा स्थित उनके घर में दबिश दे चुकी है। मगर कुछ दिनों से सब कुछ शांत दिखाई पड़ रहा है। सो, नेता प्रतिपक्ष भी बजट सत्र में शांत ही रहे। जबकि, वे काफी अच्छे वक्ता हैं। प्रभावी ढंग से अपनी बात रखते हैं। मगर जिस भरोसे से पार्टी ने उन्हें कमान सौंपी थी, वे पदीय दायित्वों का निर्वहन नहीं कर सकें। कई बार मंत्रियों के तरफ से ढंग से जवाब नहीं आ रहा था। चंद्राकर और शिवरतन के बार-बार खड़े होने की एक सीमा है। नेता प्रतिपक्ष को ये प्रीविलेज मिलता है कि वे अगर खड़े होते हैं तो स्पीकर उन्हें वेटेज देते हैं...उनकी बातों को सदन में तरजीह दी जाती है। कई नए विधायकों ने बढ़ियां सवाल किए। मगर उनके प्रश्न दब गए। नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी होती है कि नए सदस्य अगर ढंग से प्रश्न नहीं पूछ पा रहे तो उसमें हस्तक्षेप कर खुद सदन में रखे। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि नेता प्रतिपक्ष का प्रदर्शन वैसा नहीं रहा, जैसा की उनसे उम्मीद थी। उनके बेटे पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी हुई है...कहीं इसका असर तो नहीं!

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