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Election symbol: कैसे बदला जनसंघ से बीजेपी तक का चुनाव चिह्न, 'दीपक' से 'हलधर किसान' फिर 'कमल' बन गया पहचान

भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी का चुनाव चिह्न कमल का फूल कब मिला और इसके पीछे का इतिहास क्या है, ये आज हम आपको अपने आलेख में बताएंगे।

Election symbol: कैसे बदला जनसंघ से बीजेपी तक का चुनाव चिह्न, दीपक से हलधर किसान फिर कमल बन गया पहचान
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By Pragya Prasad

भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर देश में छठवीं बार सरकार बनाने जा रही है। नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बनेंगे। BJP ने 4 दशकों में लोकसभा में 2 सीटों से 240 सीटों का लंबा सफर तय किया है। 2014 के लोकसभा चुनाव में NDA को 292 सीट मिले हैं। जीत के साथ ही भगवा झंडे लहराने लगे। बीजेपी पार्टी के झंडों को लहराकर कार्यकर्ताओं ने जश्न मनाया। आइए जानते हैं कि कमल के फूल का निशान कैसे बीजेपी की पहचान बन गया। ये चुनाव चिन्ह कब और कैसे बीजेपी को मिला था।

अखिल भारतीय जनसंघ का चुनाव चिह्न था दीपक

भारतीय जनता पार्टी साल 1952 के पहले लोकसभा चुनाव से ही अपने अलग नाम के साथ अस्तित्व में रही। तब इस पार्टी का नाम भारतीय जनसंघ था। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में अखिल भारतीय जनसंघ का गठन 21 अक्टूबर 1951 को हुआ था। पहले लोकसभा चुनाव में इस पार्टी का चुनाव चिन्ह 'दीपक' था।


जनता पार्टी को चुनाव चिह्न दिया गया हलधर किसान

भारतीय जनसंघ का जनता पार्टी में विलय 1 मई 1977 को हुआ। तब जनता पार्टी को चुनाव चिह्न 'हलधर किसान' मिला था। हालांकि जनता पार्टी में बढ़ गए अंतर्कलह के चलते 6 अप्रैल 1980 को अलग संगठन के तौर पर भारतीय जनता पार्टी यानी BJP का गठन हुआ। इसके पहले अध्यक्ष भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी थे।


हलधर किसान चुनाव चिह्न को लेकर दावेदारी

वाजपेयी गुट और जनता पार्टी में हलधर किसान चुनाव चिह्न को लेकर आपस में दावेदारी का खेल शुरू हुआ। मामला चुनाव आयोग के पास पहुंचा, जहां ईसीआई ने फैसला सुनाया कि दोनों में से कोई भी गुट तब तक इस नाम का इस्तेमाल नहीं करेगा, जब तक कोई आखिरी फैसला नहीं हो जाता।

1980 में बीजेपी का गठन, चुनाव चिह्न मिला कमल

24 अप्रैल 1980 को ईसीआई ने जनता पार्टी के चुनाव चिह्न हलधर किसान को फ्रीज कर दिया और अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई वाले समूह को एक राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता दे दी। पार्टी का नाम पड़ा भारतीय जनता पार्टी और चुनाव चिह्न के रूप में कमल का फूल दिया गया। इसके बाद से बीजेपी का चुनाव चिह्न कमल ही है।


हिंदू परंपरा में कमल के फूल का बहुत महत्व

कमल के फूल को हिन्दू परंपरा से जोड़कर भी देखा जाता है। बता दें कि बीजेपी के संस्थापकों ने 'कमल' को चुनाव चिन्ह इसलिए बनाया था, क्योंकि इस चिन्ह को पहले भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ इस्तेमाल किया गया था।

देवी-देवताओं के हाथों में होता है कमल का फूल

वहीं कमल हिंदुत्व का प्रतिनिधित्व करता है। हमारे देवी-देवताओं के हाथ में कमल का फूल देखा जाता है। कमल का फूल पूजा करते वक्त विशेष तौर पर देवी-देवताओं को चढ़ाया जाता है। खासतौर पर मां लक्ष्मी, मां दुर्गा समेत अन्य देवियों की पूजा कमल के फूल से होती है।

चुनाव चिह्न क्या होता है?

वोट देने के वक्त मतदाता को उम्मीदवार का चेहरा या उसका नाम नहीं बल्कि सिर्फ चुनाव चिन्ह दिखता है। ये अकेले ही उम्मीदवार और उस पार्टी का प्रतिनिधित्व करता है, जिसके लिए वह खड़ा है। जब पहली बार आजादी के देश में आम चुनाव हुए, तो अधिकतर मतदाता अशिक्षित थे, ऐसे में उन तक पहुंच बनाने के लिए पार्टियों को चुनाव चिह्न दिए गए थे। साल 1951-52 में देश में पहला आम चुनाव होना था। केंद्रीय निर्वाचन आयोग को महसूस हुआ कि एक ऐसे देश में जहां की पढ़ी-लिखी आबादी 20 फीसदी से भी कम है, वहां चुनाव चिह्न बेहद अहम है। तय हुआ कि ऐसे चिह्न प्रयोग में लाए जाएं, जिन्हें लोग आसानी से पहचानते हैं और वे उनके दैनिक जीवन का हिस्सा हों।

चुनाव चिह्न देखकर मतदाता पहचान सकते हैं पार्टी

चुनाव चिह्न देखकर मतदाता पार्टी को पहचान सकते थे और वे जिसे भी वोट करना चाहते थे, उसे वोट डाल सकते थे। यह भी तय हुआ कि इन चुनाव चिह्नों में कोई भी ऐसी वस्तु या प्रतीक शामिल न किए जाएं जो धार्मिक या लोगों की भावनाओं से जुड़े हों। जैसे- गाय, मंदिर, चरखा, राष्ट्रीय ध्वज जैसे प्रतीक। पहले आम चुनाव के समय ईसीआई ने अपनी तरफ से 26 चुनाव चिह्नों को अप्रूवल दिया। इन्हीं में से राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों को अपनी पसंद का चुनाव चिह्न चुनना था।

चुनाव चिह्न का महत्व

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में एक बार कहा था कि 'कीचड़ उछालोगे तो कमल ज्यादा खिलेगा'। इस बात से पार्टी के चुनाव चिह्न की अहमियत को आसानी से समझा जा सकता है। किसी चुनाव में चुनाव चिह्न का महत्व इतना होता है कि इसी के आधार पर लोग अपने पसंदीदा उम्मीदवार की पहचान करते हैं। यहां तक कि जब पार्टियों में टूट होती है, तो सबसे पहले चुनाव चिह्न पर ही कब्जा जमाने के लिए मारामारी होती है।

Pragya Prasad

पत्रकारिता के क्षेत्र में काम करने का लंबा अनुभव। दूरदर्शन मध्यप्रदेश, ईटीवी न्यूज चैनल, जी 24 घंटे छत्तीसगढ़, आईबीसी 24, न्यूज 24/लल्लूराम डॉट कॉम, ईटीवी भारत, दैनिक भास्कर जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में काम करने के बाद अब नया सफर NPG के साथ।

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