Congress election symbol: कांग्रेस का 3 बार बदला गया चुनाव चिह्न, जानिए कैसे हाथ का पंजा बना पार्टी सिंबल ?
सबसे पुरानी राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी कांग्रेस का चुनाव चिह्न अब तक 3 बार बदला गया है। जानिए कब-कब और किन-किन वजहों से ये बदलता चला गया और कैसे हाथ का पंजा अस्तित्व में आया?
देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की स्थापना दिसंबर 1885 में एओ ह्यूम ने की थी। देश में पहला लोकसभा चुनाव साल 1952 में हुआ था। ये चुनाव तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई में कांग्रेस ने लड़ा था। इसमें कांग्रेस का चुनाव चिन्ह दो बैलों की जोड़ी थी। कांग्रेस ने तब ये चुनाव चिन्ह किसानों और ग्रामीण जनता को ध्यान में रखकर लिया था।
इसके बाद साल 1969 तक कांग्रेस का यही चुनाव चिह्न रहा। कांग्रेस ने इस चुनाव चिह्न पर 1952 में तो भारी बहुमत से चुनाव जीता ही। इसके बाद 1957, 1962 के चुनावों में भी वो विजयी रही। नेहरू के निधन के बाद लालबहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने, लेकिन उनकी अचानक ताशकंद में हुई मौत के बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं। उस समय कांग्रेस का नियंत्रण कामराज के नेतृत्व एक सिंडीकेट के हाथों में था।
1969 में कांग्रेस में टूट
1967 के पांचवें आम चुनावों में कांग्रेस को पहली बार कड़ी चुनौती मिली। कांग्रेस 520 में 283 सीटें जीत पाई। इंदिरा प्रधानमंत्री तो बनी रहीं, लेकिन कांग्रेस में अंर्तकलह शुरू हो गई। आखिरकार 1969 में कांग्रेस टूट गई। 12 नवंबर 1969 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कांग्रेस ने पार्टी से बर्खास्त कर दिया और पार्टी के दो हिस्से हो गए। मूल कांग्रेस की अगुवाई कामराज और मोरारजी देसाई कर रहे थे।
इंदिरा गांधी की नई पार्टी को मिला 'गाय-बछड़ा' चुनाव चिह्न
इससे इंदिरा गांधी के सामने संकट खड़ा हो गया। उन्होंने कांग्रेस (आर) के नाम से अपनी नई पार्टी बनाई। भारतीय चुनाव आयोग ने बैलों की जोड़ी का कांग्रेस का सिंबल कांग्रेस (ओ) को दिया। इंदिरा गांधी की नई पार्टी को 'गाय-बछड़ा' चुनाव चिह्न मिला। इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस का साल 1971 से 1977 तक यही चुनाव चिह्न रहा। 1971 के चुनावों में इंदिरा की कांग्रेस (आर) गाय-बछड़ा चुनाव चिह्न के साथ लोकसभा चुनाव में उतरी। कांग्रेस (आर) 44 फीसदी वोटों के साथ 352 सीटें हासिल हुईं, जबकि कांग्रेस के दूसरे गुट को महज 10 फीसदी वोट और 16 सीटें मिलीं। इस तरह इंदिरा की कांग्रेस ने असली कांग्रेस का रुतबा हासिल कर लिया।
इंदिरा गांधी ने कांग्रेस (आर) की जगह कांग्रेस (आई) नाम से बनाई फिर नई पार्टी
1971 से लेकर 1977 के चुनावों तक कांग्रेस ने इसी चुनाव चिह्न से चुनाव लड़ा, लेकिन हालात कुछ ऐसे पैदा हुए कि फिर कांग्रेस के टूटने की स्थिति आ गई। इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने देश में 1975 में आपातकाल लगा दिया गया। जिसके बाद 1977 के चुनाव में इंदिरा गांधी की बुरी तरह से हार के बाद कांग्रेस के उनके बहुत से सहयोगियों को लगा कि इंदिरा का राजनीतिक करियर अब खत्म हो चुका है। ब्रह्मानंद रेड्डी और देवराज अर्स समेत बहुत से कांग्रेस चाहते थे कि इंदिरा को किनारे कर दिया जाए। ऐसे में जनवरी 1978 में इंदिरा ने कांग्रेस को फिर तोड़ते हुए नई पार्टी बनाई।
इंदिरा गांधी ने कांग्रेस (आर) की जगह कांग्रेस (आई) नाम से एक नई पार्टी गठित कर ली, तब उन्होंने हाथ का पंजा अपना चुनाव चिह्न बनाया। इसके बाद से कांग्रेस का यही चुनाव चिह्न है।
हाथ का पंजा चुनाव चिह्न के पीछे की कहानी दिलचस्प
कांग्रेस के वर्तमान चुनाव चिह्न हाथ का पंजा की कहानी भी दिलचस्प है। 1977 में देश से इमरजेंसी खत्म होने के बाद रायबरेली से इंदिरा गांधी चुनाव हार गई। इसके बाद इंदिरा कांचि कामकोटि के तत्कालीन शंकराचार्य स्वामी चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती से मिलने गईं। वे काफी देर तक शंकराचार्य से अपनी बात कहती रहीं। शंकराचार्य ने उनकी एक भी बात का जवाब नहीं दिया। आखिरकार इंदिरा ने विदा होने से पहले हाथ जोड़कर जैसे ही अपना सिर उनके आगे झुकाया, शंकराचार्य ने दाहिना हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया। बताते हैं कि गांधी ने तत्काल इसी हाथ (पंजा) को अपना चुनाव चिह्न बनाने का फैसला कर लिया।
आंध्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने लिखा है अपनी किताब में
इंदिरा गांधी और शंकराचार्य की इस मुलाकात के बारे में आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन भास्करराव ने भी अपनी जीवनी में बहुत विस्तार से लिखा है। उन्होंने लिखा है कि ये 1978 की बात है। उस समय आंध्र समेत चार राज्यों के चुनाव हो रहे थे। गांधी ने उस समय कांग्रेस-आई की स्थापना की थी और उन्हें चुनाव आयोग में अपना चुनाव चिह्न बताना था। आंध्र के दौरे पर गईं इंदिरा गांधी ने शंकराचार्य से मदनपल्लै में मुलाकात की थी। शंकराचार्य से मुलाकात के बाद उस समय हुए चार राज्यों के चुनाव में कांग्रेस की जोरदार जीत हुई।
साथ ही इंदिरा गांधी भी अपना चुनाव जीत गई। तत्कालीन सारे दिग्गजों को दरकिनार करते हुए यह कांग्रेस-आई ही बाद में मुख्य कांग्रेस पार्टी के रूप में स्थापित हुई।