Chhattisgarh Congress News: छत्तीसगढ़ में कांग्रेस का गढ़ कहा जाने वाला यह किला कैसे ढह गया? अब पंच से लेकर मेयर, जिपं अध्यक्ष, विधायक सभी बीजेपी के, पढ़िये स्पेशल स्टोरी...
Chhattisgarh Congress News: सरगुजा बोले तो छत्तीसगढ का कांग्रेस का गढ़। मगर इस गढ़ में बीजेपी ने ऐसा सेंध लगाया कि पंच से लेकर पार्षद, महापौर, जिला पंचायत अध्यक्ष, विधायक और सांसद, सब अब भाजपा के हैं।

Chhattisgarh Congress News: अंबिकापुर। कभी सरगुजा और उत्तर छत्तीसगढ़ कांग्रेस का अभेद्य किला माना जाता था। यहां की पंचायतों से लेकर विधानसभा और लोकसभा तक, कांग्रेस का झंडा बुलंदी से लहराता था। लेकिन समय के साथ राजनीतिक हवाएं बदलीं और आज तस्वीर बिल्कुल उलट चुकी है। अब सरगुजा सहित उत्तर छत्तीसगढ़ के ज्यादातर हिस्सों में भाजपा का झंडा फहरा रहा है। पंच, सरपंच, ब्लॉक स्तरीय प्रतिनिधि, नगर पंचायत अध्यक्ष, महापौर, जनपद व जिला पंचायत अध्यक्ष, यहां तक कि अधिकांश विधायक और सांसद सब भाजपा के खेमे में हैं।
यह बदलाव अचानक नहीं आया, बल्कि पिछले दो दशकों में धीरे-धीरे भाजपा ने कांग्रेस के इस गढ़ में पैठ बनाई। खासतौर पर अंबिकापुर विधानसभा क्षेत्र की राजनीति इस परिवर्तन का सबसे बड़ा उदाहरण है।जहां कांग्रेस के सबसे बड़े नेता या कहें उत्तर छत्तीसगढ़ के सर्वमान्य नेता टीएस सिंह देव को बीते विधानसभा चुनाव में महज 94 मतों से हार का सामना करना पड़ गया वह भी अपने ही राजनीतिक शिष्य राजेश अग्रवाल से जो कभी कांग्रेस के सिपाही थे।
कांग्रेस का गढ़ और भाजपा की पहली दस्तक
साल 2003 छत्तीसगढ़ की राजनीति के लिए एक अहम मोड़ लेकर आया। अंबिकापुर, जो उस समय कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता था, वहां भाजपा ने पहली बार जीत का स्वाद चखा। भाजपा प्रत्याशी कमलभान सिंह ने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता मदन गोपाल सिंह को करीब 37,000 वोटों के भारी अंतर से हराकर इतिहास रच दिया। यह जीत सिर्फ एक चुनावी परिणाम नहीं थी, बल्कि यह संदेश था कि कांग्रेस का किला दरकना शुरू हो चुका है।हालाकि अंबिकापुर सीट सामान्य होने के बाद वर्ष 2008 से लगातार कांग्रेस के वरिष्ठ नेता टीएस सिंहदेव तीन बार अंबिकापुर के विधायक बने।
कांग्रेस के मदनगोपाल सिंह इससे पहले लगातार 27 साल तक विधायक रह चुके थे।
2008 का परिसीमन और सिंहदेव का दौर
2008 में निर्वाचन क्षेत्र के परिसीमन के बाद अंबिकापुर सीट सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित हुई। यह बदलाव कांग्रेस के लिए वरदान साबित हुआ और पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेता टीएस सिंहदेव को मैदान में उतारा। सिंहदेव ने लगातार 15 साल (2008, 2013 और 2018) इस सीट पर जीत दर्ज कर अपनी पकड़ बनाए रखी।
टीएस सिंहदेव, जो न केवल स्थानीय बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक बड़ा नाम हैं, ने इस दौरान अंबिकापुर को विकास के नए आयाम देने का दावा किया। स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी ढांचे के विकास में उनकी सक्रियता के कारण वे ‘महाराजा’ की छवि के साथ-साथ ‘जननेता’ के रूप में भी लोकप्रिय रहे।
भाजपा की धीमी लेकिन स्थायी बढ़त
हालांकि, अंबिकापुर में कांग्रेस की लगातार जीत के बावजूद भाजपा ने अपनी जमीनी पकड़ कमजोर नहीं होने दी। पंचायत चुनावों में बढ़ती जीत, नगर निकायों में बढ़ती भागीदारी और स्थानीय स्तर पर संगठन का विस्तार इन सबने भाजपा को मजबूती दी।भाजपा ने बूथ स्तर तक संगठन खड़ा किया, कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित किया और लगातार जनसंपर्क बनाए रखा। स्थानीय मुद्दों ,जैसे सड़क, बिजली, पानी, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी को प्रमुखता से उठाकर उन्होंने आम जनता के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
2023 का निर्णायक मोड़
अंततः 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अंबिकापुर में वह कर दिखाया, जिसकी शायद कांग्रेस ने कल्पना भी नहीं की थी। भाजपा ने कांग्रेस से यह सीट छीन ली, जो टीएस सिंहदेव जैसे बड़े नेता का गढ़ मानी जाती थी। यह जीत केवल एक सीट जीतने का मामला नहीं था, बल्कि यह उत्तर छत्तीसगढ़ की राजनीति में भाजपा के पूर्ण वर्चस्व की घोषणा थी।
अब न केवल अंबिकापुर, बल्कि सरगुजा, बलरामपुर, कोरिया, जशपुर और सूरजपुर जिलों की सभी 14 सीटों पर भाजपा का कब्जा है। पंचायत स्तर से लेकर लोकसभा तक, भाजपा ने अपना संगठनात्मक और जनाधार इतना मजबूत कर लिया है कि कांग्रेस फिलहाल विपक्ष की भूमिका निभाने में भी संघर्ष कर रही है।
ये वजह है उत्तर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के पिछड़ने का कारण
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि कांग्रेस की गिरावट के पीछे कई कारण हैं इनमें स्थानीय नेतृत्व पर अत्यधिक निर्भरता, कांग्रेस ने सरगुजा में लगभग पूरी तरह टीएस सिंहदेव पर भरोसा किया।
संगठनात्मक कमजोरी देखें तो भाजपा की तरह बूथ स्तर का मजबूत संगठन खड़ा नहीं कर पाई। स्थानीय मुद्दों की अनदेखी की गई जिसमे ठोस रणनीति नहीं बना पाई। भाजपा का आक्रामक प्रचार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री और अन्य बड़े नेताओं की लगातार मौजूदगी ने भाजपा के पक्ष में माहौल बनाया।
भाजपा की रणनीति और जीत के कारण
भाजपा की सफलता का श्रेय उसकी सुनियोजित रणनीति को जाता है।हम जानेंगे कि संगठन का विस्तार, बूथ से लेकर जिले तक हर स्तर पर कार्यकर्ताओं की सक्रियता।स्थानीय मुद्दों पर मजबूत पकड़, गांव-गांव जाकर जनता की समस्याएं सुनना और उन्हें राजनीतिक मुद्दा बनाना।
नेतृत्व में विविधता भी रही एक ही चेहरे पर निर्भर रहने के बजाय कई नेताओं को सामने लाना।केंद्रीय योजनाओं का प्रचार खूब किया गया। प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं के लाभार्थियों तक पहुंच।
आगे की राजनीति और जनता की उम्मीदें
अब जबकि सरगुजा और उत्तर छत्तीसगढ़ के लगभग सभी जिलों में भाजपा का वर्चस्व कायम हो गया है, जनता को विकास की उम्मीद भी उतनी ही बढ़ गई है। सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे बुनियादी मुद्दों पर ठोस कदम उठाने की मांग हो रही है।यहां के राजनीतिक जानकार मानते हैं कि भाजपा के लिए यह समय सबसे चुनौतीपूर्ण भी है, क्योंकि अब जनता केवल चुनावी वादों से संतुष्ट नहीं होगी। भाजपा को साबित करना होगा कि उसका वर्चस्व सिर्फ सत्ता में बने रहने के लिए नहीं, बल्कि क्षेत्र के वास्तविक विकास के लिए है।सरगुजा और उत्तर छत्तीसगढ़ की राजनीति में यह बदलाव ऐतिहासिक है। कांग्रेस के गढ़ में भाजपा का इस तरह पैठ बनाना यह दिखाता है कि राजनीतिक समीकरण कितनी तेजी से बदल सकते हैं। 2003 की पहली जीत से लेकर 2023 में पूर्ण वर्चस्व तक का सफर भाजपा के लिए लंबा और रणनीतिक रहा है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा जनता की उम्मीदों पर कितनी खरी उतरती है और कांग्रेस इस चुनौती का सामना कैसे करती है।
