Chhattisgarh Assembly Election 2023: CG चुनाव में बी फार्म की बड़ी भूमिका: इसके बिना नामांकन रिजेक्ट, जानिए वे किस्से जब छत्तीसगढ़ में बदल गए बी फार्म...
Chhattisgarh Assembly Election 2023: छत्तीसगढ़ राज्य बनने से पहले कई दिग्गज नेताओं के बी फार्म दूसरे के नाम पर जारी कर दिए गए थे. इनमें कुछ जीते और कुछ हार गए थे.
Chhattisgarh Assembly Election 2023 : रायपुर. कोई भी पार्टी जब अपना प्रत्याशी घोषित करती है, तब लोग या पार्टी के कार्यकर्ता भले ही उसे प्रत्याशी मान लें, लेकिन चुनाव आयोग तभी अधिकृत प्रत्याशी मानता है, जब उसके नाम पर बी फॉर्म जारी हो. जिसके नाम पर बी फॉर्म वही अधिकृत प्रत्याशी, अन्यथा निर्दलीय या उम्मीदवारी निरस्त. नामांकन पत्रों की जांच के बाद मंगलवार को कई प्रत्याशियों के नामांकन रद्द कर दिए गए. इनमें वे उम्मीदवार हैं, जिनके नाम पर पार्टी ने बी फॉर्म जारी नहीं किया था. छत्तीसगढ़ की राजनीति में बी. फॉर्म का किस्सा काफी रोचक है. बी फॉर्म के चक्कर में कई ऐसे मामले सामने आए हैं, तब नाम घोषित होने के बाद बी फॉर्म नहीं मिला और किसी और को अधिकृत प्रत्याशी मान लिया गया. चुनाव में जीत भी हो गई.
1. कांग्रेस के पंपलेट-पोस्टर फेंककर निर्दलीय चुनाव
किस्सा 1993 का है. मंत्री मोहम्मद अकबर को कांग्रेस ने वीरेंद्र नगर सीट से प्रत्याशी घोषित किया गया था. बाद में उनके साथ धोखा हुआ और बी फॉर्म बलराम सिंह बैस के नाम पर जारी किया गया. तब तक अकबर झंडे, बैनर, पंफलेट सब तैयार कर चुके थे. उन्होंने कांग्रेस का पंफलेट पोस्टर फेंका और निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गए. इस चुनाव में उन्हें चार हजार वोटों से हार मिली थी. भाजपा के सियाराम साहू ने बैस को 7855 वोटों से हराया था.
2. जिला कांग्रेस अध्यक्ष ने तीन सीटों में बदल दिए नाम
यह वाकया भी 1993 का ही है. उस समय दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे. उस समय कांग्रेस ने जो लिस्ट घोषित की थी, उसमें बेमेतरा से चैतराम वर्मा, पाटन से अनंतराम वर्मा और भिलाई से रवि आर्या के नाम घोषित किए गए थे. तत्कालीन दुर्ग कांग्रेस अध्यक्ष वासुदेव चंद्राकर को ये सब नाम पसंद नहीं आए. उन्होंने बेमेतरा से केतन वर्मा, पाटन से भूपेश बघेल और भिलाई से बदरुद्दीन कुरैशी को प्रत्याशी घोषित कर दिया. इस चुनाव में भूपेश औश्र केतन जीत गए पर बदरुद्दीन कुरैशी नहीं जीते.
3. मोतीलाल वोरा का पत्ता साफ
अविभाजित मध्यप्रदेश के पूर्व्र सीएम और लंबे समय तक एआईसीसी के कोषाध्यक्ष रहे मोतीलाल वोरा ने 1990-91 में दुर्ग से लोकसभा के लिए नामांकन भरा. चंदूलाल ने सब्स्टीट्यूट के रूप में फार्म भरा था. तत्कालीन जिलाध्यक्ष वासुदेव चंद्राकर के पास जब फार्म पहुंचा, तो उसमें चंदूलाल का नाम था. बताते हैं कि चंदूलाल गायब हो गए और नाम वापसी के बाद ही वापस आए. ऐसी स्थिति में पार्टी को कुछ करते नहीं बना और चंदूलाल चुनाव लड़े और जीत भी गए.
4. आशीष के स्थान पर रेणु जोगी
यह किस्सा 2009 का है. भाजपा ने बिलासपुर लोकसभा से दिलीप सिंह जूदेव को अपना प्रत्याशी बनाया था. कांग्रेस ने पहले आशीष सिंह का नाम घोषित किया था. करीब हफ्तेभर तक आशीष सिंह चुनाव प्रचार में डटे रहे. अच्छा माहौल भी बनने लगा था, लेकिन अचानक टिकट बदलने की बात आई. यहां से कांग्रेस ने डॉ. रेणु जोगी को प्रत्याशी बनाया. रेणु की उम्मीदवारी से चुनाव रोचक हो गया. जूदेव की जीत हुई है.
वैसे बिलासपुर से जुड़ा एक किस्सा यह भी है कि 1998 में कांग्रेस ने अनिल टाह को अपना प्रत्याशी बनाया था. बाद में अचानक उनका टिकट काट दिया गया. उनके बदले राजू यादव को प्रत्याशी घोषित किया गया. यह सब इतना आनन-फानन में हुआ कि लोग समझ भी नहीं पाए. राजू यादव का बी. फॉर्म चार्टर प्लेन से भेजवाया गया. इसके बाद वे नामांकन जमा कर पाए थे.
क्या है बी फॉर्म
पार्टी अपने अधिकृत प्रत्याशी को बी-फाॅर्म जारी करती है. बी-फार्म पर दस्तखत करने के लिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष फॉर्म-ए जारी कर प्रदेश अध्यक्ष को अधिकृत करते हैं. इन्हीं नमूनों से बी-फॉर्म के हस्ताक्षर का मिलान होता है.
फॉर्म के ऊपर लिखा होता है - नोटिस एज टू नेम आफ द कैंडिडेट सेटअप आफ द पॉलिटिकल पार्टी. उम्मीदवार व माता-पिता का नाम, पत्र व्यवहार का पता, इसी क्रम में सब्स्टीट्यूट कैंडिडेट की भी डिटेल. नीचे प्रदेशाध्यक्ष का हस्ताक्षर.