Chhattisgarh Assembly Election 2023: 20 सीटों से चुने गए थे दो-दो विधायक: ऐसा था आजादी के बाद 1952 का पहला चुनाव, कई राजा भी बने विधायक
Chhattisgarh Assembly Election 2023:
Chhattisgarh Assembly Election 2023
अनिल तिवारी। रायपुर। चुनावी इतिहास अपने आप में बहुत सी कहानियां-किस्से समेटे हुए है। जब देश की आजादी के बाद पहली बार विधानसभा का चुनाव हुआ था, तो तत्कालीन छत्तीसगढ़ जो अविभाजित मध्यप्रदेश का हिस्सा हुआ करता था, उसकी 20 सीटों पर एक साथ दो-दो विधायकों का चुनाव हुआ था। जिन्हें ये इतिहास नहीं मालूम उन्हें ये बात काफी अजीब लग सकती है। लेकिन चुनावी इतिहास का सच यही है।
15 अगस्त 1047 को देश आजाद हुआ। आजादी के बाद भारत का पहला आम चुनाव 1951-52 में हुआ। 25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 तक यानी लगभग चार महीने तक चुनाव की प्रक्रिया चली। तब लोकसभा की 497 तथा राज्य विधानसभाओं की 3,283 सीटों के लिए मतदान हुआ। भारत के 17 करोड़ 32 लाख 12 हजार 343 रजिस्टर्ड मतदाता थे। जिनमें से 10 करोड़ 59 लाख लोगों ने मतदान का प्रयोग किया। जबकि इनमें से करीब 85 फीसदी निरक्षर थे। पहले चुनाव के वक्त एक निर्वाचन क्षेत्र में एक से अधिक सीटें भी हुआ करती थीं। लिहाजा 489 स्थानों के लिए 401 निर्वाचन क्षेत्रों में ही चुनाव हुआ। बाद में 1960 से इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया। देश में एक सीटों वाले निर्वाचन क्षेत्र की संख्या 314 थी, जबकि दो निर्वाचन क्षेत्र वाले सीटों की संख्या 86 थी।
छत्तीसगढ़ से विधानसभा और लोकसभा के लिए होने वाले चुनाव में कुछ स्थानों से दो-दो सदस्य चुने जाते थे। भारत के आजाद होने के बाद संविधान के प्रावधान के अनुसार पहली बार लोकसभा और विधानसभा के लिए 1951-52 में चुनाव हुए थे। उस समय छत्तीसगढ़ का क्षेत्र सेंट्रल प्राविंस और बरार को मिलाकर बने तत्कालीन मध्यप्रदेश का हिस्सा था। जिसकी राजधानी नागपुर हुआ करती थी। उस समय की नागपुर स्थित मध्यप्रदेश की विधानसभा में 1952 में कुल 184 विधानसभा क्षेत्रों से चुनकर 232 विधायक पहुंचे थे। इन 184 में से 136 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों से एक-एक सदस्य चुने गए थे किंतु 48 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों से दो-दो सदस्य चुने गए थे। इन 184 में से 9 क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित थे।
संविधान विशेषज्ञ डॉ. सुशील त्रिवेदी के मुताबिक तत्कालीन मध्यप्रदेश के छत्तीसगढ़ क्षेत्र में 62 विधानसभा क्षेत्र थे। जिनमें से कुल 82 सदस्य चुने जाते थे। 62 में से 8 क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित थे। 62 में से 42 क्षेत्रों से एक-एक सदस्य चुनकर पहुंचे थे। 20 निर्वाचन क्षेत्रों में से प्रत्येक से दो-दो सदस्य चुने गए थे। जिन विधानसभा क्षेत्र से दो-दो विधायक चुनकर भेजे गए थे, उनमें मनेंद्रगढ़, अंबिकापुर, पाली, जशपुरनगर, धरमजयगढ़, घरघोड़ा, सारंगढ़, चंद्रपुर-बिर्रा, जांजगीर-पामगढ़, अकलतरा-मस्तूरी, कटघोरा, मुंगेली, भाटापारा-सीतापुर, कुसमंडी-कसडोल, आरंग-खरोरा, जगदलपुर, कांकेर, बालोद, बोरी-देवकर और बेमेतरा शामिल थे। इन विधानसभा क्षेत्रों में से अधिकांश में एक सीट सामान्य और एक सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होती थी।
अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित क्षेत्रों में सामरी, सीतापुर, रामपुर, बीजापुर, सुकमा, चित्रकोट, केसकाल और नारायणपुर शामिल थे। 1952 के चुनाव में केसकाल में राजमन बिना चुनाव लड़े विधायक निर्वाचित हुए थे। इस चुनाव में पंडित रविशंकर शुक्ल सराईपाली से, महंत लक्ष्मीनारायण दास भटगांव से और घनश्याम सिंह गुप्त दुर्ग से चुने गए थे। निर्दलीय वीवाय तामस्कर बेमेतरा से चुने गए थे। इस चुनाव में कांग्रेस को एकतरफा जीत मिली थी। फिर भी किसान मजदूर प्रजा पार्टी के प्रमुख नेता ठाकुर प्यारेलाल सिंह रायपुर से, खूबचंद बघेल पचेड़ा से, ब्रिजलाल वर्मा कसडोल से तथा जोहन जशपुर नगर से जीते थे। किसान मजदूर प्रजा पार्टी बाद में समाजवादी पार्टी और प्रजा समाजवादी पार्टी के रूप में प्रभावशील रही। एक अन्य महत्वपूर्ण दल रामराज्य परिषद को जशपुर नगर, कवर्धा और पंडरिया विधानसभा क्षेत्रों से सफलता मिली थी। बाद में रामराज्य परिषद का प्रभाव समाप्त हो गया और फिर जनसंघ तथा भारतीय जनता पार्टी का प्रभाव बढ़ा। इनके अलावा 15 निर्दलीय भी चुनकर आए थे।
रियासतों के राजा भी जीते चुनाव
1952 के चुनाव में कई रियासतों के राजा भी विधानसभा का चुनाव जीतकर आए थे। इनमें प्रमुख तौर पर राजा नरेशचंद्र सिंह सारंगढ़ से, राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह खैरागढ़ से उनकी पत्नी रानी पद्मावती देवी बोरी देवकर से, सरगुजा के राजा रामानुज शरण सिंहदेव अंबिकापुर से, जशपुर राजघराने से विजय भूषणसिंह देव जशपुर नगर से। रायगढ़ के राजा ललित कुमार सिंह घरघोड़ा से, धर्मजयगढ़ से वहां के राजा चंद्रचूड़ प्रसाद सिंहदेव, पंडरिया से पद्म राज सिंह, कांकेर से महाराजा अधिराज बीपी देव चुने गए थे।
14 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने राजा नरेशचंद्र सिंह
रविशंकर शुक्ल मंत्रिमंडल में वीरेन्द्र बहादुर सिंह और उनकी पत्नी पद्मावती देवी दोनों ही एक साथ मंत्री बने। राजा नरेशचंद्र सिंह तो लगातार मंत्री बनते रहे। साथ ही 1967 में 14 दिनों के लिए अविभाजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने थे। राजा नरेशचंद्र सिंह की बेटियां भी राजनीति में आईं और मंत्री, विधायक तथा सांसद बनीं। इसी तरह खैरागढ़ परिवार के पुत्र और बहुएं लगातार विधायक, मंत्री और सांसद बनते रहे हैं। लेकिन वक्त के साथ अब छत्तीसगढ़ की राजनीति में राजपरिवारों का प्रभाव धीरे-धीरे कम होता जा रहा है।
तीन लोकसभा सीट से चुने गए 6 सांसद
तब लोकसभा के लिए छत्तीसगढ़ में बिलासपुर, रायपुर, दुर्ग, महासमुंद और बस्तर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र थे। इनमें से बिलासपुर, रायपुर और दुर्ग लोकसभा से दो-दो संसद सदस्य चुने गए थे, जबकि महासमुंद, और बस्तर से एक-एक सांसद चुने गए थे।
इस वजह से एक सीट से दो विधायक
1952 में हुए पहले आम चुनाव और विधानसभा चुनाव में अनुसूचित जाति के लिए कोई सीट आरक्षित नहीं हुआ करती थी। इसलिए सामान्य और अनुसूचित जाति के दो अलग-अलग विधायक बनने का प्रावधान था। यूपी में हुए पहले विधानसभा चुनाव में 26 सीटों पर दो-दो विधायक चुने गए थे।
छत्तीसगढ़ की पहली महिला मंत्री पद्मावती
तब देश में पहली बार विधानसभा का चुनाव हुआ था। साल था 1952। रविशंकर शुक्ल मंत्रिमंडल में वीरेन्द्र बहादुर सिंह और उनकी पत्नी पद्मावती देवी दोनों ही एक साथ मंत्री बने। वीरेन्द्र बहादुर सिंह खैरागढ़ से और उनकी पत्नी रानी पद्मावती देवी बोरी देवकर से जीतकर विधायक बने थे। इस तरह पद्मावती छत्तीसगढ़ की पहली महिला मंत्री भी रहीं। 1918 में यूपी के प्रतापगढ़ जन्मी पद्मावती प्रतापगढ़ के राजा प्रताप बहादुर सिंह की छोटी बेटी थीं। सोलह साल की उम्र में पद्मावती की शादी खैरागढ़ के राजा वीरेन्द्र बहादुर सिंह के साथ हुई। वे अविभाजित मध्यप्रदेश शासन की जनपद सभा खैरागढ़ की प्रथम अध्यक्ष भी मनोनीत हुई थीं। पद्मावती देवी 1952 से 1967 तक विधानसभा और 1967 से 1971 तक लोकसभा सांसद भी रहीं। पद्मावती देवी का इंदिरा गांधी से बहुत करीबी रिश्ता था। 1956 से 1967 तक मध्यप्रदेश शासन के लोकस्वास्थ्य, समाज कल्याण, यांत्रिकी और नगर निकाय आदि विभागों में मन्त्री पद पर रहीं थीं। पद्मावती देवी इतनी लोकप्रिय थीं कि 1957 के विधानसभा चुनाव में वे वीरेन्द्र नगर से निर्विरोध निर्वाचित हुई थीं। खैरागढ़ के विश्व प्रसिद्ध इंदिरा संगीत विश्वविद्यालय की स्थापना पद्मावती देवी ने ही की थीं।