Chairman of Rajya Sabha: भारत के उपराष्ट्रपति होते हैं राज्यसभा के सभापति, आइए जानते हैं उनके अधिकार, शक्तियां, वेतन, कार्यकाल के बारे में...
भारत के उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं। आइए जानते हैं कि उनका चुनाव कैसे होता है, राज्यसभा के सभापति के रूप में उन्हें कितना वेतन मिलता है और उनके अधिकार और शक्तियां क्या हैं?
रायपुर। राज्यसभा भारतीय संसद की ऊपरी प्रतिनिधि सभा यानी अपर हाउस है। इसमें 250 सदस्य होते हैं। 238 सदस्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के वहीं 12 सदस्यों को राष्ट्रपति मनोनीत करते हैं। राज्य सभा एक स्थायी निकाय है और इसे भंग नहीं किया जा सकता। भारत का उपराष्ट्रपति राज्य सभा का पदेन सभापति होता है और कोई अन्य लाभ का पद धारण नहीं कर सकता।
हालांकि जिस अवधि के दौरान उपराष्ट्रपति अनुच्छेद 65 के अधीन राष्ट्रपति के रूप में काम करता है या राष्ट्रपति के कामों का निर्वहन करता है, उस अवधि के दौरान वह राज्य सभा के सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन नहीं करेगा और अनुच्छेद 97 के अधीन राज्य सभा के सभापति को संदेय वेतन या भत्ते का हकदार नहीं होगा।
राज्यसभा में उपसभापति भी चुना जाता है
ये सदन अपने सदस्यों में से एक उप सभापति का चुनाव भी करता है। इसके अलावा राज्य सभा में उप-सभापतियों का एक पैनल होता है। सभापति और उपसभापति की अनुपस्थिति में उपसभाध्यक्षों के पैनल से एक सदस्य सभा की कार्यवाही की अध्यक्षता करता है। वरिष्ठतम मंत्री, जो राज्य सभा का सदस्य होता है, उसे प्रधानमंत्री सदन के नेता के रूप में नियुक्त करते हैं।
राज्यसभा के सभापति का कार्यकाल होता है 5 सालों का
राज्यसभा के सभापति संसद के दोनों सदनों के सदस्यों की सहमति से आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली से निर्वाचित होते हैं। भारत में राष्ट्रपति के बाद उपराष्ट्रपति का पद कार्यकारिणी में दूसरा सबसे बड़ा पद होता है। भारत का उपराष्ट्रपति राज्यसभा के अध्यक्ष के तौर पर विधायी कार्यों में भी हिस्सा लेता है। राज्य सभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 सालों का होता है, लेकिन इसके सभापति का कार्यकाल 5 सालों का ही होता है। लोक सभा के विपरीत राज्यसभा का सभापति अपना इस्तीफा उपसभापति को नहीं बल्कि राष्ट्रपति को देता है।
उपराष्ट्रपति की शक्तियां
भारत के उपराष्ट्रपति राज्यसभा के संचालन की जिम्मेदारी वैसे ही लेते हैं, जैसे अमेरिकी उपराष्ट्रपति लेते हैं। अमेरिका में उपराष्ट्रपति सीनेट के अध्यक्ष के रूप में भी काम करते हैं। राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति ही उनके सारे कामकाज संभालते हैं। उपराष्ट्रपति अधिकतम छह महीने तक राष्ट्रपति के रूप में काम कर सकते हैं। इस बीच नए राष्ट्रपति का निर्वाचन कराना अनिवार्य होता है।
राज्यसभा के सभापति का वेतन
राज्यसभा के अध्यक्ष को हर महीने 4 लाख रुपये वेतन के तौर पर दिया जाता है। इसके अलावा उन्हें कई तरह के भत्ते भी मिलते हैं। पहली बार राज्यसभा का गठन 3 अप्रैल 1952 को किया गया था। इसकी पहली बैठक 13 मई को हुई थी। राज्यसभा के पहले सभापति डॉ एस राधाकृष्णन थे। उन्हें लगातार 2 कार्यकालों के लिए निर्विरोध निर्वाचित किया गया था। राज्यसभा के पूर्व सभापति मोहम्मद हामिद अंसारी ने भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में अपना दूसरा कार्यकाल पूरा किया।
राज्यसभा के सभापति यानी उपराष्ट्रपति का निर्वाचन ऐसे होता है
उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक मंडल के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है।
भंग नहीं होती राज्यसभा
राज्यसभा के सभापति भारत के उपराष्ट्रपति होते हैं। इसके सदस्य 6 साल के लिए चुने जाते हैं। इनमें से एक तिहाई सदस्यों का कार्यकाल हर 2 साल में पूरा हो जाता है। इसका मतलब है कि हर 2 साल पर राज्यसभा के एक तिहाई सदस्य बदलते हैं न कि यह सदन भंग होता है। यानी राज्यसभा हमेशा बनी रहती है।
उपराष्ट्रपति के कार्य और उनकी शक्तियां
- उपराष्ट्रपति राज्यसभा के अध्यक्ष होते हैं और उनका कार्य लोकसभा के अध्यक्ष के समान होता है। यह अमेरिकी उपराष्ट्रपति के समान है, जो सीनेट के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य करते हैं।
- राष्ट्रपति की उपस्थिति में उपराष्ट्रपति उनके कार्यों का निर्वहन करते हैं.
- उपराष्ट्रपति उस दौरान राज्य सभा के सभापति के पद के कर्तव्यों का निर्वहन नहीं करते हैं, उन कर्तव्यों का निर्वहन राज्यसभा के उपसभापति द्वारा किया जाता है।
- उस दौरान वह राज्य सभा के सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन नहीं करते हैं और वे राज्यसभा के किसी संदेय किसी वेतन या भत्ते का हकदार नहीं होते।
- रिक्ति की स्थिति में राष्ट्रपति के रूप में उपराष्ट्रपति को सारी शक्तियां दी जाती हैं जो राष्ट्रपति को होती हैं। उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में तब तक काम करते हैं, जब तक कि नए राष्ट्रपति की नियुक्ति ना हो जाए।
- उपराष्ट्रपति अधिकतम 6 महीने तक राष्ट्रपति के रूप में काम कर सकते हैं। उस बीच नए राष्ट्रपति का निर्वाचन कराना अनिवार्य हो जाता है।
- जब राष्ट्रपति अनुपस्थित हों, अस्वस्थ हों या किसी अन्य कारण से अपने कार्यों का निर्वहन करने में असमर्थ हों, तो उपराष्ट्रपति अपने कार्यों का निर्वहन तब तक करते हैं, जब तक कि राष्ट्रपति अपना पदभार फिर से ग्रहण नहीं कर लेते।
1952 से लेकर अब तक ये रहे उपराष्ट्रपति
- डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन- 13 मई 1952 से 12 मई 1962 तक
- डॉ जाकिर हुसैन- 13 मई 1962 से 12 मई 1967 तक
- वीवी गिरि- 13 मई 1967 से 3 मई 1969
- गोपाल स्वरूप पाठक- 31 अगस्त 1969 से 30 अगस्त 1974 तक
- बीडी जत्ति- 31 अगस्त 1974 से 30 अगस्त 1979 तक
- एम हिदायतुल्ला- 31 अगस्त 1979 से 30 अगस्त 1984 तक
- आर वेंकटरमन- 31 अगस्त 1984 से 24 जुलाई 1987 तक
- डॉ शंकर दयाल शर्मा- 3 सितंबर 1987 से 24 जुलाई 1992 तक
- के आर नारायणन- 21 अगस्त 1992 से 24 जुलाई 1997 तक
- कृष्णकांत- 21 अगस्त 1997 से 27 जुलाई 2002 तक
- भैरों सिंह शेखावत- 19 अगस्त 2002 से 21 जुलाई 2007 तक
- मोहम्मद हामिद अंसारी- 11 अगस्त 2007 से 10 अगस्त 2017 तक
- एम. वेंकैया नायडू- 11 अगस्त 2017 से 10 अगस्त 2022 तक
- वर्तमान में जगदीप धनखड़- 11 अगस्त 2022 से अब तक