Chhattisgarh Assembly Election 2023 आदिवासियों के लिए आरक्षित 29 सीटों के अलावा 20 और सीटों पर चुनाव लड़ेगा सर्व आदिवासी समाज, छोटे दलों से चल रही बातचीत
Chhattisgarh Assembly Election 2023
रायपुर. छत्तीसगढ़ में चुनावी आहट तेज होने लगी है. फिलहाल शोरगुल तो कांग्रेस और भाजपा के खेमे से आ रही है. एक दबी आवाज आदिवासियों की भी है. दबी आवाज इसलिए क्योंकि आजादी के 75 सालों बाद भी समाज का यह मानना है कि कांग्रेस या भाजपा ने उनका संवैधानिक अधिकार नहीं दिया है. इसी मांग को लेकर छत्तीसगढ़ में सर्व आदिवासी समाज ने चुनाव में उतरने का निर्णय लिया है. यह देखना होगा कि बरसों से दबी हुई आवाज कुछ महीने बाद होने वाले चुनाव में कितना शोर मचा पाएगी.
छत्तीसगढ़ में आदिवासी समाज के लिए 29 सीटें आरक्षित हैं. इसके अलावा 20 सीटें और हैं, जहां उनकी संख्या 30 से 40 प्रतिशत तक है. इन सीटों पर भी प्रत्याशी उतारेंगे. हालांकि सामान्य सीटों पर सीट शेयरिंग के लिए भी विकल्प खुला हुआ है. इसके लिए बसपा, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, सीपीआई, सीपीएम, छत्तीसगढ़ मुक्त मोर्चा आदि से बात चल रही है.
सर्व आदिवासी समाज के संरक्षक और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने npg.news से बातचीत में कहा कि सोशल मूवमेंट के राजनीति में उतरने का यह प्रयोग है. सर्व आदिवासी समाज कोई पार्टी नहीं है. नेताम का मानना है कि समाज को राजनीति में उतरना नहीं चाहिए, लेकिन सरकारें मजबूर करेंगी आदिवासियों के पास और कोई विकल्प नहीं बचता है. नेताम के मुताबिक फिलहाल पूरी सीटों पर लड़ने का इरादा नहीं है. आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों के अलावा 20 उन सामान्य सीटों पर फोकस किया जाएगा, जहां आदिवासी वोटर 30 से 40 प्रतिशत हैं.
सामान्य सीटों पर लड़ने के पीछे नेताम यह वजह बताते हैं कि वहां समाज के लोग वोट तो देते हैं, लेकिन कोई उन्हें पूछता नहीं है. इन सामान्य सीटों में आदिवासी समाज की स्थिति बंधुआ मजदूर की तरह है. सर्व आदिवासी समाज का उद्देश्य समाज के इन लोगों को जगाना है. नेताम कहते हैं कि चुनाव का परिणाम जो भी हो, उनका उद्देश्य समाज के लोगों को जगाना है.
क्या कांग्रेस या भाजपा से जुड़े समाज के लोग भी संपर्क में हैं? इसके जवाब में नेताम कहते हैं कि सामाजिक आंदोलन/कार्यक्रमों में दोनों दलों से जुड़े समाज के नेता शामिल होते हैं. अब राजनीतिक मंच पर समाज के उतरने से भागीदारी को लेकर भविष्य में ही स्पष्ट हो पाएगा कि कितने लोग साथ हैं.
राजनीतिक दल के रूप में सर्व आदिवासी समाज के रजिस्ट्रेशन को लेकर नेताम का कहना है कि इलेक्शन कमीशन में उन्होंने प्रक्रिया शुरू की है. यह इलेक्शन कमीशन द्वारा तय किया जाएगा.
आदिवासियों के लिए आरक्षित सीट
भरतपुर सोनहत, प्रतापपुर, रामानुजगंज, सामरी, लुंड्रा, सीतापुर, जशपुर, कुनकुरी, पत्थलगांव, लैलुंगा, धरमजयगढ़, रामपुर, पाली तानाखार, मरवाही, बिंद्रा नवागढ़, सिहावा, डौंडीलोहारा, मोहला मानपुर, अंतागढ़, भानुप्रतापपुर, कांकेर, केशकाल, कोंडागांव, नारायणपुर, बस्तर, चित्रकोट, दंतेवाड़ा, बीजापुर, कोंटा.
इन सीटों पर भी आदिवासी वोटर
मनेंद्रगढ़, बैकुंठपुर, प्रेमनगर, भटगांव, अंबिकापुर, रायगढ़, कोरबा, कटघोरा, कोटा, लोरमी, बसना, खल्लारी, महासमुंद, पंडरिया, कवर्धा, खैरागढ़, खुज्जी, जगदलपुर.
प्रदेश में करीब 80 लाख आबादी
समाज के लोगों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में करीब 80 लाख आदिवासी आबादी है. इनमें से करीब 70 लाख लोग बस्तर और सरगुजा में रहते हैं. बचे हुए 10 लाख लोग मैदानी क्षेत्रों में हैं. 80 लाख में से 54 लाख के आसपास मतदाता हैं. 2018 में इन 54 लाख में से लगभग 40 लाख मतदाताओं ने अपना वोट दिया था. इनमें से 24 लाख वोट कांग्रेस को मिले थे. 2 लाख तक आदिवासी वोट जनता कांग्रेस के खाते में गई थी. भाजपा को सिर्फ 14 लाख आदिवासी वोट मिले थे. बाकी वोट स्थानीय पार्टियों के खाते में चल गई थी.
29 में ये सीटें कांग्रेस के पास
भरतपुर सोनहत, प्रतापपुर, रामानुजगंज, सामरी, लुंड्रा, सीतापुर, जशपुर, कुनकुरी, पत्थलगांव, लैलुंगा, धरमजयगढ़, रामपुर, पाली तानाखार, मरवाही, सिहावा, डौंडीलोहारा, मोहला मानपुर, अंतागढ़, भानुप्रतापपुर, कांकेर, केशकाल, कोंडागांव, नारायणपुर, बस्तर, चित्रकोट, दंतेवाड़ा, बीजापुर, कोंटा.
(2018 में कांग्रेस को 25 सीटें मिली थीं. इसके बाद उपचुनाव में पहले दंतेवाड़ा और फिर बाद में मरवाही सीट भी कांग्रेस जीती. फिलहाल रामपुर और बिंद्रा नवागढ़ में भाजपा विधायक हैं.)