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CG Government Press Scam: प्रिटिंग माफियाओं को सरकार ने दिया झटका, वित्त सचिव बोले...संवाद के अलावा कहीं और से पुस्तकें छपवाई तो खैर नहीं...

CG Government Press Scam: छत्तीसगढ़ के सरकारी प्रेस द्वारा नियम विरूद्ध प्रायवेट प्रिंटरों से पुस्तकों से छपाई के खेल पर विष्णुदव सरकार ने बड़ी चोट की है। वित्त सचिव मुकेश बंसल ने कहा है कि संवाद के अलावा अगर कहीं और से प्रचार-प्रसार की सामग्री और पुस्तकों का मुद्रण कराया तो कार्रवाई होगी। जाहिर है, छत्तीसगढ़ में संवाद की बजाए पाठ्य पुस्तक निगम और सरकारी प्रेसों से पुस्तकों की छपाई का कछ सालों से बडा स्कैम किया जा रहा था। सरकारी प्रेस पर प्रिंटिंग माफियाओं का ऐसा कब्जा हो गया था कि 2020 के बाद बिना टेंडर के करोड़ों की पुस्तकें छपवाई जा रही थी। इस खेल में सरकारी प्रेस के एमडी से लेकर समग्र शिक्षा के अफसर और प्रिंटर्स मालामाल हो रहे थे।

CG Government Press Scam, Finance Minister Mukesh Bansal
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CG Government Press Scam, Finance Minister Mukesh Bansal

By Gopal Rao

CG Government Press Scam: रायपुर। जाहिर है, छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना के बाद 21 अगस्त 2001 को राज्य सरकार ने विभागों को आदेश जारी कर सरकारी प्रचार-प्रसार की सामग्री और पुस्तकों की प्रिटिंग का काम संवाद से कराने कहा था। सामान्य प्रशासन विभाग ने कहा था कि संवाद को इसी काम के लिए बनाया गया है।

मगर प्रिंटिंग माफियाओं ने पिछले एक दशक से अपने उच्च संपर्कों के जरिये इस आदेश को ओवरलुक करते हुए पाठ्य पुस्तक निगम और सरकारी प्रेसों से करोड़ों की पुस्तक छपाई का आर्डर लेने लगे थे।

दरअसल, संवाद को नजरअंदाज कर छपाई के इस खेल में सबको फायदा था। पाठ्य पुस्तक निगम के अधिकारियों को अतिरिक्त कमाई का रास्ता निकल आया था। उपरी आमदनी के हिसाब से सूखाग्रस्त माने जाने वाले सरकारी प्रेस में भ्रष्टाचार की गंगा बहने लगी और प्रिंटरों को ये फायदा था कि कोई देखने वाला नहीं था कि क्या छाप रहे और कितना सप्लाई हो रहा। अफसरों को बांटने के बाद भी इसमें 50 परसेंट से अधिक का धंधा हो जाता था।

मसलन, इस बार समग्र शिक्षा में भारत सरकार से किताबें छपवाने का 60 करो़ड़ का बजट आया तो मानकर चला जाता था कि इसमें 30 करोड़ की कमाई पिं्रटरों को हो जाएगी। कारण कि न तो क्वालिटी जांचने का कोई लफड़ा था और न किताबों को गिनने का।

संवाद को बाइपास कर पुस्तक और प्रचार-प्रसार के खेल में पाठ्य पुस्तक निगम और सरकारी प्रेस द्वारा पिछले 10 साल में करीब हजार करोड़ का वारा-न्यारा किया गया।

सरकारी प्रेस के अधिकारी अगर लिमिट को क्रॉस नहीं करते तो अभी भी ये खेल चलता रहता। मगर सरकारी प्रेस के एमडी ने ज्यादा कमाई के लालच में 2022-21 में टेंडर करके रायपुर के चार-पांच प्रिंटरों को काम दिया और उसके बाद कभी फिर से टेंडर नहीं हुआ। याने पांच साल से उसी रेट पर उन्हीं प्रिंटरों को डंके की चोट पर काम दिया जा रहा और इसके एवज में मोटा कमीशन लिया गया। सरकार बदलने पर इसकी शिकायत मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय से हुई। उन्होंने इस पर ब्रेक लगा दिया।

वित्त सचिव मुकेश बंसल ने विभाग प्रमुखों को पत्र लिख कहा है कि किसी भी सूरत में संवाद को बाइपास कर प्रचार-प्रसार की सामग्री और पुस्तकों का मुद्रण बाहरी किसी एजेंसी से नहीं होनी चाहिए। वित्त सचिव ने कहा है कि संवाद अगर लिखित एनओसी दे तभी किसी और एजेंसी से काम कराया जाएगा। इसमें भी ट्रेजरी से पेमेंट तभी होगा, जब संवाद का एनओसी दिखाया जाएगा। वरना, ट्रेजरी पेमेंट रोक देगा।

उन्होंने विभाग प्रमुखों से ये भी ताकीद की है कि अगर कोई अधिकारी इस नियम को नजरअंदाज करें तो उसके खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।

जाहिर है, किसी भी राज्य के सरकारी प्रेस में सरकारी गजट या डायरी, कैलेंडर का मुद्रण कराया जाता है ताकि उसकी गोपनीयता बनी रहे। सरकारी प्रेस बनाया ही गया था सिर्फ सरकारी काम करने के लिए।

दरअसल, रायपुर के प्रिंटरों ने संवाद के समानांतर पाठ्य पुस्तक निगम और सरकारी प्रेस से प्रिंटिंग का धंधा फलने-फूलाने के लिए वहां के अधिकारियों से मिलकर ऐसी व्यवस्था बनाई कि मुख्यमंत्रियों का विभाग होने के बाद भी दसेक साल से संवाद लाचार हो गया था।

चार साल से एक टेंडर

छत्तीसगढ़ सरकारी प्रेस ने किताबों की छपाई के लिए 2020-21 में टेंडर किया था। इसके बाद पिछले चार साल से कोई टेंडर नहीं हुआ है। 2021 में जिन प्रिंटरों को काम दिया गया था, उन्हीं से पिछले चार साल से किताबों की छपाई कराई जा रही है।

गत 4 वर्षों से पुराने निविदा पर ही सिर्फ 4-5 प्रिटर्स द्वारा संपुर्ण कार्य काफी ऊचें दर पर आपस में बांटकर प्रिंटिंग कार्य किया जा रहा है।

भंडार क्रय नियम का उल्लंघन

छत्तीसगढ़ शासन के भंडार क्रय नियम 2022 के अनुसार कंडिका 73 (5) के अनुसार किसी भी निविदा दर अनुबंध की वैधता अवधि को 6 माह से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है। नियम 4/14 (2) के अनुसार किसी भी दर अनुबंध को एक वर्ष $6 माह से अधिक हो जाने की स्थिति में पुनरावृत्ति आदेश नहीं दिया जा सकता है।

सरकारी प्रेस और पापुनि क्यों?

जिस तरह सरकारी प्रेस में सरकारी सामग्री छपती है, उसी तरह पाठ्य पुस्तक निगम में स्कूलों की किताबें मुद्रित की जाती है। मगर ये दोनों संस्थाएं अपना काम छोड़कर दूसरे विभगों का काम करने लगे थे कारण कि इसमें कमाई ज्यादा थी। सरकारी प्रेस की हालत तो और बुरा है। वहां सरकार की सीमित संख्या में गजट जैसी सामग्री छपवाने के हिसाब से मैनपावर है। क्वालिटी आदि चेकिंग की तो बात ही अलग है। बावजूद इसके चार साल से सरकारी प्रेस से हर साल 50 करोड़ के उपर का बाहरी प्रिंटरों से पुस्तकें छपवाई जा रही हैं।

बहती गंगा में अफसरों की डूबकी

समग्र शिक्षा हर साल करीब 50 से 60 करोड़ की पुस्तकें छपवाता है। वह पहले पाठ्य पुस्तक निगम से किताबें प्रकाशित कराता था। मगर चार साल से प्रिंटिंग का कंप्लीट वर्क सरकारी प्रेस से कराया जा रहा है। इस साल समग्र शिक्षा का 60 करोड़ का बजट आया है।

इसमें समग्र शिक्षा के साथ सरकारी प्रेस और प्रिंटर्स, तीनों के अपने फायदे हैं। समग्र शिक्षा सरकारी प्रेस से किताबों को छपवाने में सहूलियत यह है कि किसी गड़बड़ की जिम्मेदारी उसके उपर नहीं आएगी। समग्र शिक्षा के अफसर बोल देंगे, हमने सरकारी प्रेस से किताबें छपवाई। समग्र शिक्षा के अफसरों को बिना किसी रिस्क के पैसा मिल जाता है। 50 करोड़ की पुस्तकों में अगर दो परसेंट भी लिए तो सीधे 10 करोड़ बन जाएगा।

सरकारी प्रेस के पास बड़़े पैमाने पर किताबें छापने के लिए मैनपावर नहीं है। इसलिए चतुराई करते हुए उसने 2020 से इसे बाहरी प्रिंटरों से किताबें छपवाना प्रारंभ कर दिया। इसके एवज में सरकारी प्रेस के अफसरों को अच्छा खासा कमीशन मिल जाता है। अच्छा खासा कमीशन इसलिए क्योंकि प्रिंटर्स क्या छाप कर दे रहे हैं, निर्धारित जीएसएम का पेपर इस्तेमाल कर रहे हैं कि नहीं, इसे देखने वाला कोई नहीं है। इस चक्कर में सरकारी प्रेस के अफसरों की लाटरी निकल गई है।

अफसरों पर उठते सवाल

समग्र शिक्षा जब करोड़ों के फर्नीचर से लेकर स्कूलों में सप्लाई की जाने वाली चीजों का जेम से टेंडर करता है तो फिर किताबों के लिए टेंडर क्यों नहीं कर रहा है, ये सवाल तो उठते हैं। इस बार 60 करोड़ की किताब छपाई का काम होने वाला है। जानकारों का कहना है कि अगर समग्र शिक्षा खुद टेंडर करेगा तो कंपीटिशन के चलते कम पैसे में ज्यादा अच्छी किताबों बच्चों को उपलब्ध होगी। मगर अभी बिना किसी जोखिम के जब लिमिट से अधिक पैसे मिल जा रहे तो फिर समग्र शिक्षा खुद से टेंडर कर लफड़ा क्यों मोल लें।

प्रिंटिंग माफियाओं को धक्का

सरकारी प्रेस प्रायवेट प्रिंटरों से बिना टेंडर के हर साल 70-80 करोड़ की किताबें छपवा रहा है। इसमे समग्र शिक्षा का 50 से 60 करोड़ और बाकी माध्यमिक शिक्षा मंडल के ओपन स्कूल की किताबें।

विष्णुदेव साय सरकार के द्वारा कड़ाई बरतने के बाद उन प्रिंटर माफियाओं को धक्का पहुंचा है, जो समग्र शिक्षा के इस साल के 60 करोड़ के बजट पर ललचाई नजर गड़़़ाए बैठे थे। वित्त सचिव के ब्रेक के बाद प्रिंटिंग माफियाओं में वज्रपात जैसी स्थिति हो गई है।

Gopal Rao

गोपाल राव रायपुर में ग्रेजुएशन करने के बाद पत्रकारिता को पेशा बनाया। विभिन्न मीडिया संस्थानों में डेस्क रिपोर्टिंग करने के बाद पिछले 8 सालों से NPG.NEWS से जुड़े हुए हैं। मूलतः रायपुर के रहने वाले हैं।

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