CG Election 2025: नगरीय निकाय चुनाव: CG मेयर इलेक्शन- इस बार नहीं चलेगी जोड़-तोड़ की राजनीति, जनता का जनादेश ही रहेगा सब पर भारी
CG Election 2025: वर्ष 2019 में हुए नगरीय निकाय चुनाव कई मायने में अपने आप में रोचक और सियासत के नजरिए से भयावह रहा। तब के कांग्रेस सरकार ने नियमों में संशोधन कर मेयर के डायरेक्ट इलेक्शन को इन डायरेक्ट कर दिया। मसलन पार्षदों के जरिए महापौर चुनने का नियम बना दिया। मेयर चुनाव के दौरान जो कुछ हुआ सबके सामने था और छत्तीसगढ़ की शहरी जनता इसे अब तक नहीं भूला पाई है। जोड़-तोड़ के साथ ही भय और दबाव का पालिटिक्स भी चला। नतीजा क्या रहा। सभी जानते हैं। राज्य की सत्ता से बेदखली हुई भाजपा इतनी राजनीतिक रूप से तब इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाई थी कि सरकार का मुकाबला करे और शहर सरकार में अपनी भागीदारी निभाए। जगदलपुर को छोड़ दें तो प्रदेश की सभी निकायों में कांग्रेस का कब्जा हो गया था। इस बार जोड़-तोड़ की सियासत नहीं चलेगी।

CG Election 2025: बिलासपुर। वर्ष 2019 और वर्ष 2025 के मौजूदा नगरीय निकाय चुनाव में बड़ा अंतर है। तब पार्षदों ने महापौर का चुनाव किया था। इस बार शहरी मतदाता महापौर के रूप में अपना प्रतिनिधि का चुनाव करेंगे। कहने का मतलब है प्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर का चुनाव होगा। जाहिर है जोड़-तोड़,सियासी प्रभावी और लालच जैसी चीजों के लिए इस बार कोई जगह नहीं रहेगा। जनता अपना प्रतिनिधि चुनेंगे और जनता को ही वापस बुलाने का अधिकार भी रहेगा। मतलब जनप्रतिधि के रूप में खरा ना उतरने पर रिकाल का अधिकार जनता जनार्दन को दिया गया है। रिकाल कर मेयर वापस बुला सकेंगे और नए जनप्रतिनिधि का चुनाव कर सकेंगे।
शहरी सरकार के लिए 14 से 10 नगर निगमों में चुनाव होने जा रहा है। बिलासपुर,रायपुर,जगदलपुर,राजनादगांव,धमतरी,कोरबा,रायगढ़,अंबिकापुर और चिरमिरी नगरीय निकाय में चुनाव होंगे। शेष चार नगर निगमों का कार्यकाल अभी बाकी है,लिहाजा चारों निगम में कार्यकाल पूरा होने के बाद चुनाव की प्रक्रिया प्रारंभ की जाएगी। फिलहाल प्रदेश के 10 नगर निगमों में चुनावी माहौल बनने लगा है। राजनीतिक दल के पदाधिकारी से लेकर कार्यकर्ता और मतदाता चुनावी मोड में आने लगे हैं। न्यायधानी से लेकर राजधानी और उत्तर छत्तीसगढ़ के दो महत्वपूर्ण निकायों अंबिकापुर और चिरमिरी में सियासत अपने अंदाज में गरमाने लगा है। उत्तर छत्तीसगढ़ की चर्चा इसलिए भी जरुरी है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का सुपड़ा हो गया था। विधानसभा की सभी 14 सीटों पर भाजपा का कब्जा हो गया है। कांग्रेस की गुटीय राजनीति के साथ ही अहम की राजनीति ने भी कांग्रेस की लुटिया डुबाने में कसर नहीं छोड़ी थी। गुटीय राजनीति इस कदर हावी था कि अंबिकापुर के विधायक व कद्दावर नेता व विधानसभा चुनाव के ठीक पहले डिप्टी सीएम की कुर्सी संभालने वाले टीएस सिंहदेव पूरे चार साल तक किनारे कर दिए गए थे। जब तक वे राजनीतिक के मुख्यधारा में लाैटते और अपनों को समेटते तक तब देर हो चुकी थी। यही कारण है कि वे खुद भी अपनी सीट नहीं बचा सके। निकाय चुनाव में देखने वाली बात ये रहेगी कि सिंहदेव सहित दिग्गज कांग्रेसी नेता रोलबैक कर पाएंगे या नहीं। सियासी साख को बचाए रखने किस हद तक निकाय चुनाव में अपनी ताकत आजमाएंगे यह भी देखने वाली बात होगी।
निर्दलीयों की अब नहीं होगी पूछपरख
बीते निकाय चुनाव में शहरी मतदाताओं ने नजदीक से देखा था कि भाजपा व कांग्रेस से बगावत कर चुनाव लड़ने और पार्षद बनने में कामयाब रहने वालों की सियासी लाटरी लग गई थी। पार्षदों के जरिए महापौर का चुनाव होना था, लिहाजा ऐसे पार्षदों पर सत्ताधारी दल की विशेष नजरें लगी रहीं। या यूं कहें कि इन पर नजरें इनायत रही। बागी पार्षदों की पार्टी में वापसी भी हो गई और शहर सरकार बनाने में अपनी भूमिका निभाने के एवज में राजनीतिक प्रतिदान भी मिल गया।
न्यायधानी में भाजपाई दिग्गज नहीं जुटा पाए थे हिम्मत
बिलासपुर नगर निगम में तब महापौर का चुनाव कांटे का हो जाता,अगर भाजपाई दिग्गज थोड़ा भी राजनीतिक रूप से हिम्मत जुटा लेते। 70 सीटों वाली नगर निगम में 33 पार्षद कम नहीं होते। पार्षदों की भारी भरकम संख्या होने के बाद भी भाजपाई रणनीतिकारों ने चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पाए। निर्दलीय पार्षद भी तब भाजपा की ओर नजरें टिकाए देख रहे थे। एक इशारे का इंतजार ही तो कर रहे थे। पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। बिलासपुर नगर निगम के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ जब महापौर और सभापित दोनों निर्विरोध निर्वाचित हो गए। भाजपाइयों के इस निर्णय को लेकर आज भी चर्चा होती है।