अखिलेश अखिल
अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मात देने के लिए विपक्षी एकता की सम्भावना बढ़ी है बीजेपी के रणनीतिकार चौकस और चौकन्ना हो गए हैं। बीजेपी को लगने लगा है कि चुनावों में जीत की श्रृंखला टूटी तो सत्ता में लम्बे समय तक लौटना आसान नहीं है। यही वजह है कि पूर्व में जिन पार्टियों को बीजेपी ने धोखा दिया या फिर कमजोर कर एनडीए से बाहर होने पर मजबूर किया उसकी तरफ दोस्ती का हाथ फिर से बढ़ाने लगी है। बीजेपी जानती है कि मौजूदा वक्त में न राजनीति का चरित्र है और न ही नेताओं का। ऐसे में किसी पार्टी के सामने नतमस्तक होकर ,पुचकारकर ,डरा -धमका कर और राजनीतिक हिस्सेदारी देकर उसे अपने पाले में किया जा सकता है। बप इस खेल में पारंगत है और इसका बड़ा अनुभव भी है। बीजेपी को यह भी पता है कि लम्बे समय के बाद देश के भीतर जातियों की राजनीति फिर से कुलांचे मार रही है और जातीय आधारित पार्टियों को अपने साथ नहीं जोड़ा गया तो आगामी चुनाव में खेल बिगड़ सकता है। ऐसे में रास्ता यही बनता है कि चाहे जैसे भी हो एनडीए का विस्तार फिर से किया जाए और पुराने सहयोगियों को अपने पाले में लाया जाए।
जबसे कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा शुरू हुई है ,बीजेपी की परेशानी कुछ ज्याद ही बढ़ी है। उत्तरा भारत में नीतीश कुमार जैसे चेहरे का एनडीए से हटना बीजेपी को बेचैन किये हुए है। बीजेपी जानती है कि नीतीश के अलग होने असर केवल बिहार में ही नहीं पडेगा ,इसका असर यूपी में भी पडेगा और हिंदी के कई राज्यों में भी बीजेपी को नुक्सान हो सकता है। दक्षिण में केसीआर की राजनीति भी बहुत कुछ कहती है। जबसे केसीआर ने अपनी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर पर चुनाव लड़ने के लिए खड़ा किया है तब से बीजेपी की चिंताएं कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। ऐसे में पार्टी के भीतर मंथन इसी बात पर जारी है कि चाहे जो भी हो एनडीए का कुनबा बढ़ाना जरुरी है। बीजेपी अब इस प्रयास में जुट भी गई है।
बीजेपी अब लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए एक-एक सीट पर काम कर रही है। वह पूर्वोत्तर भारत को तो साध ही रही है हिंदी पट्टी समेत उन राज्यों के दलों पर नजर गराये हुए हैं जिनके पास वोट बैंक तो है लेकिन राज्य की राजनीति में अभी हाशिये पर है। यही वजह है कि बीजेपी ने पंजाब की पटियाला सीट जीतने के लिए कैप्टेन अमरिंदर सिंह को भाजपा में शामिल कराया। ऐसे ही साउथ गोवा सीट के लिए कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री दिगंबर कामत को भाजपा में शामिल कराया गया। जाहिर है भाजपा चुनाव से पहले तोड़-फोड़ और गठबंधन दोनों की तैयारियों में है। वह छोटी छोटी पार्टियों के साथ तालमेल कर रही है। कांग्रेस व दूसरी प्रादेशिक पार्टियों के ऐसे नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करा रही है, जो अपने अपने क्षेत्र में मजबूत नेता हैं। साथ ही अपनी पुरानी सहयोगी पार्टियों के गिले शिकवे भूलवा कर उन्हे एनडीए में लौटने की कोशिश कर रही है।
बिहार पर बीजेपी की ख़ास नजर है। बीजेपी बिहार के जीतन राम मांझी की पार्टी हम और मुकेश साहनी की पार्टी वीआईपी के संपर्क में है। ये दोनों पार्टियां हालांकि कुछ सीटों पर ही पाना दखल रखती है लेकिन इन दोनों पार्टियों का ख़ास जातियों पर काफी असर है। हालांकि विकासशील इंसान पार्टी के विधायकों को अपनी पार्टी में मिला कर भाजपा ने उसे ऐसा जख्म दिया है। यही वजह है कि उसके नेता मुकेश साहनी अभी बीजेपी को बिल्कुल हाथ नहीं रखने दे रहे हैं। उधर जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तान अवाम मोर्चा इस समय सत्तारूढ़ गठबंधन के साथ है। फिर भी भाजपा दोनों पार्टियों के संपर्क में है। आगे क्या होगा कहना मुश्किल है लेकिन माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी कुछ दलों को अपने साथ जोड़ने में सफल हो सकती है।
इसी तरह उत्तर प्रदेश में भाजपा एक बार फिर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी से तालमेल की संभावना देख रही है। विधानसभा चुनाव में ओमप्रकाश राजभर ने अपनी पार्टी का तालमेल समाजवादी पार्टी से किया था। अब वे सपा से अलग हो गए हैं। इसलिए संभव है कि वे एनडीए में लौटें। सपा प्रमुख अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव का तालमेल भी भाजपा से संभव है। इसी तरह से बीजेपी की नजर झारखंड के पूर्व सहयोगी पर भी है। झारखंड में बीजेपी ने साथ छोड़ गई पुरानी सहयोगी आजसू से फिर से तालमेल किया है। बीजेपी की कोशिश कांग्रेस और झामुमो को भी तोड़ने की है। इस प्रयास में वह लम्बे समय से लगी है और माना जा रहा है कि देर सवेर बीजेपी को इसमें सफलता मिल भी सकती है। उधर पंजाब में अकाली दल के साथ बीजेपी के फिर तालमेल होने के कयास है। सुखबीर बादल की अमित शाह से मुलाकात के बाद इसकी चर्चा जोर पकड़ रही है। तमिलनाडु में अन्ना डीएमके और आंध्र प्रदेश में टीडीपी के साथ बीजेपी तालमेल कर सकती है। महाराष्ट्र में शिव सेना के एकनाथ शिंदे गुट को भाजपा अपने साथ जोड़े रखेगी। उत्तर प्रदेश में बीजेपी को पिछले विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी की मदद मिली थी। लोकसभा चुनाव में भी उससे बीजेपी को वैसी उम्मीद रहेगी।
कहा जा रहा है कि बीजेपी इस प्रयास में सफल हो जाती है तो विपक्षी एकता को धक्का लग सकता है। ऐसे में सबकी निगाहें अभी कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा पर है। अगर यह यात्रा सफल हो जाती है तो विपक्षी एकता के प्रयास फिर से शुरू होंगे और इस प्रयास में ममता।,नीतीश ,अखिलेश और केसीआर के साथ ही केजरीवाल बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।