Begin typing your search above and press return to search.

Bilaspur News: नगरीय निकाय चुनाव: बिलासपुर में ढाई साल के लिए चुने गए थे राजेश पांडेय, पांच साल बने रहे मेयर

Bilaspur News: नगर निगम का गठन और शुरुआती चुनाव काफी दिलचस्प रहा। एक जनवरी 1981 को बिलासपुर नगर निगम का गठन हुआ। पार्षदों का चुनाव मतदाता और मेयर के चुनाव का अधिकार पार्षदों को दिया गया। तब पार्षदों के अलावा अन्य व्यक्तियों को भी मेयर चुनाव लड़ने का अधिकार था। तब मेयर का कार्यकाल एक वर्ष का था। यह सिलिसला 1987 तक चल पाया। राजनीतिक उठापटक के बीच मध्य प्रदेश सरकार ने बिलासपुर नगर निगम में प्रशासक बैठा दिया। वर्ष 1995 में महापौर पद के चुनाव के लिए नियमों में संशोधन किया गया। पार्षद के बीच से महापौर बनने और पार्षदों को ही चुनने का अधिकार मिला। तब महापौर का कार्यकाल ढाई वर्ष तय किया गया था। ढाई वर्ष का कार्यकाल पूरा होने से पहले राज्य शासन ने फिर नियम बदले और कार्यकाल पांच वर्ष कर दिया। लिहाजा निकायों में काबिज महापौरों को ढाई साल अतिरिक्त कार्यकाल मिला, पूरे पांच साल वे बने रहे। तब से यह नियम ऐसा ही चला आ रहा है।

Bilaspur News: नगरीय निकाय चुनाव: बिलासपुर में ढाई साल के लिए चुने गए थे राजेश पांडेय, पांच साल बने रहे मेयर
X
By Radhakishan Sharma

Bilaspur News: बिलासपुर। वह अविभाजित मध्यप्रदेश का दौर था। छत्तीसगढ़ की बिलासपुर नगर पालिका का एक जनवरी को मध्य प्रदेश सरकार ने गठन किया। तब महापौर चुनने का नियम अजीबो-गरीब था। निर्वाचित पार्षद से बाहर के व्यक्ति को भी मेयर चुनाव लड़ने का अधिकार दिया गया था। पहला चुनाव ई अशोक राव के नाम रहा। वे मेयर के पद पर निर्वाचत हुए। छह साल बाद वर्ष 1987 में राज्य शासन ने प्रशासक बैठा दिया जो वर्ष 1994 तक काबिज रहे। बिलासपुर सहित मध्यप्रदेश के नगरीय निकायों के लिए अच्छा दिन आया। नियमों में संशोधन करने हुए राज्य सरकार ने महापौर का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से कराने का निर्णय लिया। लिहाजा वर्ष 1995 में पहली बार बदले हुए नियमों के अनुसार चुनाव हुआ। पार्षदों के जरिए मेयर का चुनाव हुआ। बिलासपुर नगर निगम का यह चुनाव कई मायने में बेहद दिलचस्प और कीर्तिमान वाला रहा। राज्य सरकार ने मेयर का कार्यकाल ढाई वर्ष तय किया था। लिहाजा ढाई वर्ष के लिए राजेश पांडेय महापौर के पद पर निर्वाचित हो गए। कार्यकाल पूरा होने से पहले ही राज्य सरकार ने एक और संशोधन करते हुए महापौर के कार्यकाल को पांच साल कर दिया। राजेश पांडेय को ढाई साल का राजनीतिक रूप से एक्सटेंशन मिला और पूरे पांच साल महापौर के पद पर काबिज रहे।

कुछ ऐसा है बिलासपुर नगर निगम का सियासी इतिहास

बिलासपुर नगर निगम के गठन और चुनावी इतिहास पर नजर डालें तो बिलासपुर नगर पालिका निगम का गठन 1 जनवरी 1981 को हुआ था। उन दिनों की व्यवस्था ऐसी थी कि पार्षद किसी भी गणमान्य नागरिक को मेयर चुन सकते थे। राज्य सरकार ने नगर पालिक निगम अधिनियम में निर्वाचित परिषद के बाहर के व्यक्ति को महापौर चुनाव में भाग लेने का अधिकार दिया गया था। ई. अशोक राव नगर निगम के पहले मेयर चुने गए। 5 सितंबर 1983 को अशोक रोव मेयर चुने गए। उन दिनों मेयर का कार्यकाल एक वर्ष का होता था। वर्ष 1985 से 86 तक श्री कुमार अग्रवाल मेयर बने। राज्य शासन ने वर्ष 1987 में बिलासपुर नगर निगम में प्रशासक बैठा दिया जो वर्ष 1993 तक काबिज रहे।

कांग्रेस के बहुमत के बाद निर्दलीय पार्षद बन गया महापौर

1994 के चुनाव को हमेशा इस रूप में याद किया जाता है कि पहली बार कांग्रेस के 60 और भाजपा के 40 फीसदी पार्षदों के गठजोड़ से मेयर का चुनाव हुआ। नगर पालिक निगम अधिनियम में राज्य सरकार ने संशोधन कर दिया था। पार्षदों को मेयर चुनने का अधिकार दिया गया था। तब बिलासपुर की राजनीति में मंत्री बीआर यादव की तूती बोलती थी। तभी तो कांग्रेस की टिकट ना मिलने पर राजेश पांडेय ने निर्दलीय पार्षद का चुनाव लड़ा और मेयर की कुर्सी भी हासिल कर ली। बीआर यादव के कृपा पात्र होने का राजनीतक रूप से लाभ मिला। किस्मत के धनी भी रहे राजेश पांडेय। राज्य शासन ने महापौर का कार्यकाल वर्ष तय किया था। कार्यकाल पूरा होने से पहले से ही राज्य शासन ने नियमों में संशोधन करते हुए कार्यकाल को ढाई वर्ष के बजाय पांच वर्ष कर दिया। ढाई वर्ष के लिए निर्वाचित महापौर को ही आगे ढाई साल का कार्यकाल पूरा करने का अधिकार भी सौंप दिया।

कब-कब कौन बने महापौर

वर्ष 1983 में वार्ड पार्षद का चुनाव हुआ। सितंबर 83 में पार्षदों ने अशोक राव को मेयर के पद पर चुना ।

सितंबर 1984 को अशोक राव ने मेयर पद से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद बलराम सिंह,श्रीकुमार अग्रवाल मेयर बने। इनका कार्यकाल एक-एक वर्ष का था जो चार सितंबर 1987 तक चला ।

वर्ष 1987 में राज्य शासन ने निगम में प्रशासक तैनात कर दिया । जो वर्ष 1995 तक जारी रहा।

वर्ष 1995 में राजेश पांडेय महापौर बने । पार्षदों के जरिए चुनाव हुआ था। उस समय कार्यकाल ढाई वर्ष का था। जिसे राज्य शासन ने बढ़ाते हुए पांच वर्ष कर दिया था।

1999 में फिर हुआ बदलाव, डायरेक्ट हुआ मेयर का चुनाव

राज्य शासन ने महापौर पद के निर्वाचन संबंधी नियमों में एक बार फिर संशोधन किया। वर्ष 1999-2000 के चुनाव से महापौर का निर्वाचन डायरेक्टर कर दिया । तब प्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर का चुनाव हुआ। इसमें भाजपा के उमाशंकर जायसवाल महापौर के पद पर निर्वाचित हुए ।

वर्ष 2005 के चुनाव में भाजपा के अशोक पिंगले मेयर बने । कार्यकाल के बीच में उनका निधन हो गया। तब सभापति विनोद सोनी को एक्टिंग महापौर बनाया गया था।

वर्ष 2009 के चुनाव में कांग्रेस की वाणी राव महापौर बनीं।

वर्ष 2014 के चुनाव में भाजपा के किशोर राय मेयर बने ।

वर्ष 2020 में रामशरण यादव महापौर के पद पर निर्वाचित हुए।

Next Story