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Bilaspur News: 29 साल में मेयर का पद तीन बार रहा सामान्य, दो बार सामान्य व एक बार ओबीसी वर्ग से बने मेयर

Bilaspur News: बिलासपुर नगर निगम के इतिहास पर नजर डालें तो वर्ष 1995 से महापौर के पद पर आरक्षण का दौर प्रारंभ हुआ। तब मेयर का पद सामान्य वर्ग के लिए तय किया गया था। पहले महापौर बने राजेश पांडेय। एक दशक बाद 2004 में मेयर की कुर्सी दूसरे मर्तबे सामान्य वर्ग को मिली। अशोक पिंगले मेयर बने। सामान्य वर्ग के उममीदवारों को फिर लंबा इंतजार करना पड़ा। तकरीबन डेढ़ बाद एक बार फिर मेयर की कुर्सी सामान्य वर्ग के लिए चलते हुए आई। राजनीतिक परिस्थितयां ऐसी पलटी या यूं कहें कि सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित मेयर की कुर्सी ऐसे फिसली की ओबीसी वर्ग के ताल्लुक रखने वाले कांग्रेसी पार्षद के कब्जे में चली गई।

Bilaspur News: 29 साल में मेयर का पद तीन बार रहा सामान्य, दो बार सामान्य व एक बार ओबीसी वर्ग से बने मेयर
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By Radhakishan Sharma

Bilaspur News: बिलासपुर। बिलासपुर नगर निगम के इतिहास पर गौर करें तो महापौर पद के आरक्षण में अब तक राजनीतक रूप से ओबीसी वर्ग के दावेदार और उम्मीदवार ही फायदे में रहे हैं। वर्ष 1995 से अब तक मेयर की कुर्सी तीन बार जनरल के लए आरक्षित हुआ। इसमें दो बार सामान्य वर्ग के उम्मीदवार मेयर बने, तीसरे मर्तबे सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित मेयर की कुर्सी ओबीसी वर्ग के हिस्से चली गई। तब राजनीतिक परिस्थितियां इस कदर पलटी खाई कि बिलासपुर से लेकर प्रदेश के सभी 14 निगमों में कांग्रेस का कब्जा हो गया। इनडायरेक्ट चुनाव हुआ था। मसलन पार्षदों ने मेयर का चुनाव किया था। जैसा की संभावनाएं जताई जा रही थी वैसा ही हुआ। बाजी पलटी और प्रदेश के सभी निगमों में कांग्रेस का कब्जा हो गया।

भाग्यशाली रहे राजेश पांडेय

वर्ष 1995 का वह दौर अविभाजित मध्यप्रदेश का था। स्थानीय विधायक व मंत्री बीआर यादव की प्रदेश के साथ ही छत्तीसगढ़ की राजनीति में दखलंदाजी भी उसी अंदाज में हुआ करती थी। निर्दलीय पार्षद होने के बाद राजेश पांडेय मेयर बन गए। बीआर यादव का रसूख ही कहा जा सकता है, कांग्रेस के दिग्गज पार्षदों के बावजूद निर्दलीय व अपने समर्थक राजेश पांडेय को मेयर की कुर्सी पर बैठा दिया। तब मेयर का कार्यकाल ढाई वर्ष का हुआ करता था। कार्यकाल पूरा होने से पहले ही मध्यप्रदेश सरकार ने महापौर का कार्यकाल पांच साल कर दिया गया। मतलब ये कि ढाई साल का कार्यकाल राजेश पांडेय को बतौर गिफ्ट राज्य सरकार ने दे दिया। लिहाजा पूरे पांच साल तक मेयर की कुर्सी पर राजेश पांडेय काबिज रहे।

पिंगले पहले मेयर जो कार्यकाल नहीं कर पाए पूरे

वर्ष 2004 के चुनाव में मेयर का पद सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित हुआ। भाजपा ने अशोक पिंगले को उम्मीदवार बनाया। पिंगले ने जीत दर्ज की और निगम की राजनीति को बेहतर ढंग से चलाया भी। दुर्भाग्यवश वे कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए और उनका निधन हो गया। बिलासपुर नगर निगम के इतिहास में उनका नाम दर्ज हो गया है। ऐसे मेयर बने जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए।

एक ही बार बने एक्टिंग मेयर

बिलासपुर नगर निगम के इतिहास में यह भी पहली बार हुआ जब एक्टिंग मेयर ने शेष कार्यकाल को चलाया हो। मेयर अशोक पिंगले के निधन के बाद राज्य शासन ने सभापति विनोद सोनी को एक्टिंग मेयर की जिम्मेदारी सौंपी। विनोद सोनी पांच जनवरी 2009 से दो जनवरी 2010 तक एक्टिंग मेयर के रूप में कामकाज किया।

एक ही बार बनीं महिला मेयर

बिलासपुर नगर निगम में अब तक एक ही बार महिला मेयर बनी है। वर्ष 2009 में मेयर का पद ओबीसी महिला के लिए आरक्षित की गई थी। तब कांग्रेस ने वाणीराव को उम्मीदवार बनाया था। वाणी राव ने चुनाव जीतकर नगर निगम में कांग्रेस की सत्ता में वापसी कराई। लंबे अंतराल के बाद निगम की राजनीति में कांग्रेस की वापसी हुई थी। वर्ष 2014 के चुनाव में एक बार फिर ओबीसी राजनीति की वापसी हुई और भाजपा ने पांच साल के अंतराल में ही निगम में कब्जा कर वापसी कर ली। तब भाजपा के किशोर राय महापौर बने।

ये है आरक्षण की तस्वीर

तखतपुर- सामान्य महिला

रतनपुर- सामान्य

बोदरी- सामान्य महिला

कोटा- ओबीसी महिला

बिल्हा- अजा महिला

मल्हार- सामान्य महिला

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