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Bilaspur News: 25 साल बाद जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी होगी अनुसूचित जाति के हवाले, 1999 में चंद्रभान धृतलहरे बने थे अध्यक्ष

Bilaspur News: छत्तीसगढ़ में होने वाले त्रि स्तरीय पंचायत चुनाव की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। शनिवार को जिला पंचायत अध्यक्ष पद के लिए आरक्षण की प्रक्रिया पूरी की गई। आरक्षण की लाटरी में बिलासपुर जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी इस बार अनुसूचित जाति वर्ग के हिस्से में आई है। निकली लाटरी में एससी फ्री सीट घोषित की गई है। मतलब साफ है एससी वर्ग से महिला या फिर पुरुष जिसका भाग्य लहराएगा अध्यक्ष की कुर्सी उनकी होगी। आंकड़ों पर नजर डालें तो 25 साल बाद ऐसा मौका दोबारा आया है।

Bilaspur News: 25 साल बाद जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी होगी अनुसूचित जाति के हवाले, 1999 में चंद्रभान धृतलहरे बने थे अध्यक्ष
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By Radhakishan Sharma

Bilaspur News: बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिला पंचायत चुनाव की सियासत का अपना अलग अंदाज रहा है। ग्रामीण राजनीति के रंग में जिले से लेकर प्रदेश स्तर के नेताओं की दिलचस्पी किसी से छिपी हुई नहीं है। वर्ष 1999 के दौर में हुए अध्यक्ष के चुनाव को कौन भूल सकता है। तब गजब की राजनीति चली। यही वह दौर था जब भाजपा के जिले की राजनीति में चाणक्य के रूप में धरमलाल कौशिक उभरकर सामने आए। भाजपा के पितृ पुरुष कहे जाने वाले लखीराम अग्रवाल का भरोसा ऐसा जीता कि उनकी सलाह और कही गई बात ही लखीराम अग्रवाल के लिए आखिरी हुआ करता था। भरोसा ऐसा कि धरम जो बोल दे वहीं सही। कुछ इस अंदाज में लखीराम अग्रवाल ने जिले की राजनीति को चलाई और धरमलाल कौशिक को उसी अंदाज में राजजनीति में वजन दिया और तव्वजो भी।

जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में मामला बराबरी का था। तब भाजपा ने अपने मैदानी कार्यकर्ता और जमीनी नेता चंद्रभान धृतलहरे को चुनाव मैदान में उतारा। जिला पंचायत सदस्यों की गिनती में मामला बराबरी का ही लग रहा था। लखीराम अग्रवाल ने कमान धरमलाल को सौंप दिया था। धरमलाल कौशिक की कारगर रणनीति और कुशल प्रबंधन ऐसा कि चंद्रभान अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज हो गए। तब अविभाजित मध्यप्रदेश का दौर था और दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। अंदाजा लगा सकते हैं कि चुनावी प्रबंधन को लेकर सरकार के साथ ही जिला प्रशासन का कितना दबाव रहा होगा। धरमलाल की रणनीति काम कर गई और जिला पंचायत में भाजपा का कब्जा हो गया।

अध्यक्ष की कुर्सी पर जोगी की लगी नजर

वर्ष 2000 में मध्यप्रदेश का विखंडन हुआ और छत्तीसगढ़ राज्य का गठन। तब कांग्रेस आलाकमान ने राजनीतिक अटकलों पर विराम लगाते हुए प्रदेश की सत्ता अजीत जोगी के हवाले कर दिया। जोगी के सीएम बनने के बाद छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक अलग ही रंग व अंदाज दिखने लगा। तोड़फोड़ की राजनीति की शुरुआत हुई। शुरुआत मरवाही से हुई। भाजपा विधायक रामदयाल उइके ने नाटकीय घटनाक्रम के तहत पद से इस्तीफा दे दिया और विधानसभा जोगी के हवाले कर दिया। विधानसभा चुनाव जीतने के बाद प्रदेश के नगर निगमों से लेकर जिला पंचायत में अपनी सरकार बैठाने की उनकी योजना बनी और इस पर अमल भी हुआ। जोगी के निशाने पर सबसे पहले बिलासपुर जिला पंचायत अध्यक्ष धृतलहरे आए। विश्वास प्रस्ताव की राजनीति चली और पद से हटा दिया गया। धृतलहरे के पद से हटने के बाद नारायण वर्मा को अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाया गया। इस दौर के बाद फिर दोबारा जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी अनुसूचित जाति वर्ग के हिस्से में नहीं आई।

25 साल बाद आया दोबारा मौका

अनुसूचित जाति वर्ग के जिले के नेताओं को पूरे 25 साल इंतजार करना पड़ा है। सियासत का चक्र देखिए। अब प्रदेश में भाजपा की सरकार काबिज है। मौजूदा पंचायत में भी भाजपा के ही अध्यक्ष काबिज हैं। यह तो तय है कि अब जोगी शासनकाल जैसा सियासत नहीं चलेगा। तोड़फोड़ और अविश्वास प्रस्ताव की राजनीति देखने को नहीं मिलेगी।

चूक गई चांदनी

जिला पंचायत चुनाव के दौरान चांदनी भारद्वाज भाजपा समर्थित उम्मीदवार की हैसियत से चुनाव लड़ीं और जीती भी। वर्तमान में जिला पंचायत की सदस्य है। विधानसभा चुनाव के दौर में मस्तूरी विधानसभा सीट से दावेदारी करते हुए टिकट मांगी थी। भाजपा से मिली उपेक्षा के चलते भाजपा से इस्तीफा देकर जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ का दामन थाम लिया।वर्तमान में जकांछ में है। एक अटकलबाजी यह भी लगाई जा रही है कि तब मौके की राजनीति की रहती तो आज उनकी राजनीतिक संभावनाओं को बल मिलते दिखाई देता। बहरहाल अभी तो अटकलें ही लगाई जा रही है। अटकलबाजी के बीच अजा वर्ग के ताल्लुक रखने वाले नेता अपनी संभावनाएं तलाशने लगे हैं।

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