Bilaspur Nagar Nigam News: सभापति-पार्षद विवाद, निगम की राजनीति के लिए नई बात नहीं, भाजपा में जो कुछ चल रहा वह हैरान करने वाली
Bilaspur Nagar Nigam News: छत्तीसगढ़ की न्यायधानी कहे जाने वाली बिलासपुर के नगर निगम की राजनीति में यह सामान्य बात है कि सत्ताधारी दल के सदस्य ही विपक्ष की भूमिका में नजर आते हैं। निगम की राजनीतिक इतिहास गवाह है, सामान्य सभा की बैठक, एमआईसी की मीटिंग हो या फिर सार्वजनिक जगहों पर होने वाली चर्चा। जिस दल की निगम में सत्ता रहती है उसके पार्षद ही मेयर व उनके करीबियों के राजनीतिक प्रतिस्पर्धी बन जाते हैं। मौजूदा दौर में जो कुछ चल रहा है, उसे परंपरागत राजनीति का हिस्सा मान लेना चाहिए। चर्चा तो इस बात की भी हो रही है कि अति राजनीतिक महत्वाकांक्षा और बढ़ती स्वेच्छाचारिता भी विवाद का कारण माना जा रहा है। सभापति और पार्षद के बीच ताजा सियासी संघर्ष को इसी का दुष्परिणाम कहा जा सकता है।

Bilaspur Nagar Nigam News: बिलासपुर। राज्य की सत्ता पर काबिज भाजपा,बिलासपुर सहित प्रदेश के अमूमन सभी निगमों में काबिज है। प्रदेश के अन्य नगर निगमों से इस तरह की सियासी कड़वाहट सामने नजर नहीं आ रही है जैसा बिलासपुर नगर निगम के सत्ताधारी दल के सदस्यों के बीच नजर आ रही है। बिलासपुर नगर निगम की भाजपाई राजनीति में इन दिनों शह-मात का खेल चल रहा है। जिसे जब मौका मिला, बिना किसी सोच विचार के तत्काल भुनाने और नीचा दिखाने का खेल हो रहा है। सामान्य सभा की बैठक में सभापति ने सीनियर पार्षद को प्रोटोकाल का पाठ पढ़ाया तो कुछ महीने बाद पार्षद ने सभापति को नियम कायदे की पाठ पढ़ा दिया। अचरज की बात ये कि आपसी झगड़े में निगम के कर्मचारी और अफसरों को गवाही रख रहे हैं। अंदाजा लगाइए, दो के झगड़े में फायदा किसका होगा और नुकसान किसे भुगतना पड़ेगा।
मेयर इन कौंसिल MIC की बैठक के दौरान जो कुछ हुआ, उसकी सियासी पृष्ठभूमि तकरीबन दो महीने लिखी जा चुकी थी। जब सभापित ने आरक्षित सीटों पर बैठने के लिए प्रोटोकाॅल का हवाला दिया था। दरअसल सभापति विनोद सोनी ने सामान्य सभा की बैठक के दौरान पार्षद विजय ताम्रकार को प्रोटोकॉल का हवाला देते मेयर के पीछे वाली आरक्षित सीट पर बैठने की समझाइश दी थी। चूंकि सामान्य सभा की बैठक का संचालन सभापति करते हैं,लिहाजा विजय ने सभापति के निर्देशों का पालन करते हुए पीछे की कुर्सी पर बैठ गए थे। सामान्य सभा के दौरान आरक्षित जगह पर बैठे तो रहे, मन में कुछ अलग ही चल रहा था। सियासी दो महीने तक दबाए बैठे सियासी कड़वाहट मंगलवार को उस समय फूट गया जब सभापति विनोद सोनी को एमआईसी की मीटिंग में शामिल होते देखे। सियासी कटुता और गुस्सा बाहर निकल आया, सामान्य शिष्टाचार को ताक पर रखते हुए विजय ने कुछ उसी अंदाज में सभापित विनोद सोनी को नियम कायदे की पाठ पढ़ाई जैसे सामान्य सभा की मीटिंग के दौरान उन्होंने प्रोटोकॉल की पाठ पढ़ाई थी। दोनों के बबीच राजनीतिक टकराव और महत्वाकांक्षा का गवाह बने निगम के अफसर कर्मचारी व भाजपा के अलग-अलग गुटों से ताल्लुक रखने वाले एमआईसी के मेंबर।
बंद कमरे की बातें आई बाहर, मेयर को देनी पड़ी सफाई
महापौर पूजा विधानी की अगुवाई में बंद कमरे में एमआईसी की मीटिंग चल रही थी। सभापति व पार्षद के बीच विवाद की बातें बंद कमरे से निकलकर बाहर आ गई। अब तो पब्लिक डोमेन में भी चर्चा छिड़ गई है। लोगों की जुबान पर मौजूदा विवाद के साथ ही इसके पहले के विवादों की बातें भी आने लगी है। वाणीराव के कार्यकाल की चर्चा भी लोग करने लगे हैं तो रामशरण यादव के दौर में गुटीय राजनीति को लोग भुला नहीं पाए हैं। वाणीराव के कार्यकाल में 10 ऐसे कांग्रेसी पार्षद थे जो पूरे समय विपक्षी तेवर में नजर आते थे। तब भाजपा को विरोध करने की जरुरत ही नहीं पड़ती थी। ये 10 ही भाजपा पार्षदों के एजेंडे को पूरा करते नजर आते थे। नेता प्रतिपक्ष बसंत शर्मा के दौर में भी कुछ इसी तरह की गुटीय राजनीति को कांग्रेस के ही कुछ पार्षदों ने जमकर हवा दी थी। बिलासपुर नगर निगम की तासीर ही ऐसी है कि प्रभावी कुर्सी पर बैठने वाले गुटीय राजनीति का शिकार होकर रह जाते हैं।
दोनों मेयर पद के रहे हैं दावेदार
भाजपा की राजनीति पर नजर डालें तो निगम चुनाव के दौरान में विजय ताम्रकार और विनोद सोनी महापौर पद के दावेदारों में रहे हैं। दोनों ने टिकट के लिए जमकर जोर आजमाइश की थी और अपने-अपने तरीके से लॉबिंग भी की थी। ये अलग बात है कि विधायक अमर अग्रवाल के मापदंड पर फिट नहीं बैठ पाए और पार्षद की टिकट से संतोष करना पड़ा। बदली राजनीतिक परिस्थितियों में विजय को एमआईसी मेंबर व विनोद को सभापति की कुर्सी मिली। टिकट के दौर की कटुता कहें या फिर निगम की राजनीति में वर्चस्व व महत्वाकांक्षा, एक बार फिर दोनों आमने-सामने हो गए हैं। शहर की राजनीति में दोनों वरिष्ठ हैं। अफसरों और कर्मचारियों के बीच इस तरह के विवाद से भाजपा की छवि पर बट्टा तो लगा ही रहें है, आपस खींचतान के चलते शहरवासियों की मुसिबतें भी बढ़ा रहे हैं। चर्चा तो इस बात की भी हो रही है कि आपसी खींचतान का फायदा अफसर और कर्मचारी उठाएंगे। खामियाजा शहरवासियों को भुगतना पड़ेगा।
