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पेंड्रीडीह जमीन विवाद : SDM अखिलेश साहू की कोर्ट ने 17.36 एकड़ जमीन को फिर से सरकारी भूमि के तौर पर दर्ज करने का दिया आदेश…… दो अपील में आदेश जारी, एक अपील की सुनवाई अब मस्तूरी SDM करेंगे….19.44 एकड़ जमीन निजी व्यक्ति के नाम पर चढ़ाने के मामले में तहसीलदार किया जा चुका है सस्पेंड

पेंड्रीडीह जमीन विवाद : SDM अखिलेश साहू की कोर्ट ने 17.36 एकड़ जमीन को फिर से सरकारी भूमि के तौर पर दर्ज करने का दिया आदेश…… दो अपील में आदेश जारी, एक अपील की सुनवाई अब मस्तूरी SDM करेंगे….19.44 एकड़ जमीन निजी व्यक्ति के नाम पर चढ़ाने के मामले में तहसीलदार किया जा चुका है सस्पेंड
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By NPG News

रायपुर 14 जनवरी 2021। पेंड्रीडीह की जिस 19.44 एकड़ जमीन को निजी व्यक्तियों देने की साजिश थी, वो फिर से दस्तावेजों में सरकारी जमीन के तौर पर तर्ज कर ली गयी है। बिल्हा SDM अखिलेश साहू की कोर्ट ने 19.44 एकड़ में से 17.36 एकड़ जमीन की सुनवाई पूरी करते हुए उसे वापस सरकारी जमीन के तौर पर दर्ज करने का निर्देश दिया है। जबकि बाकी बची 2.08 एकड़ जमीन की सुनवाई रेवेन्यु बोर्ड से एसडीएम बिल्हा के कोर्ट से एसडीएम मस्तुरी कोर्ट में ट्रांसफर किये जाने से अब बाकी बची 2.08 एकड़ जमीन की सुनवाई एसडीएम मस्तुरी करेंगे।

अपील की सुनवाई का पूरा आदेश देखिये

आपको बता दें कि पेंड्रीडीह जमीन का मुद्दा विधानसभा में भी गूंजा था, जिसके बाद सदन में ही राजस्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने गड़बड़ी करने वाले तहसीलदार राय को सस्पेंड करने का निर्देश दिया था। 19.44 एकड़ सरकारी जमीन को निजी व्यक्ति के नाम पर करने के मामले में तीन अलग-अलग अपील दायर की गयी थी, जिनमें से एक अपील 10.26 एकड़ जमीन को लेकर थी, खसरा नंबर 219 की 0.24 एकड़ जमीन अब्दुल हलीम खान के नाम पर और खसरा नंबर 249/1, 249/2 की 10.02 एकड़ जमीन हितेश मखीजा और गौरव चंदानी को ट्रांसफर कर दी गयी थी।

7.10 एकड़ जमीन मामले में अपील पर आदेश देखिये

उसी तरह से खसरा नंबर 256 की 7.10 एकड़ की एक और जमीन अब्दुल हलीम खान, शिवशरण ठाकुर और प्रफुल्ल नायक के नाम पर चढ़ाया दिया गया था। ये दोनों अपील एसडीएम बिल्हा के कोर्ट में थी, जबकि खसरा नंबर 278 की 2.08 एकड़ जमीन अब्दुल हलीम खान और अविनाश पेशवानी के नाम पर हस्तांरित कर दिया गया था।

नामांतरण की अपील पर सुनवाई करते हुए एसडीएम अखिलेश साहू ने तहसीलदार की कार्रवाई पर बेहद ही तल्ख टिप्पणियां की है। अपने सात पेज के आदेश में एसडीएम ने लिखा है कि

“दिनांक 20 अगस्त 2020 के पहले तक खसरा नंबर 256 की जमीन छोटे बड़े झाड़ का जंगल व घास मद में दर्ज रही है, को न्यायालय तहसीलदार बिल्हा के क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर धारा 57(2) छगभूराज संहिता की शक्तियों का प्रयोग करते हुए आलोच्य आदेश से व्यथित होकर न्यायालय में अपील प्रस्तुत किया गया है”

आदेश में ये भी कहा गया है कि

“आलोच्य आदेश दिनांक के पूर्व तक वाद भूमि शासकीय भूमि रही है तथा वाद भूभि शासकीय भूमि रही है तथा वाद भूमि निस्तार पत्रक में दर्ज है। केवल न्यायालय कलेक्टर को ही वाद भूमि को निस्तार पत्र से नियमानुसार पृथक करने और प्राइवेट व्यक्ति एवं शासन के बीच अधिकार के संबंध में विवाद के निराकरण का अधिकार है, बावजूद इसके अधीनस्थ न्यायालय द्वारा धारा 109, 110, 115, 116 तथा 158 की गलत व्याख्या कर आदेश पारित कर उत्तरवादी क्रमांक 01 का नाम दर्ज किया गया है। पश्चात उत्तरवादी क्रमांक 2 एवं 3 द्वारा पंजीकृत उपहार पत्र/ हिबानामा उपरांत अपने नाम में दर्ज करा लिया गया”

SDM ने अपने आदेश में साफ लिखा है कि अपील को खारिज करते हुए वाद भूमि में राजस्व अभिलेख आलोच्य आदेश दिनांक 20 अगस्त 2020 के पूर्व स्थिति के अनुसार रिकार्ड दुरुस्त करने का आदेश पारित किया जाता है।

ऐसा ही आदेश एसडीएस ने अपनी दूसरी अपील की सुनवाई में दी है। एसडीएम कोर्ट की सुनवाई के बाद अब फिर से 17.36 एकड़ जमीन दोबारा से राजस्व रिकार्ड में सरकारी भूमि के तौर पर दर्ज हो गयी है।

ये था पूरा मामला

बिल्हा तहसील के तहसीलदार सत्यपाल राय द्वारा पेंड्रीडीह स्थित चार खसरा नंबरों की एक सरकारी जमीन को निजी व्यक्तियों के नाम पर चढ़ा दिया था। जिस पर नेता प्रतिपक्ष एवं विधायक धरमलाल कौशिक ने कलेक्टर को चिट्ठी लिखकर बताया कि करोड़ों की जमीन को नियम तोड़कर तहसीलदार ने कुछ रसूखदारों के नाम पर चढ़ा दिया है। मामले में एसडीएम के यहां अपील भी की गई है और हाईकोर्ट में मामला लगा दिया गया है। इसी बीच ये मामला विधानसभा में भी उठा, जिसके बाद राजस्व मंत्री ने तहसीलदार को सस्पेंड करने का आदेश दे दिया। धरमलाल कौशिक ने शिकायत में बताया था कि पेंड्रीडीह में शासकीय भूमि के रूप में दर्ज खसरा नंबर 249, 219, 278, 556 का नामांतरण तहसीलदार सत्यपाल राय ने किसी दूसरे व्यक्ति के नाम पर कर दिया है। यह भू राजस्व की संहित (57)2 का उल्लंघन है। उनके मुताबिक यह जमीन निस्तार की है, जिसका 90 सालों से ग्रामीण इस्तेमाल करते आ रहे हैं। इसलिए राजस्व अधिकारियों द्वारा ऐसा करना गलत है।

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