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भाजपा विधायक दल का विरोध..बनाम नेता प्रतिपक्ष का ‘सदामौनी व्रत’ और असम चुनाव

भाजपा विधायक दल का विरोध..बनाम नेता प्रतिपक्ष का ‘सदामौनी व्रत’ और असम चुनाव
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By NPG News

रायपुर,6 मार्च 2021। प्रदेश की सबसे बड़ी पंचायत विधानसभा में जो कुछ हो रहा है ख़ासकर बीते दो दिनों में, वो आख़िर जो हो रहा है वह क्या केवल आसंदी की व्यवस्था का विरोध है या इसके पीछे कुछ और भी रहस्य है ? और वो कितने ‘खुले रहस्य’ याने ओपन सिक्रेट हैं ?
भाजपा विधायक दल की संख्या भले सीमित हो लेकिन अजय चंद्राकर शिवरतन शर्मा की जोड़ी समूचे सत्ता पक्ष को विचलित कर देती है। कई बार तो केवल अजय चंद्राकर अपने तर्क तथ्य और प्रत्युत्पन्न मति के आगे विरोधियों को जवाब के लिए अवसर तक नहीं देते। पर इस सप्ताह के आख़िरी दो दिनों से जो हो रहा है वह आख़िर साबित क्या कर रहा है ?
बजट जैसा सत्र जिसमें विपक्ष की भुमिका बेहद अहम होती है, विभाग के अनुदान चर्चा पर वह अवसर होता है जब विपक्ष पूरी निर्ममता से लेकिन संसदीय मर्यादाओं के उच्च मापदंड को ध्यान में रखते हुए प्रहार करता है और यही वह अवसर भी होता है जबकि क्षेत्रीय विधायक के रुप में अपने प्रस्तावों को जोड़ा या बढ़ाया भी जाता है। और आलम यह है कि सदन के इस हफ़्ते के आख़िरी दो कार्यदिवस पर भाजपा विधायक दल ने विभाग अनुदान चर्चा पर भाग ही नहीं लिया है। नतीजतन गृह जेल संस्कृति नगरीय निकाय कृषि जल संसाधन जैसे विभागों पर कोई प्रतिरोध नहीं हुआ कोई सवाल नहीं हुआ और बिजली की गति से विभाग अनुदान पर सत्ता पक्ष ने सत्ता पक्ष से ही विचार अभिव्यक्त कराए और ‘गुडी गुडी फील’ के साथ विभागों पर चर्चा संपन्न हो गई अनुदान स्वीकृत हो गए।
भाजपा विधायक दल के इस तेवर के पीछे आसंदी की व्यवस्था से असहमति बताई गई,लेकिन भीतरखाने जो दिख रहा है वह बताता है कि यह अहं का मसला है। प्रश्नकाल में थोड़े ही सही पर विलंब से पहुँचे वरिष्ठ सदस्य बृजमोहन अग्रवाल को प्रश्न पूछने का अवसर नहीं मिला और यहीं से मसला शुरु हो गया। अगले दिन जबकि विभाग पर चर्चा का विषय आया तो आसंदी ने पूर्व निर्धारित समय का उल्लेख करते हुए व्यवस्था की याद दिलाई और कुछ देर बाद भाजपा विधायक दल बहिर्गमन कर गया। और फिर विभागों की चर्चा से भाजपा विधायकों ने खुद को अलग कर लिया।
अब इस पूरे मामले में जो ‘ओपन सिक्रेट’ है वह यह कि, जिसमें भी विधानसभा का यह पूरा रुपक देखा होगा उसने पाया होगा कि, नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक की सहमति तो दूर सम्मति तक निर्णय के पहले नहीं रही। धान के मसले पर बहिर्गमन के फ़ैसले पर जबकि अगला प्रश्न खुद नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक का था, इस बहिर्गमन के दौरान अपनी असहमति जो चेहरे के भावों के ज़रिए आती जाती रहीं उसे छुपा नहीं पाए।
सदन के भीतर और बाहर हालिया दिनों यह कोई पहला मौक़ा नहीं था जबकि नेता प्रतिपक्ष कौशिक की मसलों पर असहमति या विषय के प्रस्तुतीकरण के तौर तरीक़े पर उनकी राय को तवज्जो नहीं मिली। पर हालिया दो दिन तो जैसे इस मसले का साफ़ मुज़ाहिरा था।
सरकार के लिए इससे बेहतर भला क्या ही हो, जबकि संख्या बल का रिकॉर्ड तोड़ आँकड़ा उसके पास हो और फिर भी विपक्ष के तेवर उसे रक्षात्मक भाव में रखते हों, और वह विपक्ष ही नदारद हो जाए।नतीजतन विभागों पर चर्चा फ़ुल फ़ील गूड़ अंदाज में संपन्न हो गई।
सदन के भीतर सरकार के नीति निर्देशक इस मौक़े का भरपूर फ़ायदा उठाने से चुक भी नहीं रहे, दो दिन और रिकॉर्ड पाँच से छ विभाग पर प्रस्ताव बग़ैर किसी विरोध के धड़ल्ले से पारित हो गया, होना भी था। तैयारी तो अब यह भी है कि आने वाले सप्ताह के शुरुआती दिनों में ही प्रतिदिन तीन विभाग के हिसाब से पटाक्षेप कर लिया जाए।
विधानसभा और उसका बजट सत्र कितना अहम होता है यह विधायिका की सामान्य जानकारी रखने वाला कोई भी बता देगा,फिर इस निर्णय से भाजपा को आख़िर हासिल क्या हो रहा है और यदि कोई फ़ायदा हो रहा है तो वह क्या और नुक़सान हो रहा है तो किसका और जवाबदेह क़ौन होगा।
सूत्रों की मानें तो इस पूरे मसले में नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने बंद कमरे में साथी विधायकों को समझाने की क़वायद की लेकिन जैसा कि उपर उल्लेखित है, उनकी राय सलाह पर भला गौर किसे करना था।
इधर एक मसला और है, असम चुनाव है और कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों के लोगों की जिनमें मंत्री विधायक शामिल हैं उनकी ड्यूटी लगी है या फिर लगनी है, जो गतिरोध दिख रहा है उससे सदन की कार्यवाही ज़ाहिर है जल्द समाप्त भी हो ही जाएगी।
इधर विपक्ष के प्रति स्वाभाविक रुप से रुझान को प्रदर्शित करने वाली आसंदी मौन है, सूत्र बताते हैं कि वे खुद इस मसले पर असहमति को प्रदर्शित करने के इस तरीक़े से चकित है।
जिस तरह से नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक की भुमिका रह जा रही है, उसमें वे भीतर यदि कुछ बोल पा रहे हैं तो अलहदा पर भीतर के मसलों पर उनका सदाव्रती मौन प्रख्यात शायर राजेश रेड्डी के शेर की याद दिलाता है –
“खुलते-खुलते रह गई मेरी जुबॉं
एक तमाशा होते-होते रह गया”

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