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NPG खासः सीएम भूपेश की गोधन न्याय योजना से गांवों में आय का जरिया बढ़ेगा, पर्यावरण संरक्षण के साथ ही पशुधन का संरक्षण भी

NPG खासः सीएम भूपेश की गोधन न्याय योजना से गांवों में आय का जरिया बढ़ेगा, पर्यावरण संरक्षण के साथ ही पशुधन का संरक्षण भी
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By NPG News

NPG.NEWS
रायपुर, 7 जुलाई 2020। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की दूरदर्शी गोधन न्याय योजना ग्रामीण अर्थ व्यवस्था के लिए मिल का पत्थर साबित होगा। योजना आयोग के विशेषज्ञ भी मानते हैं गोधन योजना अगर सही ढंग से लागू हो गई तो लोगों को न केवल जीवकोपार्जन का एक अहम जरिया मिल जाएगा बल्कि पशुधन के संरक्षण के साथ ही पर्यावरण में बड़ा सुधार होगा।
कृषक परिवार से जुड़े छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ में खेती-किसानी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की जमीनी हकीकत पर केन्द्रित ‘सुराजी गांव योजना‘ की परिकल्पना की है। उनके कुशल मार्गदर्शन में इस योजना पर तेजी से अमल किया जा रहा है। मुख्यमंत्री के निर्देशन में किसानों से धान खरीदी, उनकी कर्जमाफी, राजीव गांधी किसान न्याय योजना और गोधन न्याय योजना जैसी अभिनव योजनाओं से प्रदेश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी।


छत्तीसगढ़ राज्य के सामाजिक आर्थिक ताने-बाने की स्थिति कुछ ऐसी है कि यहां छोटे और मध्यम किसानों की संख्या ज्यादा है, जिसके कारण कृषि प्रबंधन में कई जटिलताएं आती है। पशुओं की खुले में चराई से फसल को नुकसान, पशुपालन की बढ़ती लागत, चारे की कमी, चरवाहों की अनुपलब्धता, रासायनिक खादों के बढ़ते प्रयोग से जमीन की उर्वरा शक्ति पर पड़ने वाले विपरित प्रभाव जैसी इन जटिल समस्याओं के समाधान और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए शुरू की गई सुराजी गांव योजना में पशुप्रबंधन के लिए गौठानों की व्यवस्था की गई है। इन गौठानों को आर्थिक गतिविधियों के केन्द्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। राज्य में करीब 20 से 22 लाख किसान हैं। इनमें से अधिकांश किसान लघु एवं सीमांत हैं। बड़े किसानों की संख्या बहुत कम है। ऐसी स्थिति में खेती को लाभदायक बनाने के लिए राज्य सरकार को कई दिशाओं में काम करना पड़ रहा है।
राज्य सरकार का फोकस इस बात पर है कि छोटे किसानों के लिए खेती-किसानी फायदे का सौदा बने। सुराजी गांव योजना के तहत नरूवा, गरूवा, घुरूवा, बाड़ी को विकसित करने के लिए छोटे-बड़े किसानों, महिलाओं, युवाओं की भागीदारी से इस महत्वाकांक्षी योजना का क्रियान्वयन चरणबद्व तरीके से किया जा रहा है। खेती को लाभप्रद बनाने के लिए राज्य सरकार ने किसानों का लगभग 83 लाख मीट्रिक टन धान समर्थन मूल्य पर खरीदा और कोरोना संकट के समय उन्हें खेती किसानी से जोड़े रखने के लिए राजीव गांधी किसान न्याय योजना लागू कर बड़ी राहत दी है। इस योजना में 5750 करोड़ रूपए की प्रोत्साहन राशि 19 लाख किसानों को वितरित की जा रही है। इस योजना की प्रथम किश्त 1500 करोड़ रूपए की राशि की प्रथम किश्त किसानों को दे दी गई है और दूसरी किश्त 20 अगस्त को पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय श्री राजीव गांधी की जयंती के अवसर पर दी जाएगी।
राज्य में लगभग सवा करोड़ पशुधन हैं। ज्यादातर पशुधन छोटे किसान या पशुपालकों के पास है। कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण पशुपालक चारे की व्यवस्था नहीं कर पाते और इन्हें खुले में छोड़ देते हैं। इससे ऐसे किसान, जिनके पास सिंचाई के साधन हैं, उन्हें भी दूसरी फसल लेने में कठिनाई आती है। इस समस्या को दूर करने के लिए राज्य की पुरानी परम्परा रोका छेका को फिर से पुनर्जीवित किया गया। गांव में गौठान समितियों द्वारा धान की बुआई शुरू होते ही बैठकें कर खुले में पशु चराई पर रोक लगाने का निर्णय लिया गया।
‘गोधन न्याय योजना‘ भी रोका-छेका कार्यक्रम से जुड़ी हुई है। यह किसानों की आय बढ़ाने के साथ-साथ खुले में चरने वाले पशुओं के कारण होने वाली फसल क्षति को रोकने में बहुत कारगर सिद्ध होगी। गौठानों में छोटे पशुपालकों के घर-घर से गोबर एकत्र कर उसकी खरीदी की जाएगी। इससे गौठनों में जैविक खाद तथा गोबर गैस का निर्माण होगा। इनकी बिक्री से गौठानों का आर्थिक माडल सफल होने की संभावना बढ़ जाती है। गौठानों को आजीविका केन्द्र के रूप में विकसित किया जा रहा है।
गोधन न्याय योजना पहले चरण में 2200 गौठानों में लागू की जाएगी, इसके बाद निर्माणाधीन 2800 गौठानों के पूर्ण होने पर उनमें भी लागू होगी। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का कहना है कि गोधन न्याय योजना ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के लिए एक क्रांतिकारी योजना साबित होगी, जिसके दूरगामी परिणाम मिलेंगे। इस योजना से राज्य में जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा, खेती की जमीन की गुणवत्ता भी सुधरेगी। पशुपालकों को लाभ होगा।
एक अनुमान के मुताबिक प्रदेश के 5 हजार गौठानों में गोधन न्याय योजना लागू होने से गोबर कलेक्शन और खाद बनाने के काम में लगभग साढ़े चार लाख लोगों को रोजगार मिलेगा। निर्धारित दर पर गोबर की खरीदी होगी, सहकारी समितियों से वर्मी कम्पोस्ट की बिक्री की व्यवस्था की जाएगी। गोबर कलेक्शन, वर्मी कम्पोस्ट बनाने और कम्पोस्ट की मार्केटिंग की पूरी चैन विकसित की जाएगी। इस पूरी प्रक्रिया के संचालन में स्व-सहायता समूहों की महिलाओं के साथ गांव के युवाओं की भी सक्रिय भागीदारी होगी।
पशुधन विकास विभाग के उप संचालक डॉ. एस.पी.सिंह बताया कि है कि कोरबा जिले के केवल 197 गोठान गांवों में पशुधन से मिलने वाले गोबर से ग्रामीणों को सालाना 17 करोड़ रूपये से अधिक की अतिरिक्त आय मिल सकती है। केवल गोठान गंावों से मिले गोबर से यदि कम्पोस्ट खाद बना दी जाये तो यह आय लगभग दस गुना तक बढ़कर 171 करोड़ रूपये तक पहुंच सकती है। इस पूरे कैलकुलेशन के पीछे पशुधन विशेषज्ञों का पूरा गणित है। कोरबा जिले में सात सौ से अधिक गांव हैं। जिनमें से अब तक 197 गांवों में नरवा, गरूवा, घुरवा, बाड़ी विकास कार्यक्रम के तहत सुव्यवस्थित गोठानों का निर्माण पूरा हो गया है। इन गोठान गांवों में पशु संगणना के अनुसार एक लाख 56 हजार 279 पशु हैं। औसतन छह किलोग्राम गोबर प्रतिदिन प्रति पशु के हिसाब से एक दिन में ही इन गांवों में नौ लाख 37 हजार 674 किलोग्राम गोबर का उत्पादन संभावित है। इस हिसाब से कोरबा जिले के 197 गोठान गांवों में ही प्रति वर्ष लगभग 34 करोड़ 22 लाख 51 हजार किलोग्राम गोबर का उत्पादन हो सकता है। विशेषज्ञों की मानें तो यदि राज्य सरकार पचास पैसे प्रति किलो की दर से भी ग्रामीणों से गोबर खरीदती है तो कोरबा जिले के केवल गोठान गांवों से ही प्रतिदिन ग्रामीणों को चार लाख 68 हजार 837 रूपये और प्रतिवर्ष 17 करोड़ 11 लाख 25 हजार 505 रूपये की अतिरिक्त आमदनी हो सकती है। इसी गोबर से यदि वर्मी कम्पोस्ट खाद बना लिया जाये तो उसका रेट लगभग दस गुना बढ़ सकता है। दो किलो गोबर से एक किलो खाद उत्पादन के मान से भी केवल गोठान गांवों से ही लगभग 17 करोड़ 11 लाख 25 हजार किलो से अधिक खाद का उत्पादन हो सकता है। जिले में वर्तमान में गोठानों में उत्पादित होने वाले वर्मी कम्पोस्ट को महिला स्व सहायता समूहों द्वारा दस रूपये प्रतिकिलो की दर से बेचा जा रहा है। पशुधनों के गोबर से बनी खाद को भी यदि इसी दर पर बेचा जाता है तो ग्रामीणों को 171 करोड़ 12 लाख 55 हजार रूपये की सालाना अतिरिक्त आमदनी मिल सकती है।

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