Tulbul Project: तुलबुल प्रोजेक्ट पर फिर गरमाई सियासत, 38 साल बाद मिलेगा कश्मीर को उसका जल अधिकार!
Tulbul Project: झेलम नदी पर बना तुलबुल नेविगेशन बैराज एक बार फिर राष्ट्रीय बहस का केंद्र बन गया है, जब जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इसके अधूरे पड़े निर्माण कार्य को फिर से शुरू करने की पुरजोर वकालत की. 1984 में शुरू हुई यह परियोजना 1987 में पाकिस्तान के दबाव में रोक दी गई थी, लेकिन अब, जब भारत ने सिंधु जल संधि को अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया है, तो 38 साल बाद इस बैराज से कश्मीर के जल अधिकारों को फिर से स्थापित करने की मांग तेज हो गई है.

Tulbul Project: झेलम नदी पर बना तुलबुल नेविगेशन बैराज एक बार फिर राष्ट्रीय बहस का केंद्र बन गया है, जब जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इसके अधूरे पड़े निर्माण कार्य को फिर से शुरू करने की पुरजोर वकालत की. 1984 में शुरू हुई यह परियोजना 1987 में पाकिस्तान के दबाव में रोक दी गई थी, लेकिन अब, जब भारत ने सिंधु जल संधि को अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया है, तो 38 साल बाद इस बैराज से कश्मीर के जल अधिकारों को फिर से स्थापित करने की मांग तेज हो गई है.
जम्मू-कश्मीर में दशकों पुरानी एक अधूरी परियोजना तुलबुल नेविगेशन बैराज एक बार फिर सुर्खियों में है. इसके पीछे कारण है सिंधु जल संधि का अस्थायी रूप से स्थगन और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के इस प्रोजेक्ट को दोबारा शुरू करने की मांग.
पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने इसे भड़काऊ और गैर जिम्मेदाराना करार देते हुए आलोचना की है. इस विवाद के बीच कश्मीर के आम लोगों, खासकर किसानों में आशा की एक नई किरण दिखाई दे रही है क्या 38 साल बाद उन्हें झेलम नदी पर जल अधिकार मिल पाएगा?
कहाँ से शुरू हुआ मामला
उमर अब्दुल्ला की सोशल मीडिया पोस्ट से चर्चा शुरू
15 मई को उमर अब्दुल्ला ने अपने X अकाउंट पर तुलबुल प्रोजेक्ट का वीडियो साझा किया, जिसमें उन्होंने लिखा “उत्तरी कश्मीर में वुलर झील. वीडियो में जो सिविल कार्य दिख रहा है, वह तुलबुल नेविगेशन बैराज है. इसे 1980 के दशक की शुरुआत में शुरू किया गया था, लेकिन सिंधु जल संधि का हवाला देकर पाकिस्तान के दबाव में छोड़ना पड़ा. अब जब यह संधि अस्थायी रूप से निलंबित है, तो क्या हम इस परियोजना को फिर से शुरू कर सकते हैं?”
तुलबुल प्रोजेक्ट क्या है और क्यों है अहम?
तुलबुल प्रोजेक्ट झेलम नदी पर वुलर झील के मुहाने पर बनाया जा रहा एक 440 फीट लंबा "नौवहन लॉक-कम-कंट्रोल स्ट्रक्चर" था. इस बैराज की क्षमता करीब 3 लाख बिलियन क्यूबिक मीटर पानी स्टोर करने की थी. इसका उद्देश्य था झेलम के जल प्रवाह को नियंत्रित करना ताकि दक्षिण से उत्तरी कश्मीर तक लगभग 100 किलोमीटर लंबा जल मार्ग चालू रहे, और साथ ही नदी में न्यूनतम प्रवाह हो. अगर यह प्रोजेक्ट पूरा होता, तो कश्मीर की करीब एक लाख एकड़ जमीन सिंचित हो सकती थी. साथ ही सर्दियों में जलस्तर गिरने की समस्या से निपटने में मदद मिलती, जिससे बिजली उत्पादन भी नियमित रह सकता था.
पाकिस्तान के दबाव में रुका था निर्माण कार्य
इस परियोजना की शुरुआत 1984 में की गई थी, लेकिन 1987 में पाकिस्तान ने इसे सिंधु जल संधि का उल्लंघन बताते हुए विरोध किया. अंतरराष्ट्रीय दबाव में भारत ने इसका निर्माण रोक दिया, और तब से अब तक यह अधूरा पड़ा है. बाढ़, मिट्टी कटाव और देखरेख की कमी के चलते इसका ढांचा भी खराब होता गया.
सिंधु जल संधि का स्थगन बना नई शुरुआत का अवसर
23 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले के बाद प्रधानमंत्री मोदी की अध्यक्षता में CCS की बैठक हुई, जिसमें पाकिस्तान के खिलाफ पांच बड़े फैसले लिए गए. सबसे बड़ा फैसला था सिंधु जल संधि का अस्थायी स्थगन. यह समझौता 1960 में भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच हुआ था, जिसमें छह नदियों को पूर्वी और पश्चिमी हिस्सों में बांटा गया था.
भारत को रावी, ब्यास और सतलुज पूर्वी नदियां का पूरा अधिकार मिला, जबकि सिंधु, झेलम और चिनाब पश्चिमी नदियां का अधिकांश जल पाकिस्तान को देना तय हुआ भारत केवल 20 प्रतिशत तक इनका जल रोक सकता था. अब इस संधि को अस्थायी रूप से निलंबित किए जाने के बाद भारत को इन पश्चिमी नदियों पर अधिक नियंत्रण हासिल करने का अवसर मिला है, जिसे राष्ट्रीय सुरक्षा, सिंचाई और जल बिजली उत्पादन के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है.
स्थानीय किसान खुश
बारामुला, बांदीपोरा, श्रीनगर, पुलवामा, अनंतनाग और कुलगाम के हजारों किसानों ने उमर अब्दुल्ला के बयान का समर्थन किया है. उनका कहना है कि झेलम पर नियंत्रण मिलने से उनका कृषि भविष्य सुरक्षित होगा. जल प्रवाह का स्थायित्व खेती के लिए आवश्यक है, और साथ ही घाटी में जलपरिवहन के पुराने मार्ग फिर से उपयोग में लाए जा सकते हैं.
महबूबा मुफ्ती की आपत्ति
हालांकि, पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने उमर अब्दुल्ला के बयान को "गंभीर और भड़काऊ" बताया. उन्होंने कहा, “भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसे हालात बन चुके हैं, जिसमें कश्मीर ने सबसे ज्यादा कीमत चुकाई है. ऐसे वक्त में पानी जैसे जरूरी संसाधन को हथियार की तरह इस्तेमाल करना खतरनाक हो सकता है.” महबूबा ने चेतावनी दी कि भारत का यह कदम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विवाद को बढ़ा सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि कश्मीर के लोगों को भी बाकी देश की तरह शांति और राहत चाहिए, न कि जल को हथियार के रूप में प्रयोग करने की सजा.
क्या अब आगे बढ़ेगा तुलबुल प्रोजेक्ट?
अभी के हालात में तुलबुल परियोजना के फिर से शुरू होने की संभावनाएं मजबूत हो रही हैं. जल संसाधनों को भी रणनीतिक हथियार की तरह देखने का नजरिया बन रहा है. अगर यह परियोजना पूरी होती है, तो इससे सिर्फ कश्मीर नहीं, बल्कि पूरे उत्तर भारत खासकर पंजाब, हरियाणा और दिल्ली तक जल प्रबंधन की समस्या को काफी हद तक हल किया जा सकता है.
