Supreme Court Verdict Update: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, कहा- हर निजी संपत्ति पर कब्जा नहीं कर सकती सरकारें
Supreme Court Verdict Update: सुप्रीम कोर्ट ने 7:2 के बहुमत के एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि संविधान के तहत सरकारों को आम भलाई के लिए निजी स्वामित्व वाले सभी संसाधनों यानी प्राइवेट प्रॉपर्टी को अपने कब्जे में लेने का अधिकार नहीं है।
Supreme Court Verdict Update: सुप्रीम कोर्ट ने 7:2 के बहुमत के एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि संविधान के तहत सरकारों को आम भलाई के लिए निजी स्वामित्व वाले सभी संसाधनों यानी प्राइवेट प्रॉपर्टी को अपने कब्जे में लेने का अधिकार नहीं है। यानी अब आपकी निजी संपत्ति को कोई सरकार जबरन नहीं ले सकती। हालांकि, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली नौ जजों की पीठ ने कहा कि सरकारें कुछ मामलों में निजी संपत्तियों पर दावा कर सकती हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल पर मंगलवार को यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया कि क्या राज्य आम लोगों की भलाई की खातिर निजी संपत्ति को वितरित करने के लिए उन पर कब्जा कर सकता है।
पीठ ने 1978 के बाद के उन फैसलों को पलट दिया जिनमें समाजवादी विषय को अपनाया गया था। साथ ही कहा गया था कि सरकार आम भलाई के लिए सभी निजी संपत्तियों को अपने कब्जे में ले सकती है। अब सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 45 साल पहले में दिया गया अपना ही फैसला पलट दिया। सुप्रीम कोर्ट के बहुमत के फैसले के अनुसार निजी स्वामित्व वाले सभी संसाधनों को सरकार द्वारा अधिगृहीत नहीं किया जा सकता।
CJI ने सात जजों का बहुमत का फैसला लिखते हुए कहा कि सभी निजी संपत्तियां भौतिक संसाधन नहीं हैं। इसलिए सरकारों द्वारा इन पर कब्ज़ा नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने कहा कि सरकार हालांकि जनता की भलाई के लिए उन संसाधनों पर दावा कर सकती है जो भौतिक हैं और समुदाय के पास हैं।
चीफ जस्टिस द्वारा सुनाए गए बहुमत के फैसले में जस्टिस कृष्णा अय्यर के पिछले फैसले को खारिज कर दिया गया जिसमें कहा गया था कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को संविधान के आर्टिकल 39 (B) के तहत वितरण के लिए सरकारों द्वारा अधिगृहीत किया जा सकता है।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने और उस पीठ के छह अन्य जजों के लिए फैसला लिखा। इसने इस जटिल कानूनी सवाल पर निर्णय किया कि क्या निजी संपत्तियों को आर्टिकल 39 (बी) के तहत समुदाय के भौतिक संसाधन माना जा सकता है। साथ ही आम भलाई के वास्ते इसके वितरण के लिए सरकार के अधिकारियों द्वारा अपने कब्जे में लिया जा सकता है।
इसने उन कई फैसलों को पलट दिया, जिनमें समाजवादी सोच को अपनाया था और कहा गया था कि सरकारें आम भलाई के लिए सभी निजी संपत्तियों पर कब्जा कर सकती हैं। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने चीफ जस्टिस द्वारा लिखे गए बहुमत के फैसले से आंशिक रूप से असहमत जताई। जबकि जस्टिस सुधांशु धूलिया ने सभी पहलुओं पर असहमति जताई।
आर्टिकल 31C, आर्टिकल 39(B) और (C) के तहत बनाए गए कानून की रक्षा करता है जो सरकार को आम भलाई के वास्ते वितरण के लिए निजी संपत्तियों सहित समुदाय के भौतिक संसाधनों को अपने कब्जे में लेने का अधिकार देता है। शीर्ष अदालत ने 16 याचिकाओं पर सुनवाई की जिनमें 1992 में मुंबई स्थित प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन (पीओए) द्वारा दायर मुख्य याचिका भी शामिल थी।
प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन ने महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास प्राधिकरण (म्हाडा) अधिनियम के अध्याय 8-A का विरोध किया है। 1986 में जोड़ा गया यह अध्याय सरकारी प्राधिकारियों को उपकरित भवनों और उस भूमि का अधिग्रहण करने का अधिकार देता है जिस पर वे बने हैं, यदि वहां रहने वाले 70 प्रतिशत लोग पुनर्स्थापन उद्देश्यों के लिए ऐसा अनुरोध करते हैं।