Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट का सुप्रीम फैसला: UP Gangsters Act जैसे कठोर कानून का नियमित इस्तेमाल नहीं किया जा सकता
Supreme Court: उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लाए गए UP Gangsters Act के तहत दर्ज एफआईआर को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कठोर दंडात्मक कानून का उत्पीड़ना के जरिया के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने इस कानून का नियमित इस्तेमाल ना करने का निर्देश राज्य सरकार को दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य को दी गई शक्ति का इस्तेमाल उत्पीड़न या धमकी के साधन के रूप में नहीं किया जा सकता। खासकर तब जब राजनीतिक मंशा काम कर रही हो।

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Supreme Court: दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गैंगस्टर्स एक्ट के तहत दर्ज एफआईआर को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य शासन को जरुरी हिदायत दी है। ऐसे कानूनों का उपयोग उत्पीड़न के साधन के रूप में कतई नहीं किया जा सकता। एक्ट का उपयोग विवेकपूर्ण तरीके से करने की हिदायत दी है।
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की डिवीजन बेंच ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दर्ज FIR को खारिज करते हुए कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी तब और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है, जब यूपी गैंगस्टर्स एक्ट जैसे कठोर प्रावधानों वाले असाधारण कानून का इस्तेमाल किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य को दी गई शक्ति का उपयोग उत्पीड़न या धमकी के साधन के रूप में नहीं किया जा सकता, खासकर तब जब राजनीतिक मंशा काम कर रही हो।
याचिकाकर्ता की पुत्रवधू द्वारा 17 अप्रैल, 2023 को नगर पंचायत खरगूपुर के अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल करने के तुरंत बाद FIR दर्ज की गई थी। डिवीजन बेंच ने FIR के समय पर सवाल उठाया और कहा कि अभियोजन पक्ष भारतीय दंड संहिता IPC के तहत दर्ज की गई प्रारंभिक FIR के बाद से याचिाकाकर्ताओं की निरंतर संगठित आपराधिक गतिविधि में शामिल होने का कोई सबूत पेश करने और इसे स्थापित करने में विफल रहा है।
याचिकाकर्ता भीड़ की झड़प की एक ही घटना में शामिल थे, इसलिए असामाजिक गतिविधियों में उनकी निरंतर भागीदारी का कोई सबूत नहीं है। डिवीजन बेंच ने कहा कि एक्ट को केवल असामाजिक गतिविधि की एक ही घटना में शामिल होने के लिए व्यक्तियों पर लागू नहीं किया जा सकता है, जब तक कि पूर्व या चल रहे समन्वित आपराधिक आचरण को दर्शाने वाला सबूत न हो। कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करने के लिए एक्ट का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।