Supreme Court News: सुप्रीम फैसला: 20 हजार रुपये से अधिक के कैश लोन पर चेक बाउंस का मामला, पढ़िये शीर्ष कोर्ट ने क्या कहा
Supreme Court News: कैश लोन और चेक बाउंस के एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। डिवीजन बेंच ने केरल हाई कोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया है जिसमें कोर्ट ने व्यवस्था दी थी, आयकर अधिनियम, 1961 IT Act का उल्लंघन करते हुए 20 हज़ार रुपये से अधिक के नकद लेन-देन से उत्पन्न ऋण को NI Act की धारा 138 के तहत कानूनी रूप से प्रवर्तनीय ऋण नहीं माना जा सकता।

supreme court of india (NPG file photo)
Supreme Court News: दिल्ली। कैश लोन और चेक बाउंस के एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। डिवीजन बेंच ने केरल हाई कोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया है जिसमें कोर्ट ने व्यवस्था दी थी, आयकर अधिनियम, 1961 IT Act का उल्लंघन करते हुए 20 हज़ार रुपये से अधिक के नकद लेन-देन से उत्पन्न ऋण को NI Act की धारा 138 के तहत कानूनी रूप से प्रवर्तनीय ऋण नहीं माना जा सकता।
जस्टिस मनमोहन और जस्टिस एनवी अंजारिया की डिवीजन बेंच ने कहा, केरल हाकोर्ट का हालिया फैसला गलत है। डिवीजन बेंच, केरल हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील पर फैसला नहीं कर रहा था। केरल हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर विशेष अनुमति याचिका SLP, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने बीते सप्ताह नोटिस जारी किया था, मामले की सुनवाई कर रहा था।
बेंच ने कहा कि IT, 1961 की धारा 269 SS का उल्लंघन 20 हजार रुपये से अधिक के नकद लेनदेन को प्रतिबंधित करता है। ऐसे लेन-देन को अवैध, अमान्य या अप्रवर्तनीय नहीं बनाता है। डिवीजन बेंच ने कहा कि धारा 269 SS का उल्लंघन केवल धारा 271D के तहत निर्धारित वैधानिक दंड को आकर्षित करता है। यह NI Act, 1881 की धारा 138 के तहत कार्यवाही के उद्देश्य से किसी लोन को अमान्य नहीं कर सकता है। कोर्ट ने पीसी हरि मामले में लिए गए इस दृष्टिकोण को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया कि 20 हजार रुपये से अधिक के नकद लेनदेन अमान्य हैं और कानूनी रूप से प्रवर्तनीय ऋण के रूप में योग्य नहीं हैं। IT, 1961 की धारा 269SS का कोई भी उल्लंघन केवल IT Act, 1961 की धारा 139 और धारा 271डी के तहत दंड के अधीन है। इसके अलावा, न तो धारा 269SS और न ही IT Act, 1961 की धारा 271डी में कहा गया कि इसके उल्लंघन में कोई भी लेनदेन अवैध, अमान्य या वैधानिक रूप से शून्य होगा। डिवीजन बेंच ने कहा 20 हजार रुपये से अधिक का कोई भी लेनदेन अवैध और शून्य है। इसलिए 'कानूनी रूप से लागू करने योग्य लोन' की परिभाषा में नहीं आता है, उसको स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने जताई चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में इस बात पर भी चिंता जताते हुए कहा, कई अदालतें NI Act की धारा 118 और धारा 139 के अंतर्गत उपधारणाओं को लागू नहीं कर रहे हैं। यह न्यायालय इस तथ्य का भी न्यायिक संज्ञान लेता है कि कुछ जिला कोर्ट और कुछ हाई कोर्ट NI Act की धारा 118 और 139 में निहित उपधारणाओं को लागू नहीं कर रहे हैं। NI Act के तहत कार्यवाही को एक अन्य दीवानी वसूली कार्यवाही के रूप में मान रहे हैं और शिकायतकर्ता को पूर्ववर्ती ऋण या देयता साबित करने का निर्देश दे रहे हैं। ऐसा दृष्टिकोण न केवल मुकदमे को लंबा खींच रहा है, बल्कि संसद के आदेश के भी विपरीत है। चेक जारीकर्ता और बैंक को चेक का सम्मान करना होगा, अन्यथा चेकों में विश्वास को अपूरणीय क्षति होगी। कोर्ट ने चेक बाउंस के लंबित मामलों को कम करने के लिए ट्रायल को विस्तृत दिशानिर्देश भी जारी किए।
