Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला, अपने आदेशों की समीक्षा करने का किशोर न्याय बोर्ड को नहीं है अधिकार, कानूनन कोई पुनर्विचार क्षेत्राधिकार नहीं
Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने जन्म तिथि को लेकर हुए संशय और किशोर न्याय बाेर्ड द्वारा अपने ही आदेश की समीक्षा को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई करते हुए कहा है कि किशोर न्याय बोर्ड को अपने ही आदेशों की समीक्षा करने की शक्ति नहीं दी गई है। सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने यह भी कहा कि स्कूल के दस्तावेज चिकित्सकों की राय की तुलना में अधिक महत्व रखते हैं और साक्ष्य के लिए महत्वपूर्ण है।

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Supreme Court News: जन्म तिथि को लेकर संशय के बाद किशोर न्याय बोर्ड ने अपने आदेश की समीक्षा कर दी। इसे चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किशोर न्याय बोर्ड (Juvenile Justice Board) को अपने निर्णयों की समीक्षा का अधिकार नहीं दिया गया है और ना संवैधानिक शक्ति ही दी गई है। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि बोर्ड को अपने खुद के निर्णयों की समीक्षा करने या बाद की कार्रवाई में विरोधाभासी रूख अपनाने का अधिकार नहीं है। किशोर न्याय बोर्ड को कानून के तहत पुनर्विचार क्षेत्राधिकार नहीं दिया गया है।
इस महत्वपूर्ण टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने किशोर न्याय बोर्ड के फैसले को रद्द कर दिया है।
अपील से संबंधित मामले में किशोर न्याय बोर्ड ने पूर्व कार्यवाही में प्रमुख पक्षकार नंबर दो की जन्म तिथि 08.सितंबर 2003 के रूप में स्वीकार की थी। किशोर न्याय बोर्ड ने जन्म तिथि को लेकर मेडिकल बोर्ड की राय ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि इसकी अनुमति दी जाती है, तो यह अपने पहले के आदेश की समीक्षा करने के समान होगा। जुवेनाइल जस्टिसअधिनियम, 2015 किशोर न्याय बोर्ड को समीक्षा की ऐसी कोई शक्ति प्रदान नहीं करता है। यह ट्राइट लॉ है कि समीक्षा की शक्ति या तो वैधानिक रूप से प्रदान की जाती है या आवश्यक निहितार्थ द्वारा होती है।
क्या है मामला
किशोर न्याय बोर्ड ने पक्षकार क्रमांक दो के स्कूल प्रमाण पत्र में दर्ज जन्मतिथि को नजरअंदाज कर दिया और जन्म को लेकर चिकित्सकीय रिपोर्ट पर भरोसा किया। कोर्ट ने लिखा है कि यह अवैध है। कोर्ट ने धारा 94 (2) में दिए गए प्रावधान का हवाला देते हुए कहा कि दस्तावेजी सबूत के अभाव में मेडिकल साक्ष्य पर भरोसा किया जाता है और यह स्वीकार्य भी है। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट द्वारा प्रतिवादी संख्या दो को जमानत देने के फैसले को बरकरार रखा है।
हालांकि किशोर न्याय बोर्ड ने धारा 15 के तहत प्रारंभिक मूल्यांकन किया था और सिफारिश की थी कि उन पर एक वयस्क के रूप में मुकदमा चलाया जाए,लेकिन जमानत के उसके अधिकार को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने किशोर न्याय बोर्ड के आदेश को खारिज कर दिया है।
