Supreme Court News: NOTA बन सकता है चुनाव का नया हथियार? क्या बिना विकल्प के चुनाव लोकतांत्रिक है? सुप्रीम कोर्ट ने ECI से पूछे सवाल
Supreme Court News: एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भारत निर्वाचन आयोग ECI से पूछा है कि निर्विरोध निर्वाचन की स्थिति में क्या वहां के मतदाताओं को नोटा NOTA का विकल्प दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सवाल किया कि उस उम्मीदवार को मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा नोटा के माध्यम से उसे निर्वाचित नहीं देखना चाहते। क्या ऐसी स्थिति में उनकी इस इच्छा को पराजित होने दिया जाना चाहिए।

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Supreme Court News: दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक पीआईएल पर सुनवाई करते हुए भारत निर्वाचन आयोग से दो अहम सवाल दागे। कोर्ट ने पूछा निर्विरोध निर्वाचन की स्थिति में मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा नोटा के जरिए उसे निर्वाचित नहीं होना देखना चाहते, ऐसी स्थिति में उनको यह अधिकार दिया जाना चाहिए या नहीं। अगर नोटा का अधिकार नहीं दिया जा रहा है तो क्या उनकी इस इच्छा को पराजित होने दिया जाना चाहिए।
जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 53(2) और चुनाव संचालन नियम, 1961 के प्रपत्र 21 और 21बी के साथ नियम 11 के खिलाफ विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
धारा 53(2) के अनुसार, यदि किसी चुनाव में चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की संख्या भरी जाने वाली सीटों की संख्या के बराबर है तो निर्वाचन अधिकारी तुरंत ऐसे सभी उम्मीदवारों को उन सीटों को भरने के लिए विधिवत निर्वाचित घोषित करेगा। इसी प्रकार, आचार नियम, 1961 का नियम 11 निर्विरोध निर्वाचन के परिणामों की घोषणा ऐसे प्रारूप यदि यह आम चुनाव है तो फॉर्म 21 (या यदि यह आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए मध्याविध चुनाव है तो फॉर्म 21बी।
नोटा पर तभी वोट, जब किसी उम्मीदवार के प्रति गंभीर नाराजगी
सुनवाई के दौरान, जस्टिस कांत ने कहा कि लोगों के 'NOTA' पर वोट देने से पहले किसी उम्मीदवार के प्रति गंभीर आक्रोश होना चाहिए, जिससे नोटा विकल्प प्रभावी हो जाता है। चुनाव आयोग की ओर से सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने तर्क दिया कि यदि इतना आक्रोश है तो लोग एक स्वतंत्र उम्मीदवार खड़ा कर सकते हैं। जस्टिस भुयान ने असहमति जताते हुए कहा, स्वतंत्र उम्मीदवार खड़ा करना लोगों के हाथ में नहीं है, इसलिए लोग नोटा पर वोट देंगे। एडवोकेट द्विवेदी ने आग्रह किया कि यदि कानून ऐसा ही है तो चुनाव आयोग को कोई आपत्ति नहीं है। अटॉर्नी जनरल ने अदालत को बताया कि यह केवल शैक्षणिक अभ्यास है। 1991 के बाद से निर्विरोध चुनाव का शायद ही कोई उदाहरण रहा हो। हालांकि, याचिकाकर्ता के वकीलों ने उनके इस बात का खंडन किया।
हस्तक्षेपकर्ता के अधिवक्ता ने बेंच को दी जानकारी
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ADR ने इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की थी, जिसे स्वीकार कर लिया गया। ADR की ओर से एडवोकेट प्रशांत भूषण ने बेंच को बताया कि कई राज्यों ने एक कानून अपनाया है, जिसके अनुसार यदि स्थानीय चुनावों में नोटा को किसी उम्मीदवार से अधिक वोट मिलते हैं तो चुनाव नए सिरे से कराए जाएंगे। हालांकि, लोकसभा के मामले में ऐसा कोई नियम नहीं है।
