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Supreme Court News: किराएदारी को लेकर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: मकान मालिक को किराएदार वैकल्पिक जगह का सुझाव नहीं दे सकता और ना ही मजबूर कर सकता है

Supreme Court News: मकान मालिक और किराएदार के बीच प्रापर्टी खाली कराने को लेकर विवाद सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा, कोई किराएदार मकान मालिक को वैकल्पिक जगह का सुझाव नहीं दे सकता। मकान मालिक को किरायेदार के हिसाब से जगह की उपयुक्तता स्वीकार करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

Supreme Court News: किराएदारी को लेकर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला: मकान मालिक को किराएदार वैकल्पिक जगह का सुझाव नहीं दे सकता और ना ही मजबूर कर सकता है
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SUPREME COURT NEWS

By Radhakishan Sharma

Supreme Court News: दिल्ली। मकान मालिक की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा,किराएदार मकान मालिक को यह नहीं बता सकता कि व्यवसाय प्रारंभ करने के लिए कौन सी जगह सही है। किराएदार इस बात पर भी जोर नहीं दे सकता कि उसके बताए दूसरी जगह से मकान मालिक अपना बिजनेस शुरू करे। इस महत्वपूर्ण फैसले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने बाम्बे हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है। हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और अपीलीय कोर्ट के फैसले को पलटते हुए किराएदार के पक्ष में निर्णय दिया था। मकान मालिक ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।

बेदखली का मुक़दमा मुंबई के नागपाड़ा, कामाठीपुरा में एक प्रॉपर्टी के ग्राउंड फ्लोर पर स्थित व्यवसायिक परिसर से जुड़ा है। मकान मालिक रजनी मनोहर कुंथा ने अपनी बहू के लिए व्यवसाय शुरू करने व्यवसायिक परिसर को किराएदार को खाली करने कहा था। किराएदार के इंकार करने पर मामला ट्रायल कोर्ट और फिर अपीलीय कोर्ट पहुंचा। दोनों ही अदालतों ने मकान मालिक के पक्ष में फैसला सुनाया। इस पर किराएदार परशुराम चुन्नीलाल कनौजिया ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर दी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने रिविजनल अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करते हुए दलीलों और सबूतों की विस्तृत जांच के बाद ट्रायल कोर्ट और अपीलीय कोर्ट के फैसले काे रद्द करते हुए किराएदार के पक्ष में फैसला सुनाया था।

हाई कोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, रिविजन में सबूतों का बहुत बारीकी से दोबारा मूल्यांकन करना सही नहीं है, खासकर जब दो अदालतों ने एक साथ मकान मालिक के पक्ष में फ़ैसला सुनाया हो। मकान मालिक ने अपनी बहू के व्यवसाय के लिए खास तौर पर ग्राउंड फ्लोर की जगह मांगी, जो कमर्शियल है। बिल्डिंग की ऊपरी मंज़िलें रिहायशी हैं। इसलिए उन्हें सही विकल्प नहीं माना जा सकता। किरायेदार ने तर्क दिया कि मकान मालिक के पास दूसरी जगह उपलब्ध थी और उसने मुक़दमे के दौरान एक कमरे के लिए कमर्शियल बिजली कनेक्शन भी ले लिया था। इस दलील को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कोई किरायेदार वैकल्पिक जगह का सुझाव नहीं दे सकता और मकान मालिक को किरायेदार के हिसाब से जगह की उपयुक्तता स्वीकार करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। यह मकान मालिक का अधिकार है कि वह तय करे कि वह या उसके परिवार के सदस्य कहां और कैसे बिज़नेस करेंगे। कोर्ट ने कहा कि किराएदार मालिक को जगह की उपयुक्तता और उसमें बिज़नेस शुरू करने के बारे में सलाह नहीं दे सकता। सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने कहा, हाई कोर्ट ने पुनर्विचार क्षेत्राधिकार का उल्लंघन किया है।

ट्रायल कोर्ट और पहली अपीलीय कोर्ट के एक जैसे फैसले ना तो गलत थे और ना ही कानून के अधिकार के बाहर थे। लिहाजा हस्तक्षेप की कोई ज़रूरत नहीं थी। इसी टिप्पणी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और पहली अपीलीय कोर्ट द्वारा पारित बेदखली आदेश को बहाल कर दिया।

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