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Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों को दी सलाह, भ्रष्ट लोकसेवकों की सजा पर रोक लगाना उचित नहीं

भ्रष्टाचार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के डिवीजन बेंच ने देशभर की अदालतों को नसीहत देते हुए कहा है कि लोकसेवकों के दोषसिद्धी पर रोक लगाने से बचना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस नसीहत के साथ हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए याचिका को खारिज कर दिया है।

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By Radhakishan Sharma

दिल्ली। भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोषी ठहराए गए एक लोक सेवक की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने भ्रष्टाचार पर सख्ती दिखाई है। डिवीजन बेंच ने देशभर की अदालतों को नसीहत देते हुए कहा कि लोक सेवकों की दोषसिद्धी पर रोक लगाने से अदालतों को बचना चाहिए। इस कड़ी टिप्पणी और नसीहत के साथ डिवीजन बेंच ने हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए लोकसेवक की याचिका को खारिज कर दिया है।

मामले की सुनवाई जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस प्रसन्ना बी. वराले की डिवीजन बेंच में हुई। डिवीजन बेंच ने अपने फैसले में लिखा है कि गुजरात हाई कोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नजर नहीं आ रहा है। हाई कोर्ट ने लोकसेवक के सजा को निलंबित कर दिया था। कोर्ट ने दोषसिद्धी पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था। डिवीजन बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि याचिकाओं पर फैसले के दौरान यह साफ कर दिया था कि अदालतों को भ्रष्टाचार के आरोप में दोषी ठहराए गए लोक सेवकों की सजा पर रोक लगाने से बचना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में भी हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं दिखता।

दो मामलों में हाई कोर्ट ने सुनाई है पांच साल की सजा-

भ्रष्टाचार के आरोप में सुनवाई करते हुए निचली अदालत ने याचिकाकर्ता लोक सेवक को PC Act की धारा 7 सहपठित धारा 12 और धारा 13 (1) (डी) सहपठित धारा 13(2) के तहत दोषी ठहराते हुए धारा 7 सहपठित धारा 12 के तहत 2 वर्ष कठोर कारावास और 3,000 रुपये जुर्माना व धारा 13(1)(डी) के साथ धारा 13(2) के तहत 3 साल कठोर कारावास की सजा व 5 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया था।

हाई कोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दी थी चुनौती-

याचिकाकर्ता ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए गुजरात हाई कोर्ट के समक्ष याचिका दायर की थी। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने सजा को निलंबित रखा था। कोर्ट ने दोषसिद्धी पर रोक लगाने से इंकार कर दिया था। हाई कोर्ट के इसी फैसले को चुनौती देते हुए लोक सेवक ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।

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